यह पीले रंग का बैगी शर्ट मुझे उन्नीस सौ चौसठ में मिला था. पूरी आस्तीन वाले इस कमीज़ के चार जेबें थी. कई सालों तक पहने जाने के कारण इसका रंग बहुत कुछ उड़ चुका था किन्तु अब भी ये बहुत अच्छी हालात में था. यह उन दिनों कि बात है जब मैं क्रिसमस अवकाश के दिनों घर पर आई थी. माँ ने कुछ पुराने कपड़ों के ढेर के बारे में बात करते हुए कहा था कि तुम इनको नहीं पहनने वाली हो ना? तब उनके हाथ में एक पीले रंग वाली कमीज़ थी. उन्होंने कहा कि "इसे मैंने उन दिनों पहना था जब तुम और तुम्हारा भाई इस दुनिया में आने वाले थे. यह साल उन्नीस सौ चौवन की बात है.
"शुक्रिया माँ मैं इसे अपनी आर्ट क्लास में पहनूगी" कहते हुए, मैंने उस पीले रंग के कमीज़ को अपनी सूटकेस में रख लिया. इसके बाद से यह कमीज़ मेरे वार्डरोब का हिस्सा हो गया. स्नातक उत्तीर्ण करने के बाद जब मैं अपने नए अपार्टमेंट में आई तब मैंने इसे पहना. इसके अगले साल मेरी शादी हो गयी. मैंने इस कमीज़ को बिग बैली दिनों में पहना यानि उन दिनों जब हमारे घर में नया बच्चा आनेवाला था. इस कमीज़ को पहनते हुए मैंने अपनी माँ और परिवार के लोगों को बहुत याद किया. मैं कई बार इसलिए बरबस मुस्कुरा उठती थी कि इसी कमीज़ को एक माँ ने कई साल पहले ऐसे ही दिनों में पहना था.
क्रिसमस के अवसर पर मैंने भावनाओं से भर कर उस पीले रंग के बैगी शर्ट को एक सुन्दर लिफाफे में बंद करके के माँ को भेज दिया. इसके जवाब में माँ ने पत्र लिख कर बताया कि ये एक रीयल गिफ्ट है. मुझे इससे बहुत प्यार है. इसके बाद उन्होंने कभी इसका ज़िक्र नहीं किया. हम अपनी बेटी के साथ अगले साल फर्नीचर की खरीदारी के सिलसिले में लिए माँ और पापा के यहाँ गए थे. लौट कर आने के कुछ दिनों बाद जब हमने खाने की मेज पर की हुई पेकिंग को खोला तो वहाँ लिफाफे में बंद कुछ पीले रंग का चमक रहा था. यह वही कमीज़ था
इसके बाद एक सिलसिला चल पड़ा.
अगली बार जब हम माँ और पापा के यहाँ गए मैंने चुपके से उसी शर्ट को माँ के बिस्तर के गद्दे के नीचे छुपा दिया. मुझे नहीं मालूम कि वह कितने दिन तक वहाँ छुपा रह पाया होगा. लेकिन कोई दो साल बाद इसे मैंने हमारे लिविंग रूम के लेम्प के नीचे पाया. फिर उन्नीस सौ पचहत्तर में मेरा तलाक हो गया. मैं जब अपना सामान बाँध रही थी, अवसाद ने मुझे बुरी तरह घेर लिया. मैं दुआ कर रही थी कि इस सब से उबर सकूँ. मुझे लगा कि वह पीला कमीज़ जो मेरी माँ का प्यार है वास्तव में वही ईश्वर का दिया हुआ उपहार है.
बाद में मुझे रेडियो में एक अच्छी नौकरी मिल गई. एक साल बाद एक थैले में मुझे वह पीला कमीज़ मिल गया. उस पर कुछ नया लिखा था. यह उसके सीने वाली जेब पर था. “आई बिलोंग टू पेट.” इस बार माँ ने उस पर मेरा नाम लिख दिया था. मैंने अपना कशीदे का सामान लिया और उसके आगे कुछ और अक्षर लिख दिए. अब यह हो गया था. “आई बिलोंग टू पैट्स मदर” मैंने इसे दूर रह रही अपनी माँ को भेज दिया. मेरे पास कोई तरीका नहीं था कि ये जान सकूँ कि उस पार्सल को खोलने के बाद माँ के चेहरे पर क्या भाव थे.
मैंने साल सत्तासी में फिर विवाह कर लिया. हमारी शादी के दिन मैं अपने पति की कार में बैठी थी. मैं आराम के लिए तकिया खोजने लगी तभी मुझे विवाह के अवसरों पर उपहार में दिए जाने जैसी पैकिंग में एक लिफाफा मिला. उसे खोलते ही पाया कि वह वही पीले रंग का बैगी कमीज था. ये पीला बैगी शर्ट, मेरी माँ के द्वारा दिया गया आखिरी उपहार था. इसके तीन महीने बाद सत्तावन साल की उम्र में वे चल बसी.
सोलह साल तक चला प्यार का खेल जो मैंने और माँ ने खेला, अब खत्म हो गया था. मैंने तय किया कि मैं इस पीले बैगी शर्ट को अपनी माँ की कब्र पर भेज दूं. लेकिन मुझे खुशी है कि मैंने ऐसा नहीं किया. एक और भी बात है कि मेरी बेटी इन दिनों कॉलेज में है और वह कला पढ़ रही है. कला के सब विद्यार्थियों को एक पीले रंग का बैगी कमीज चाहिए होता है जिसमें चार बड़ी जेबें हो...
* * *
इस कहानी के आखिर में एक पंक्ति लिखी है. "सच्चा दोस्त वह है. जो आपके हाथों को छुए तो लगे कि दिल को छू लिया है"
* * *
पेट्रिसिया लोरेन्ज की लिखी ये कहानी साल दो हज़ार पांच के क्रिसमस से पहले अट्ठारह तारीख़ को 'डॉन काजर' ने मुझे भेजी थी. मेरे मेल बॉक्स मैं रखी हुई बहुत सी यादगार चीज़ों में से एक है. मैंने अपनी उस दोस्त को कभी कुछ कहा नहीं. मैं आज छः साल बाद इस कहानी को लौटा रहा हूँ. इस तरह कहानी को एक दूसरे तक पहुंचाने का खेल एक रोज़ ख़त्म हो जायेगा. मेरी मृत्यु के पश्चात् पीले बैगी कमीज़ को याद करते हुए, वह इस कहानी को गंगा में बहाने की जगह अपने किसी और प्रिय दोस्त को दे देगी. विलासिता के तमाम उपहार होठों पर रखे उस चुम्बन की तरह है जो दिल तक पहुंचे बिना अगले पल दम तोड़ देते है. जबकि हमारे आत्मीय प्रेम भरे संबंधों को एक पीले रंग का बहुत पुराना बैगी कमीज़ अपनी चार बड़ी जेबों में भर कर रख सकता है.
"शुक्रिया माँ मैं इसे अपनी आर्ट क्लास में पहनूगी" कहते हुए, मैंने उस पीले रंग के कमीज़ को अपनी सूटकेस में रख लिया. इसके बाद से यह कमीज़ मेरे वार्डरोब का हिस्सा हो गया. स्नातक उत्तीर्ण करने के बाद जब मैं अपने नए अपार्टमेंट में आई तब मैंने इसे पहना. इसके अगले साल मेरी शादी हो गयी. मैंने इस कमीज़ को बिग बैली दिनों में पहना यानि उन दिनों जब हमारे घर में नया बच्चा आनेवाला था. इस कमीज़ को पहनते हुए मैंने अपनी माँ और परिवार के लोगों को बहुत याद किया. मैं कई बार इसलिए बरबस मुस्कुरा उठती थी कि इसी कमीज़ को एक माँ ने कई साल पहले ऐसे ही दिनों में पहना था.
क्रिसमस के अवसर पर मैंने भावनाओं से भर कर उस पीले रंग के बैगी शर्ट को एक सुन्दर लिफाफे में बंद करके के माँ को भेज दिया. इसके जवाब में माँ ने पत्र लिख कर बताया कि ये एक रीयल गिफ्ट है. मुझे इससे बहुत प्यार है. इसके बाद उन्होंने कभी इसका ज़िक्र नहीं किया. हम अपनी बेटी के साथ अगले साल फर्नीचर की खरीदारी के सिलसिले में लिए माँ और पापा के यहाँ गए थे. लौट कर आने के कुछ दिनों बाद जब हमने खाने की मेज पर की हुई पेकिंग को खोला तो वहाँ लिफाफे में बंद कुछ पीले रंग का चमक रहा था. यह वही कमीज़ था
इसके बाद एक सिलसिला चल पड़ा.
अगली बार जब हम माँ और पापा के यहाँ गए मैंने चुपके से उसी शर्ट को माँ के बिस्तर के गद्दे के नीचे छुपा दिया. मुझे नहीं मालूम कि वह कितने दिन तक वहाँ छुपा रह पाया होगा. लेकिन कोई दो साल बाद इसे मैंने हमारे लिविंग रूम के लेम्प के नीचे पाया. फिर उन्नीस सौ पचहत्तर में मेरा तलाक हो गया. मैं जब अपना सामान बाँध रही थी, अवसाद ने मुझे बुरी तरह घेर लिया. मैं दुआ कर रही थी कि इस सब से उबर सकूँ. मुझे लगा कि वह पीला कमीज़ जो मेरी माँ का प्यार है वास्तव में वही ईश्वर का दिया हुआ उपहार है.
बाद में मुझे रेडियो में एक अच्छी नौकरी मिल गई. एक साल बाद एक थैले में मुझे वह पीला कमीज़ मिल गया. उस पर कुछ नया लिखा था. यह उसके सीने वाली जेब पर था. “आई बिलोंग टू पेट.” इस बार माँ ने उस पर मेरा नाम लिख दिया था. मैंने अपना कशीदे का सामान लिया और उसके आगे कुछ और अक्षर लिख दिए. अब यह हो गया था. “आई बिलोंग टू पैट्स मदर” मैंने इसे दूर रह रही अपनी माँ को भेज दिया. मेरे पास कोई तरीका नहीं था कि ये जान सकूँ कि उस पार्सल को खोलने के बाद माँ के चेहरे पर क्या भाव थे.
मैंने साल सत्तासी में फिर विवाह कर लिया. हमारी शादी के दिन मैं अपने पति की कार में बैठी थी. मैं आराम के लिए तकिया खोजने लगी तभी मुझे विवाह के अवसरों पर उपहार में दिए जाने जैसी पैकिंग में एक लिफाफा मिला. उसे खोलते ही पाया कि वह वही पीले रंग का बैगी कमीज था. ये पीला बैगी शर्ट, मेरी माँ के द्वारा दिया गया आखिरी उपहार था. इसके तीन महीने बाद सत्तावन साल की उम्र में वे चल बसी.
सोलह साल तक चला प्यार का खेल जो मैंने और माँ ने खेला, अब खत्म हो गया था. मैंने तय किया कि मैं इस पीले बैगी शर्ट को अपनी माँ की कब्र पर भेज दूं. लेकिन मुझे खुशी है कि मैंने ऐसा नहीं किया. एक और भी बात है कि मेरी बेटी इन दिनों कॉलेज में है और वह कला पढ़ रही है. कला के सब विद्यार्थियों को एक पीले रंग का बैगी कमीज चाहिए होता है जिसमें चार बड़ी जेबें हो...
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इस कहानी के आखिर में एक पंक्ति लिखी है. "सच्चा दोस्त वह है. जो आपके हाथों को छुए तो लगे कि दिल को छू लिया है"
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पेट्रिसिया लोरेन्ज की लिखी ये कहानी साल दो हज़ार पांच के क्रिसमस से पहले अट्ठारह तारीख़ को 'डॉन काजर' ने मुझे भेजी थी. मेरे मेल बॉक्स मैं रखी हुई बहुत सी यादगार चीज़ों में से एक है. मैंने अपनी उस दोस्त को कभी कुछ कहा नहीं. मैं आज छः साल बाद इस कहानी को लौटा रहा हूँ. इस तरह कहानी को एक दूसरे तक पहुंचाने का खेल एक रोज़ ख़त्म हो जायेगा. मेरी मृत्यु के पश्चात् पीले बैगी कमीज़ को याद करते हुए, वह इस कहानी को गंगा में बहाने की जगह अपने किसी और प्रिय दोस्त को दे देगी. विलासिता के तमाम उपहार होठों पर रखे उस चुम्बन की तरह है जो दिल तक पहुंचे बिना अगले पल दम तोड़ देते है. जबकि हमारे आत्मीय प्रेम भरे संबंधों को एक पीले रंग का बहुत पुराना बैगी कमीज़ अपनी चार बड़ी जेबों में भर कर रख सकता है.
[Fairy mom and daughter painting : courtesy artist Nichole Wong]