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रीत रहा है, फूटा प्याला


आँख मूंदे हुए बुद्ध की मूरतों की तस्वीरें, किसी यात्री की भुजाओं पर गुदे हुए नीले टेटू, बालकनी में पड़े हुए खाली केन्स, सड़क पर उड़ता हुआ कागज से बना चाय का कप, आंधी के साथ बह कर आई रेत पर बनी हुई लहरें... जाने कितनी चीज़ें, कितने दृश्य पल भर देखने के बाद दिल और दिमाग में ठहरे हुए. 

मुकम्मल होने के इंतज़ार में पड़े हुए कहानियों के ड्राफ्ट्स. बेपरवाह ढलता हुआ दिन, शाम और विस्की, रात और सुबह के सिरहाने रखे हुए कुछ सपने...
* * *

एक चार गुणा चार आकार के सेल में नन्हा सा खरगोश. उसे पकड़ लेने के लिए मैं दरवाज़ा रोके हुए. वह बाहर की ओर आया तो किसी डरे हुए आदमी की तरह उसे पांव से अन्दर धकेल दिया. खरगोश से भी किसी कटखने ज़हरीले जंगली जानवर जैसा डर. वह पैर के धक्के से कोने में चला गया. फिर से आया तो उसे दोनों हाथों में उठा लिया. उसने दोनों दांत मेरी तर्जनी अंगुली पर लगा दिए. दर्द होना चाहिए था मगर था नहीं. 

खरगोश ने मेरे नीले रंग के शर्ट से ख़ुद को पौंछा और ख़ुद पूरा नीला हो गया. इलेक्ट्रिक ब्लू. 
एक गुलाबी रंग से घिरी हुई नन्ही लड़की ने मेरे हाथ से खरगोश ले लिया. थोड़ी देर बाद उसने मुझे खरगोश लौटाया. मैंने हाथ में लेते ही पाया कि ये सिर्फ़ उसका फ़र है. उसने खरगोश को अन्दर से पूरा गायब कर दिया था. मैं बेहद उदास और ऐसा रुंआसा कि अगर रोना आ गया तो जाने कितना ही रोना पड़ेगा. मैं किसी बच्चे की तरह चिल्लाते हुए रोना चाह रहा था किन्तु मैं बच्चा नहीं था. मेरा दुःख बच्चे जैसा था. 
मैं जाग गया. किसी गिल्ट से घिरा हुआ. ऐसी कि जो बुझ न सके किसी भी उपाय से...
* * *

इस बार डूबता हुआ सूरज उत्तर दिशा में किसी परमाणु बम की तरह फूटा. छत से इस नज़ारे को देखते हुए मैं बच्चों से कहता हूँ कि सब लेट जाएं. जैसा कि आपदा के वक़्त बचाव के लिए सिखाया जाता है. इस तरह लेटे हुए सोचना अँधेरे के बारे में, ज़िन्दगी से किसी के चले जाने जैसे अँधेरे के बारे में... या अपनी ही जेब में रखा हुआ अलविदा, दुनिया को कह देने के बारे में. 

एक और अपराधबोध. मेरा हाल हमले के बाद आँगन में गिरे हुए भयभीत पंछी जैसा. टूटे सपने के बाद खुली आँख से दुनिया को देखते हुए ख़ुद को असहाय पाना. सोचना कि ये सब क्या था. क्यों बार बार सपनों में डूबता हुआ सूरज फट कर बुझ जाता है. 
* * *

फिर भी इन सबके बीच इस सप्ताह कहानी के एक ड्राफ्ट पर काम कर लिया. रात को आभा को कहानी सुनाई. आधी कहानी होते होते बेटी भी चली आई. शीर्षक है "रंग उड़े होर्डिंग पर नीलकंठ". आभा ने कहा. बहुत अच्छी है. मानू ने कहा. मैं इसे सुन कर संजीदा हो गई हूँ.
* * *

और कुछ यादें भी लगातार...

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