तुम हो क्या कहीं ?
फूलदान में खिल रहा है
किसलिए, नूर तेरी बात का.
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सोचो, ये कैसी है, चुप्पी
अजगर के आलिंगन सी.
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तोड़ दो, अब कसम कि
बारिशें बहुत दूर हैं, अभी.
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कभी रहो साये की तरह
दरख़्त कम है, धूप ज्यादा.
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देखो बाहर, रात है सुहानी
और जाने बचे हैं, कितने दिन.
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और कभी जो रो पड़ो तो याद करना कुछ भी दूर नहीं है कहीं भी, वह या तो है या है ही नहीं.