मैं कई बार इन अहसासों के जंजाल से बाहर निकल जाने का भी सोचता हूँ. फिर कभी कभी ये कल्पना करता हूँ कि काश अतीत में लौट सकूँ. हो सकूँ वो आदमी, जो मिलता है ज़िन्दगी में पहली बार...
ऐसा भी नहीं है
कि न समझा जा सके, मुहब्बत को.
वह भर देता है, मुझे हैरत से
यह कह कर
कि तुम बता कर जाते तो अच्छा था.
जबकि न था, कभी कोई वादा इंतज़ार का.
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कोई कैसे जाने, रास्ता तुम तक आने का
वक़्त के घोंसले में खो गयी
उम्मीदों भरी, वन चिरैया की अलभ्य आँख.
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