किसी हादसे की तरह

सड़क से ज़रा दूर ढलान में पड़ी हुई
एक बरबाद गाड़ी के ठीक बीच में
उग आए कंटीले झाड़
बख्तरबंद लोहा हो गया जंगल का हिस्सा।

कोई चला गया किसी हादसे की तरह
उगते रहे सन्नाटे के बूटे, याद के कोमल कांटे
उदासी के आलम ने रंग लिया, अपने रंग में।
* * *

वक़्त का लम्हा भूल गया उस रिश्ते की मरम्मत करना। एक ने मुड़ कर नहीं देखा, दूसरे ने आवाज़ नहीं दी। इसलिए सफ़र के अनगिनत रास्ते हैं कि कोई भी जा सकता है किधर भी, वादा सिर्फ दिल के टूटने तक का है। रिश्तों की रफ़ूगरी भी कोई अच्छा काम है क्या?