वे दोनों भाग सकते हैं उन दीवारों से दूर, जिन पर उन्होने कभी खुशी खुशी लिखा था कि रात के ग्यारह बजे हैं और ये दीवार एक "टाइट हग" की गवाह है। मगर लिखा हुआ हमेशा उनका पीछा करता रहता है।
वे दोनों पर्याप्त नहीं थे एक दूसरे के लिए कि वे अक्सर ख़ुद के लिए भी कम पड़ जाते थे। जैसे चाहते थे कि प्यार कर सकें बहुत देर तक मगर कोई और आ जाता था दोनों के बीच पारदर्शी दीवार की तरह।
वे दोनों हो सकते थे ख़ुद से नाराज़ मगर पर्याप्त वजहें नहीं थीं। उन्होने कई बार अलग अलग अपने प्रेमियों से कहा और सुना था कि तनहाई बहुत है और काश तुम हो सकते यहाँ, मुझे समेट लेते अपनी बाहों में।
वे दोनों सप्ताहांत की रातें अपने दोस्तों के साथ बिताने के बाद अपने ओरबिट में लौट आते और उनकी भाषा बदल जाती थी। जिस शिद्दत से वे सप्ताहांत का इंतज़ार किया करते थे उसी शिद्दत से कहते थे, आह आपसे बात न हो सकी दो दिन।
वे दोनों डरते थे इस बात से कि अलग होने का कहते ही दूसरा कहेगा कि आह मैंने सोचा तुम मुझसे ज्यादा प्यार करते थे। हालांकि वे दोनों जा सकते थे एक दूसरे से दूर बाखुशी...
वे दोनों एक बुरी स्मृति की तरह जीने को मजबूर होने के आखिरी पायदान पर खड़े होने से पहले एक दूसरे से कह रहे थे कि आप जाकर भी कहीं जा नहीं पाते हैं।
रेत के मैदानों में बिखरे लोकगीतों में बिछोह का दर्द, धरती पर आसमान की तरह खिला रहता है। मौसम आते जाते रहते हैं मगर नहीं बदलती याद की तस्वीर। इन्हीं रेत के धोरों के पास बचे हुये पहाड़ों पर उगे रहते हैं कंटीले थोर किसी की स्मृतियों जैसे हरे। उन पर कभी कभी खिल आते हैं सुर्ख़ फूल, दूर से लगता है किसी ने गूँथ ली है अपनी चोटियाँ। घाटियों की उपत्यकाओं में रह रह कर गूँजती है किसी की आवाज़, मगर आता कोई नहीं। मन का रेगिस्तान भरा हुआ है छलावों से, सब दरख्त, पहाड़, पानी, और प्रेम माया है। न कोई प्रेम करने आता है न कोई प्रेम करके चला जाता है। मृत्यु के आने तक यही भ्रम एक सहारा है, जीने के लिए।