Skip to main content

होने को फसल ए गुल भी है, दावत ए ऐश भी है

बारिशें नहीं होती इसलिए ये रेगिस्तान है। इसका दूसरा पहलू ये भी है कि ये रेगिस्तान है इसलिए बारिशें नहीं होती। एक ही बात को दो तरीके से कहा जा सके तो हमें ये समझ आता है कि हल कहीं इसी बात में ही छिपा हुआ है। अगर रेगिस्तान में कुछ पेड़ और पौधे बढ़ जाएँ तो यहाँ से गुज़रने वाले बादलों को रुकने के मौका मिल सकता है। वे बरस भी सकते हैं। उनके बरस जाने पर रेगिस्तान जैसी कोई चीज़ बाकी न रहेगी। मुझे ये खयाल इसलिए आया कि बुधवार को संसद में खाद्य सुरक्षा बिल प्रस्तुत कर दिया गया। यूपीए सरकार में इस बिल को लाने के प्रति बड़ी उत्सुकता थी। जिस तरह मनरेगा एक मील का पत्थर और जन कल्याणकारी योजना साबित हुई उसी तरह की आशा इस बिल के लागू होने से भी की जा रही है। इस पर काफी दिनों से चल रही खींचतान ने इसे भी कई लंबित योजनाओं में शामिल कर दिया था। ये आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि गरीब और आम अवाम के लिए लाई जानी वाली योजनाओं पर खूब समर्थन और विरोध की बातें होती हैं। हर कोई भला करने का अधिकार अपने पास रखना चाहता है और दूसरे ये काम करें इसे स्वीकार नहीं करता।

मैंने बचपन में कई बार सुना कि फेमीन शुरू होने वाली है। मेरे लिए फेमीन शब्द का अर्थ था कि कोई काम शुरू करना जिससे लोगों को रोज़गार मिल सके। फेमीन का शाब्दिक अर्थ बहुत अरसे के बाद समझ आया। इसका अभिप्राय ये है कि रेगिस्तान के लोगों का और अकाल का वास्ता जन्म जन्मांतर का रहा है। सरकारों ने इस सूखे भू-भाग और देश के ऐसे ही अनेक हिस्सों में अपने नागरिकों को भूख से मरने से बचाने के लिए योजनाएँ बनाई और उनका क्रियान्वयन किया। इस बार जो खाद्य सुरक्षा बिल लाया जा रहा है इससे देश की दो तिहाई आबादी के लाभान्वित होने की उम्मीद है। इस योजना के मुताबिक गरीबों को दो रुपए किलो गेहूं, तीन रुपए किलो चावल और एक रुपए किलो मोटा अनाज राशन दुकानों के माध्यम से दिया जाएगा। एक परिवार को हर माह पच्चीस ‍किलो अनाज मिलेगा। गांवों की पचहत्तर फीसदी और शहरों में करीब पचास फीसदी आबादी तक यह योजना पहुंचेगी। इस योजना को फिलहाल तीन साल के लिए लागू करने की बात कही जा रही है। खाद्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत मिड डे ‍मील, आईसीडीएस भी शामिल हो जाएंगे। अनुमान के मुताबिक इस योजना के लागू होने से सरकार को प्रतिवर्ष एक लाख चौबीस करोड़ रुपए की ‍सब्सिडी देनी होगी। आज के भाव से एक किलो चावल पर साढ़े तेईस और गेहूं पर प्रतिकिलो अट्ठारह रुपए की सब्सिडी देनी होगी। तीन साल में करीब छः लाख करोड़ की सब्सिडी दिए जाने का अनुमान है। योजना के तहत देश की पैंसठ प्रतिशत आबादी को सस्ते दामों में अनाज मुहैया कराया जाएगा। 

केंद्र सरकार ने इस योजना के लागू किए जाने का सारा जिम्मा राज्य सरकारों पर डाल दिया है। यह एक तरह से संघीय ढांचे को मजबूत किए जाने हेतु उठाया गया कदम है। केंद्र और राज्यों को मिल कर ही इस तरह की योजनों का क्रियान्वयन करना चाहिए। केंद्र सरकार सब्सिडी दे रहा है और राज्य सरकारें ये तय करे कि इसका फायदा किसको दिया जाना है। चयनित होने वाले लाभार्थी तक जो सस्ता राशन पहुंचेगा उसे उपलब्ध कराने का सारा श्रेय केंद्र सरकार न ले जाए इसलिए कुछ राज्य इसका विरोध कर रहे हैं। वे नहीं चाहते कि किसी भी रूप में उनका सिस्टम केंद्र के लाभ के लिए काम करे। लेकिन ये जो विरोध करने वाली सरकारें हैं वे ही अक्सर केंद्र से कई मामलों में सहायता दिये जाने की गुहार लगाती रहती है। क्या उस वक़्त उनको नहीं लगता कि केंद्र से मिला हुआ धन लाभार्थी को प्रभावित करेगा। या उनके विरोध की वजहें कुछ और हैं। एक वजह ये हो सकती है कि सब राज्यों की सरकारों ने गरीबों के लिए अपने स्तर पर कई योजनाएँ चला रखी हैं। वे इसका क्रेडिट ही चाहती है और केंद्र की भव्य योजना के सामने उन लघु योजनाओं के दम तोड़ देने के भय से घिरी हुई हैं।

इधर लोग अक्सर एक ही शिकायत करते हैं कि रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने की जगह सरकारें इस तरह की योजनाएँ लाती हैं जिनसे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता हो। वही सिस्टम और वे ही उसके लाभ उठाने वाले। समाज का बहू संख्यक वर्ग ये मानता है कि आज राजनीति में आने के उत्सुक और आकांक्षी लोगों का पहला लालच यही है कि वे सरकारी योजनाओं में सेंध लगा कर अपने लिए कुछ चुरा सकें। सब्सिडी का खेल ही इसके लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। हाल ही में ये तय किया गया है कि रसोई गैस पर दी जाने वाली सब्सिडी को उपभोक्ता के बैंक खाते में जमा करवाया जाएगा। ऐसा निर्णय करने के पीछे का सबक ये है कि आम उपभोक्ता की जगह रसोई गैस का बहुतायत से दुरुपयोग हो रहा है। तो क्या इस खाद्य सुरक्षा बिल के बारे में भी यही संदेह नहीं उभरता है। ये देश की राशनिंग प्रणाली को फिर ज़िंदा करने का काम है और हम सब जानते हैं कि राशन की दुकानों का खेला कैसा है। ज़रूरत इस बात की है सिस्टम को पहले दुरुस्त किया जाए। हम एक नयी सोच से मनुष्य के लिए रोजगार के अवसर बनाएँ। ताकि वह खुद कमा कर खा सके। उसके बच्चों को स्कूल के पोषाहार और बीवी को राशन वाली दुकान की कतार में न खड़ा होना पड़े।

याहया जस्दानवाला का एक शेर है-
होने को फसल ए गुल भी है दावत ए ऐश है मगर
अपनी बहार का मुझे आज भी इंतज़ार है ।  

[तस्वीर सौजन्य : रेडिफ़] 

Popular posts from this blog

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...