जोधपुर रेलवे स्टेशन से सोजती गेट और वहां कुंज बिहारी मंदिर की ओर के संकरे रास्ते पर नगर निगम के ट्रेक्टर अपनी हैसियत से ज्यादा की सड़क को घेर कर खड़े होंगे. नालियों से बाहर सड़क पर बह रहे पानी से बचते हुए दोनों तरफ की दुकानों पर हलकी निगाह डालते हुए चलिए. एक किलोमीटर चलते हुए जब भी थोड़ी चौड़ी सड़क आये तो उसे तम्बाकू बाज़ार की गली समझ कर दायीं तरफ मुड़ जाइए. ऐसा लगेगा कि अब तक ऊपर चढ़ रहे थे और अचानक नीचे उतरने लगे हैं. कुछ ऐसी ही ढलवां पहाड़ी ज़मीन पर पुराना जोधपुर बसा हुआ है. तम्बाकू बाज़ार एक भद्र नाम है. घास मंडी से अच्छा. गिरदीकोट के आगे बायीं तरफ खड़े हुए तांगे वाले घोड़ो की घास से इस नाम का कोई वास्ता नहीं है. ये उस बदनाम गली या मोहल्ले का नाम है जहाँ नगर की गणिकाएँ झरोखों से झांकती हुई बड़ी हसरत से इंतज़ार किया करती थीं. त्रिपोलिया चौराहे को घंटाघर या सरदार मार्केट को जोड़ने वाली सड़क तम्बाकू बाज़ार है. नयी सड़क और त्रिपोलिया बाज़ार के बीच की कुछ गलियां घासमंडी कहलाती रही है. घासमंडी और तम्बाकू बाज़ार के बीच एक सड़क का फासला है जिसको 'सिरे बाज़ार' कहा जाता है. ऐसी ही ढलवां, संकड़ी और टेढ़ी म...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]