साये, उसके बदन की ओट किये हुए

लड़की एक अरसे से
जो जी रही है, उसे नहीं लिखती
वजह कुछ भी नहीं है.

लड़का एक अरसे से
जो नहीं जी रहा है, उसे लिखता है
वजह कुछ भी नहीं है.

हो सकता है ये दोनों बातें उलट ही हों.

मगर ये सच है कि
हर एक कंधा गुज़रता है धूप की चादर से
साये उसके बदन की ओट किये चलते हैं.

* * *

कोई फिक्रमंद होगा
सुबह के वक्त की पहली करवट पर
की होगी उसने कोई याद.

बुदबुदाया होगा आधी नींद में
कि जिसको धूप की तलब है उसी बिछौने
उतरे आंच ज़िंदगी की अहिस्ता.

जो पड़े हुए हैं रेत की दुनिया में
उन पर बादलों की मेहर करना.

हिचकियाँ बेवक़्त आती हैं अक्सर, उलझी उलझी.

* * *

जिस जगह अचानक
छा जाता है खालीपन
हरी भरी बेलों के झुरमुट तले
चमकती हो उदासी.

जहाँ अचानक लगे
कि बढ़ गयी है तन्हाई
बाद इसके
कि बरसों से जी रहे थे तनहा
तुम समझना कि
कुछ था हमारे प्रेम में और टूट गया.

मैंने सलाहों और वजीफों से इतर
एक दुनिया सोची है
जहाँ जी लेने के लिए
एक अदद जिंदगी भर की ज़रूरत होती है
वहाँ प्रेम हो सके तो समझना
कि जो टूटा वह एक धोखा था.

उसका नाम
कुछ भी लो तुम
मगर असल सवाल होता है
कि क्या तुमको
सचमुच इल्म है मैंने किस तरह चाहा है तुम्हें.