अक्ल केह मैं सबसूं बड़ी, बीच कचेड़ी लड़ती
दौलत केह मैं सबसूं बड़ी, मेरे हर कोई पाणी भरती
सूरत केह मैं सबसूं बड़ी, मेरे हर कोई जारत करते
तकदीर केह तुम तीनों झूठे, मैं चावूँ ज्यों करती.
ऊदा भाई करमण री गत न्यारी
टर सके नहीं टारी
आछी पांख बुगले को दीनी, कोयल कर दीनी काली
बुगलो जात बाभण को बेटो, कोयल जात सुनारी
छोटा नैण हाथी ने दीना, भूप करे असवारी
मोटा नैण मृग को दीना, भटकत फिरे भिखायारी
नागर बेल निर्फल भयी, तुम्बा पसरिया भारी
चुतर नार पुत्र को झुरके, फूहड़ जिण जिण हारी
अबूझ राजा राज करे, रैय्यत फिरे दुखियारी
कहे आशा भारती दो दरसण गिरधारी.
दौलत केह मैं सबसूं बड़ी, मेरे हर कोई पाणी भरती
सूरत केह मैं सबसूं बड़ी, मेरे हर कोई जारत करते
तकदीर केह तुम तीनों झूठे, मैं चावूँ ज्यों करती.
ऊदा भाई करमण री गत न्यारी
टर सके नहीं टारी
आछी पांख बुगले को दीनी, कोयल कर दीनी काली
बुगलो जात बाभण को बेटो, कोयल जात सुनारी
छोटा नैण हाथी ने दीना, भूप करे असवारी
मोटा नैण मृग को दीना, भटकत फिरे भिखायारी
नागर बेल निर्फल भयी, तुम्बा पसरिया भारी
चुतर नार पुत्र को झुरके, फूहड़ जिण जिण हारी
अबूझ राजा राज करे, रैय्यत फिरे दुखियारी
कहे आशा भारती दो दरसण गिरधारी.
मैं लंबे समय से इस प्रतीक्षा में था कि गफ़ूर खां मांगणियार और साथियों की आवाज़ों में इस रचना को रिकार्ड किया जा सके. अभी एक खुशखबरी मिली कि इन बेहतरीन गायकों को आकाशवाणी ने ए ग्रेड के कलाकारों में शामिल कर लिया है. इस ऑडिशन के लिए भेजी जाने वाली रिकार्डिंग करके भेजते समय मैंने चाहा कि बीस सालों की सबसे बेहतरीन रिकार्डिंग हो सके. उस रिकार्डिंग से कोई रचना कभी ज़रूर आपसे बांटना चाहूँगा मगर फ़िलहाल इसे सुनिए.
अक्ल कहती है मैं कचहरी में खड़ी होकर लड़ती हूँ इसलिए सबसे बड़ी हूँ. दौलत कहती है मेरे लिए हर कोई सेवादार होने को आतुर है इसलिए मैं सबसे बड़ी हूँ. सुंदरता कहती है हर कोई मेरे लोभ की चाहना में लगा हुआ है इसलिए मैं सबसे बड़ी हूँ. लेकिन तकदीर कहती है तुम तीनों झूठे, मैं जैसा चाहती हूँ वैसा करती हूँ.
ऊदा भाई, करम की चाल सबसे न्यारी है, इसे टाल कर भी नहीं टाला जा सकता है.
बगुले को सफ़ेद रंग के पंख दिए, कोयल को काला रंग दे दिया. बगुला किसी ब्राहमण की तरह साफ सुथरा उड़ता रहता है और कोयल सुनार की तरह श्याम हुई, बारीक काम करती जाती है. हाथी को छोटी छोटी सी आँखें दी है जिसकी सवारी राजे महाराजे करते हैं और जिस मृग को बड़ी बड़ी आँखें दी वह भिखारी की तरह वन में भटकता फिरता है. नागर बेल यानी पान की बेल जो औषधीय है उस पर पर कोई फल नहीं खिलता है, कड़वे तूम्बों की बेल खूब फैलती जाती है. विदुषी पुत्र की कामना में रहती है, फूहड़ स्त्री बच्चे जनती ही जाती है. मूर्ख राजा राज कर रहे हैं और जनता दुखों से भरी घूम रही है. हे गिरधारी, आशा भारती निवेदन कर रहे हैं कि एक बार फिर दर्शन दो.