नौजवान दिनों के दो ही क्रश यानि पहले सम्मोहन हुआ करते हैं, प्रेम और क्रांति. मैं जिस साल कॉलेज से पास आउट होने वाला था उसी साल यानि उन्नीस सौ नब्बे में अफ़्रीकी जन नेता नेल्सन मंडेला को सत्ताईस साल की लंबी क़ैद से मुक्त किया गया था. नए साल के फरवरी महीने की ग्यारह तारीख को दुनिया का ये दूसरा गाँधी विश्व को अपने नेतृत्व और अकूत धैर्य के जादू में बाँध चुका था. दुनिया भर में नेल्सन मंडेला की रिहाई के जश्न मनाये गए थे. बहत्तर साल की उम्र के इस जननायक को बाईस साल के नौजवानों ने अपने दिल में बसा रखा था. हर कहीं अखबारों, रेडियो और टीवी पर इसी महान शख्स के चर्चे होने लगे थे. मंडेला के साथ होना एक ऐसी क्रांति का प्रतीक था जो श्वेतों के विरुद्ध रक्तहीन क्रांति थी. हालाँकि इस क्रांति की नींव में रंगभेद का शिकार हुए अनगिनत काले लोगों की लहुलुहान आत्माएं थीं. हम उम्र के उस पड़ाव पर थे जहाँ से सभी मंज़िलें फतह कर लिया जाना चुटकी भर का काम था. देश में राजनितिक बदलाव की सुगबुगाहट थी लेकिन असल में हर युवा एक ऐसी क्रांति की उम्मीद करता था जो देश की व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तनकारी सिद्ध हो सके. नौकरशाही की जड़ों ने भ्रष्टाचार की और कदम बढ़ा लिए थे. नौवें दशक की शुरुआत तक सियासत और नौकरशाही के बीच का गठबंधन विलासी हो चला था और जनता के काम न करने का अपराधबोध भी विदा होने लगा था. जो समाज सत्य और अहिंसा के रास्ते देश को आगे बढ़ाये जाने का ख्वाब देख रहा था उसमें ज़बरदस्त निराशा छाने लगी थी. लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ऐसी कोई व्यवस्था न थी जो किसी दूसरे दल को वैचारिक रूप से इतना सक्षम बनाये रख सके कि जनता के पास विकल्प बचा रहे. कच्चे और तात्कालिक गठजोड़ों ने इसी टूटी और निराश होती जा रही जनता को और अधिक भयभीत किया. हम देश भर में समान कानून, सबके लिए शिक्षा और भोजन का अधिकार मांगने वाली जन-छात्र रेलियों में सड़कों पर उत्साह से भरे हुए फिरते थे. इसी उत्साह को नेल्सन मंडेला की रिहाई ने नयी उर्जा दी. बुद्धिजीवियों, कामगारों और मजदूरों ने अपने आंदोलनों के बीच पहली बार कोई ऐसा अवसर फिर से पाया था जिस पर मुंह मीठा किया जा सकता हो. खुद को और साथियों को यकीन दिलाया जा सकता हो कि कोई लड़ाई कभी बेकार नहीं जाती.
मंडेला की रिहाई से साढ़े तीन दशक पहले हम आजाद हो चुके थे. हमारे गाँधी की हत्या की जा चुकी थी. देश आजाद तो था मगर इतने बड़े राष्ट्र के समक्ष असंख्य मुश्किलें थी. आज़ादी जीत लेने के बाद एक पीढ़ी आराम करने लगी थी या उन्होंने काम अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कर दिया था. अगली पीढ़ी के पास अनगिनत ख्वाब थे जो कि आज़ादी जिस सिरे पर मिली उसी सिरे से आगे बंधे हुए थे. योरोप और अन्य विकसित देशों की जीवन शैली लुभा रही थी. सुख बेहिसाब चाहिए थे मगर काम का कोई हिसाब न था. सिस्टम में ऐसे लोगों और धाराओं ने सेंध लगा ली थी जिनके हित निश्चित लोगों और वर्गों के लिए थे. समाज में धार्मिक विविधता तो थी ही लेकिन एक बड़ी तकलीफदेह बात थी समाज में उपस्थित जातिवाद. अफ्रीका के लोगों ने रंग भेद के विरुद्ध जो लड़ाई लड़ी, वैसी ही लड़ाई की ज़रूरत हम सबको जातिवाद के विरुद्ध लड़े जाने की है. हम अभी भी एक तीसरे गाँधी के इंतज़ार में हैं जो देश के मौजूद जातिगत व्यवस्था की बीमारी के विरुद्ध व्यापक जनजागरण का अभियान चला सके. हम सब मिलकर एक ऐसी शासन व्यवस्था बनाने में नाकाम रहे हैं जो कि जातिगत भेदभाव को खत्म कर सके. कड़े कानून तो बने हैं लेकिन उन कानूनों के बल से मनुष्य का मन नहीं बदला जा सका है. आज जिन कानूनों के सहारे हम दबी-कुचली और उपेक्षित जातियों के उत्थान के प्रयास कर रहे हैं उसका फायदा भी कुछ एक परिवारों या जातियों में किसी एक आध खास जाति तक सिमट कर रहा गया है. हम लीक पर चलने के आदी हैं. किसी ने कहा कि ऐसे चला जायेगा तो चलते ही जाते हैं. ये नहीं सोचते कि वक्त के साथ क्या बदलाव अपेक्षित हैं.
नेल्सन मंडेला नहीं रहे. उनकी प्रासंगिकता सदैव रहेगी. शांति के नोबेल पुरुस्कार से नवाजे गए मंडेला मुझे असल में किसी भारतीय से भिन्न नहीं लगते हैं. यही वजह है कि दुनिया भर के सभी देशों ने उनको अपने सम्मानों ने नवाजा है. भारत ने अपना सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया और पाकिस्तान ने उनको निशान ए पाकिस्तान अर्पित किया है. सम्मान देना अपने आप में व्यक्ति के द्वारा किये गए कार्यों की महानता की और संकेत तो करता ही है, साथ ही हम अपने देश में इसी तरह के खास लोगों के होने के आदर्श को स्थापित करते हैं. तीसरी दुनिया के देशों में मंडेला समान रूप से प्रिय हैं. आर्थिक विषमताओं वाली दुनिया में मनुष्य के एक समान मोल और बराबरी की इज्ज़त का हक सबसे पहली ज़रूरत है. हम जब कॉलेज से निकले तब हमारे सामने मंडेला जैसी एक ज़िंदा शख्सीयत थी. हम उसके कारनामों के बारे में पढ़ रहे थे. उनके भाषण को सुन रहे थे. संयुक्त राष्ट्र संघ उस नेक इंसान के लिए उसके जन्मदिन को रंगभेद विरोधी जागरूकता को बढ़ाने के लिए मंडेला दिवस के रूप में मना रहा था. ये हमारी खुशनसीबी है कि एक जीते जागते लोक नायक को हमने हमारे जीवन में देखा. आने वाली पीढ़ी के लिए कोई नायक आयात थोड़े ही किया जायेगा. हम में से ही किसी को इस समाज के उत्थान के लिए संघर्ष को चुनना होगा. नेल्सन मंडेला के लिए ये सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम अपने समाज में व्याप्त कुरीतियों और जाति प्रथाओं के विरुद्ध संघर्ष करें. अपने देश में मनुष्यता के परचम को फहरा सकें. हाँ सचमुच हर नौजवान पीढ़ी का क्रश प्रेम और क्रांति होना चाहिए.
मंडेला की रिहाई से साढ़े तीन दशक पहले हम आजाद हो चुके थे. हमारे गाँधी की हत्या की जा चुकी थी. देश आजाद तो था मगर इतने बड़े राष्ट्र के समक्ष असंख्य मुश्किलें थी. आज़ादी जीत लेने के बाद एक पीढ़ी आराम करने लगी थी या उन्होंने काम अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कर दिया था. अगली पीढ़ी के पास अनगिनत ख्वाब थे जो कि आज़ादी जिस सिरे पर मिली उसी सिरे से आगे बंधे हुए थे. योरोप और अन्य विकसित देशों की जीवन शैली लुभा रही थी. सुख बेहिसाब चाहिए थे मगर काम का कोई हिसाब न था. सिस्टम में ऐसे लोगों और धाराओं ने सेंध लगा ली थी जिनके हित निश्चित लोगों और वर्गों के लिए थे. समाज में धार्मिक विविधता तो थी ही लेकिन एक बड़ी तकलीफदेह बात थी समाज में उपस्थित जातिवाद. अफ्रीका के लोगों ने रंग भेद के विरुद्ध जो लड़ाई लड़ी, वैसी ही लड़ाई की ज़रूरत हम सबको जातिवाद के विरुद्ध लड़े जाने की है. हम अभी भी एक तीसरे गाँधी के इंतज़ार में हैं जो देश के मौजूद जातिगत व्यवस्था की बीमारी के विरुद्ध व्यापक जनजागरण का अभियान चला सके. हम सब मिलकर एक ऐसी शासन व्यवस्था बनाने में नाकाम रहे हैं जो कि जातिगत भेदभाव को खत्म कर सके. कड़े कानून तो बने हैं लेकिन उन कानूनों के बल से मनुष्य का मन नहीं बदला जा सका है. आज जिन कानूनों के सहारे हम दबी-कुचली और उपेक्षित जातियों के उत्थान के प्रयास कर रहे हैं उसका फायदा भी कुछ एक परिवारों या जातियों में किसी एक आध खास जाति तक सिमट कर रहा गया है. हम लीक पर चलने के आदी हैं. किसी ने कहा कि ऐसे चला जायेगा तो चलते ही जाते हैं. ये नहीं सोचते कि वक्त के साथ क्या बदलाव अपेक्षित हैं.
नेल्सन मंडेला नहीं रहे. उनकी प्रासंगिकता सदैव रहेगी. शांति के नोबेल पुरुस्कार से नवाजे गए मंडेला मुझे असल में किसी भारतीय से भिन्न नहीं लगते हैं. यही वजह है कि दुनिया भर के सभी देशों ने उनको अपने सम्मानों ने नवाजा है. भारत ने अपना सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया और पाकिस्तान ने उनको निशान ए पाकिस्तान अर्पित किया है. सम्मान देना अपने आप में व्यक्ति के द्वारा किये गए कार्यों की महानता की और संकेत तो करता ही है, साथ ही हम अपने देश में इसी तरह के खास लोगों के होने के आदर्श को स्थापित करते हैं. तीसरी दुनिया के देशों में मंडेला समान रूप से प्रिय हैं. आर्थिक विषमताओं वाली दुनिया में मनुष्य के एक समान मोल और बराबरी की इज्ज़त का हक सबसे पहली ज़रूरत है. हम जब कॉलेज से निकले तब हमारे सामने मंडेला जैसी एक ज़िंदा शख्सीयत थी. हम उसके कारनामों के बारे में पढ़ रहे थे. उनके भाषण को सुन रहे थे. संयुक्त राष्ट्र संघ उस नेक इंसान के लिए उसके जन्मदिन को रंगभेद विरोधी जागरूकता को बढ़ाने के लिए मंडेला दिवस के रूप में मना रहा था. ये हमारी खुशनसीबी है कि एक जीते जागते लोक नायक को हमने हमारे जीवन में देखा. आने वाली पीढ़ी के लिए कोई नायक आयात थोड़े ही किया जायेगा. हम में से ही किसी को इस समाज के उत्थान के लिए संघर्ष को चुनना होगा. नेल्सन मंडेला के लिए ये सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम अपने समाज में व्याप्त कुरीतियों और जाति प्रथाओं के विरुद्ध संघर्ष करें. अपने देश में मनुष्यता के परचम को फहरा सकें. हाँ सचमुच हर नौजवान पीढ़ी का क्रश प्रेम और क्रांति होना चाहिए.