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वह उसी औरत में ढल गया

उसकी अंगुली को पहली बार छुआ था तब शाम होने को थी. शायद हो चुकी होगी. एक जरा आधे हाथ का फासला था. इससे कुछ देर पहले एक रेस्तरां में बैठे थे. बीयर की छोटी बोतल के पास से कोई नन्हीं बूँद फिसलती और टेबल तक पहुँच जाती.

आदमी की जामातलाशी ली जाती तो उसके पास से ऐसी कोई चीज़ बरामद नहीं होती जिससे उसके अतीत का पता चलता. अक्सर वह जहाँ से उठता सबकुछ पीछे छोड़ आता था. जैसे कि थोड़ी देर बाद वे दोनों बीयर की खाली बोतलों और खाने की प्लेट्स को छोड़कर उठते. बाहर आने के बरसों बाद भी उस औरत को याद रहता कि वह बीयर पी रही है. उसने आदमी के सामने बैठे अपनी प्लेट में खाया है. कोई एक चीज़ थी जो दोनों ने आखिर में बांटकर खायी.

मगर

वह आदमी उस बीयर का, खाने का, उस लम्हे का शुक्रिया कहता. अगले पल सोचता कि अब कहाँ जायेगा? वह कहीं भी जा सकता था. अक्सर वह ऐसे ही गया जब भी गया. जिस तरह बीयर खत्म हो गयी थी. जिस तरह खाना पूरा हो गया था. उसी तरह अगर औरत का इस साथ से मन पूरा हो गया होता तो? आदमी हाथ मिलाता. वह पास आती तो उसे गले लगाता और फिर किसी सराय की तलाश में चल देता. बिना ये सोचे कि इससे आगे वह कहाँ जायेगा.

मोहोब्बत कुछ नहीं होती. अगर कुछ हुई होती यो उसके पास क्या न था. शादी थी. शादी से पहले के रिश्ते थे. शादी के बाद के रिश्ते थे. खत्म हुए रिश्ते थे. उदासीन रिश्ते थे. बिछड़े हुए रिश्ते थे. ज़िन्दा रिश्ते थे. दफ्तर के रिश्ते थे. लम्बी दूरी के रिश्ते थे. इस सब में थे ही सच था. बाक़ी शाम होने और सिगरेट पीने की तलब के सिवा कोई नई चीज़ न थी.

एक रोज़ आदमी ने पाया कि वह उसी औरत में ढल गया है.

शाम होने पर एक दो बार सिगरेट पीने लगा है. दूर तक अकेले टहलते हुए अचानक चौंकता है. उसे सुनाई देता है- “लेट्स डू इट” फिर मुस्कुराने लगता है. हाँ सबकी सज़ाएं होती हैं. उस आदमी की भी यही सज़ा है.

अगर लिखना हो कि उसके जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या रहा? तो वह लिखेगा ज़रा ठहरो, ज़िन्दगी अभी बाक़ी है. जाने कोई गुनाह बाकी ही हो.

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