जब उदास बात आई। उस क्षण अचानक बेचैनी न आई थी। केवल इतना महसूस हुआ कि समय की चाल थोड़ी धीमे हो गयी है। जीवन के प्रवाह में बहे जा रहे थे मगर नदी के रास्ते की किसी किनार पर पत्ते की तरह अटक गए।
जब कभी इस तरह अचानक ठहर आती है। हम अपने क़रीब आ जाते हैं। हम उस चेहरे को पढ़ने लगते हैं। बरसों साथ रहने के बाद भी ठीक से पहली बार देखते हैं।
इस देखने में याद आता है कि जब उसे पहली बार देखा और चाहना जगी थी, तब भी उसे इतना गौर से न देखा था। उसके साथ रहे। चेहरे से चेहरा सटा रहा। घंटों बतियाते रहे। बाहों में खोये रहे तब भी इस तरह उसे न देख पाए थे।
एक उदास बात हमें ख़ुद के कितना क़रीब कर देती है।
जब हम साथ होने जैसे न बचे तब मिले। वह मुलाक़ात आख़िरी मुलाक़ात होगी ये दोनों को मालूम न था। केवल मैं जानता था। इसलिए कि प्रेम में असीम हो जाने के साथ-साथ अक्सर बेहद लघु हो जाना पड़ता है। असीमता के भावावेश में अक्सर नाव उलट जाती है।
हम उससे प्रेम करते हैं मगर जीना चाहते हैं। उस समय हम उसके बारे में बेहद बुरा सोच रहे होते हैं। उन कारणों को कभी भुलाना और मिटाना नहीं चाहते, जिनके कारण हमारे पास दुःख आया।
लेकिन टूटन के बीच जब आप जीना चुनते है। किसी के बेहद पास रहने की चाहना वाला मन, एकान्त चुनता है। उस पल ये भी चुनाव हो जाता है कि हम एक रोज़ सब माफ़ कर देंगे। या अपने आप माफ हो जाएगा।
उदासी के लम्हों में मैंने अकसर किताबों से धूल झाड़ी। अपनी अलमारी को देखा। उसमें बहुत सी ऐसी चीजें पाई जिनको इन दिनों भूल गया था। मुझे याद आया कि मैं कुछ और भी था। मैं केवल उतना भर न था। फिर भी हर वो बात जो कभी हमारे साथ थी और बिछड़ गयी चुभती तो है ही।
एक रोज़ कहीं किसी जगह किसी पल अचानक वही चेहरा याद आता है। मैं पाता हूँ कि सबसे अधिक गहराई से मैंने उसे उसी पल देखा था, जिस पल हम बिछड़ रहे थे। वह उदासी मेरे मन में उसका सबसे अधिक ठहरा हुआ चित्र छोड़ गयी है।
कभी न कभी, किसी न किसी से हमें बिछड़ना चाहिए कि फिर कभी हम जिसके साथ हों उसे खुशी में उतनी ही गहराई से देख सकें।