ऊंट बस का नाम सुना है। कभी देखा है। कभी व्हाट्स एप फॉरवर्ड, जाति के प्रदर्शन, धर्म की अंधभक्ति से बाहर झांका है?
भारत में नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू हो गया है। जिस चालान की ख़बर ने इंटरनेट को हथिया लिया है, वह कोई मसखरी सी लगती है।
हम इस एक्ट को कोस रहे हैं। हमको यही आता है, कोसो और भूल जाओ। हम कुछ दिन बाद इसके अभ्यस्त हो जाएंगे। जिसके पास कार है। जो अस्सी रुपये के आस पास कीमत वाला पेट्रोल भरवाता है। वह दो चार हज़ार में जुर्माने का सौदा पटा भी सकता है। कोई बहुत महंगी बात नहीं है।
कुछ बरस पहले ट्रैफिक में कोड चला करते थे। अपनों के लिये और अघोषित जुर्माना भर चुके लोगों के लिए। जैसे आपके पास हैलमेट नहीं था। आपको ट्रैफिक अनुशासन की पालना करवाने वालों ने रोक लिया। आपने अपने भारतीय कॉपीराइट वाले हुनर से जुर्माना भर दिया। अब आपकी यात्रा तो समाप्त न हुई। अगले चौराहे पर रोके जाओगे। तब दोबारा जुर्माना न भरना पड़ेगा। आप पहले जुर्माने के साथ एक कोड पाएंगे। कोकाकोला, फेंटा, पारले जी, ओके, टाटा या बाय बाय। ये कोड अगले सर्कल पर बताते ही आप के जुर्माना भरे जाने की पुष्टि हो जाएगी। आप द्रुत गति से गंतव्य को बढ़ जाएंगे।
कालांतर में ये व्यवस्था किन्ही कारणों से चरमरा गई।
अब क्या व्यवस्था है ये मुझे मालूम नहीं। हज़ारों रुपयों के चालान की ख़बर सुनकर आपके होश फाख्ता हो जाएं तो क्या अचरज की बात है। मेरे भी होश फाख्ता हैं।
भारत में मोटर व्हीकल एक्ट की आड़ में अनगिनत हत्याएं हुई। उनकी सज़ा केवल लापरवाही से वाहन चलाने तक की रही। सड़क दुर्घटना के नाम पर हत्या एक ऐसा विषय रहा जिसपर सरकारें, न्यायालय और समाज बेहद चिंतित रहे हैं। क्या इसके लिए कठोर कानून की आवश्यकता नहीं है? है।
लेकिन कोई भी बात इकहरी नहीं हो सकती। अगर आप आँख फूटने के डर से बच्चे को गिल्ली डंडा नहीं खेलने देना चाहते हैं तो आपकी ज़िम्मेदारी है कि उसे खेल की दूजी सामग्री उपलब्ध कराएं। उसके लिए फुटबॉल लाकर रखें और गिल्ली डंडा खेलते पाए जाने पर कठोर कार्रवाही करें।
कुछ गोबर के पिण्डारे आज इस कानून की खिल्ली उड़ा रहे लोगों को विदेशों के सख्त कानून की दुहाई दे रहे थे। मैंने ऐसे लोगों को ये भाषण करते हुए भी देखा है कि अमेरिका में बकरियां एक साथ झुंड में चिपक कर बैठती है। अमेरिका और यूरोप में लोग सवेरे जाग कर जॉगिंग को जाते हैं। हमारे यहां के लोग आलसी और देशद्रोही हैं। वे ख़ुद को फिट नहीं रखते।
जहां अधिक ठंड है, वहीं चिपक कर बैठा जा सकता है। जहां गर्मी है, वहां सबको दूर दूर बैठना पड़ता है। जहां ठंड आपके बदन को जकड़ लेती है, वहां आपको अपने बदन में हरकत करनी होती है।
भारत में गर्मी ही होती है। इसलिए आदमी के पास काम करने को केवल दो तीन घण्टे सुबह और एक दो घण्टा शाम का समय होता है। मौसम आपको काम करने की अनुमति नहीं देता। आप हैं कि ठंडे प्रदेशों के लोगों की नक़ल करना चाहते हैं।
भाई भारत में हो तो सुबह उठकर ज़रूरी काम करो। दोपहर आराम करो। शाम को बचे काम पूरे करो। यही सम्भव है।
जब बेहद नुकसान होता है तब नए एक्ट लाये जाते हैं। अमरीका में भी छियासठ में नया मोटर कानून लाया गया था। वजह थी कि गाड़ियां बेलगाम बढ़ी और दुर्घटनाओं से मृत्यु आसमान को छूने लगी।
इस पर लाये गए एक्ट में सड़कों के अंधे मोड़, सड़कों का घर्षण, गाड़ियों की स्थिति और सुचारू परिवहन के लिए अलग लेन पर कड़ा काम किया गया। जितनी ज़िम्मेदारी ड्राइवर की रखी उससे अधिक सड़क निर्माण और यातायात सुरक्षा पर रखी गयी।
चालीस साल पुराने एक्ट में संशोधन करने से चार साल में ही उत्साही परिणाम मिल गए थे। मृत्युदर अविश्वसनीय रूप से कम हुई। सड़क हादसे घट गए। मोटर व्हीकल एक्ट ने सफ़र सुरक्षित बना दिया।
ये कैसे सम्भव हुआ? सड़क रखरखाव और भ्रष्टाचार रहित यातायात प्रबंधन से, केवल इससे नहीं कि कानून बन गया है।
कल एक कलाकार सड़क पर बने गड्ढों पर मूनवॉक कर रहा था। आप जानते हैं न कि चाँद पर जाए बिना मूनवॉक का हुनर हर हिंदुस्तानी के पास है। फिर क्यों अचानक आपको हंसी आए। हम सब जन्मजात मूनवॉकर हैं। हमारी ये योग्यता देश की सत्ता की अविराम नाकामी के कारण है।
देश तीन तरह के होते हैं। एक पूंजीवादी, दूजे साम्यवादी तीजे धार्मिक। सबके अपने अपने दुख हैं। पूंजीवादी देश के मोटर व्हीकल कानून के बारे में दो बातें आपको बताई है। एक बात साम्यवादी देश की बता देता हूँ।
क्यूबा में निजी कारें अमेरिका की उतरी हुई कारें हैं। जो कार अमेरिका में कबाड़ हुई वही क्यूबा के धनी के गले का हार हुई। इसलिए कि क्यूबा की सरकार ने निजी ऐश्वर्य के लिए कुछ न किया। उसने जो बनाया वह सार्वजनिक बनाया। क्यूबा में ही कैमल बसें चलती रही हैं। ये गांव और शहरों में समान रूप से चलती हैं।
क्यूबा में दुर्घटनाओं की रोक के लिए सरकारी यातायात संसाधन बढ़ाये गए। भारत में ऊंट द्वारा खींचे जाने वाली बसों की तरह पिचके कूबड़ वाली बसें क्यूबा में हर जगह चलती हैं। हालांकि उनमें ऊंट की जगह डीजल इंजन का उपयोग है।
धार्मिक देशों में मोटर व्हीकल एक्ट का लगभग ये हाल है कि अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान। जो निकल गया सो निकल गया। जो बख़्शा गया सो माफ़।
हम चौथे क़िस्म के देश हैं। नुई बात नव दिन खोंची तोणी तेरह दिन।
सख़्त कानून और अलभ्य सुविधाएं एक त्रासद मसखरी है। इस पर कोई सवाल करना अपराध है। सरकार से पहले गोबर के पिण्डारे कार्रवाही के लिए तैयार हैं।
आपको पता है? कोई साधारण व्यक्ति पार्किंग के लिए जगह खोजता परेशान नहीं होना चाहता है। कोई गरीब आदमी किसी ऋण से वाहन नहीं उठाना चाहता। कोई भी व्यक्ति ऐसा नही चाहता कि आने जाने की सुविधा होने बाद भी निजी ऐश्वर्य के प्रदर्शन में लाखों खर्च करे।
असल बीमारी कुछ और है, दवा कोई और की जा रही है।
कैमल बस को इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो आपको लिखा मिलेगा। भारत अद्भुत आविष्कारकों का देश है। सच क्या है ये आप ख़ुद सोचना।