उसके इशारे में जाने क्या सम्मोहन था कि मैंने अपनी गाड़ी रोक दी।
उसके थैले में पोस्त का चूरा भरा है। उसने अपनी बंडी में अफ़ीम छुपा रखी है। वह कुछ चुराकर भाग रहा है। उसकी रेलगाड़ी छूट रही है। उसको बस अड्डे तक जाना है। कोई प्रिय अस्पताल में उसका इंतज़ार कर रहा है। वह ख़ुद अस्वस्थ है।
उसके हाथ से इशारा करने के पीछे अनेक वजहों में से कोई भी वजह हो सकती थी। उस वजह का मैं भागीदार हो चुका था। वह नशीले पदार्थ लिए होता तो मैं अपने को निर्दोष साबित करने के लिए भटकता रहता। उसे किसी ज़रूरी काम में कहीं पहुंचना होता तो वह अपनी ज़रूरत में मुझे कैसे याद रख पाता। उसको क्या याद रहता कि शुक्रिया कहना चाहिये।
वह मेरे पास की सीट पर बैठा था।
उसने अपनी एक उलझन कही। पूछा कि इसका क्या हो सकता है। मैंने उसको रास्ता बताया। ऐसा करने से तुम्हारी मुश्किल आसान हो जाएगी। मैंने एक फ़ोन लगाया। उसके बारे में बात की। मेरे कहने से उसे आसानी हो गयी।
इतना होते ही उसने एक नई समस्या मेरे सामने रख दी। मैंने कहा घबराओ मत। इस पर अधिक न सोचो। वह मेरी ओर इस तरह देखने लगा कि जैसे मैं कुछ करूँ। मैंने उसे कागज़ के छोटे से टुकड़े पर एक सिफ़ारिश लिख दी।
वह आदमी चला गया।
कल अचानक दिखा। आगे होकर उसने दुआ सलाम की। मैं किसी उदासी या उधेड़बुन में था। मैंने चाहा कि वह ज़रा देर मेरे पास ठहर जाए। मैं जानता था कि वह मेरी कुछ मदद नहीं कर सकता। लेकिन किसी लगभग अपरिचित का भी ऐसे में दो पल रुक जाना अच्छा होता। शायद मैं समझता कि कोई तो है।
वह जाने लगा तो मैंने उसे कहा। ऐसे न जाओ। बैठो।
इसके बाद क्या हुआ नहीं मालूम मगर मुड़कर देखे बिना चले जाने वाले को जाते हुए देखकर सुकून आने लगा। हमें अधिकतर ऐसे लोग ही मिले थे। वे एक प्रयोजन लेकर आए थे। आवश्यकता पूरी हुई तो चल दिए।
वह एक अफ़ीम ही था। जिसके सम्मोहन में मैंने गाड़ी रोक दी थी। मैं हर बार ख़ुद को कहता हूँ कि ऐसा करने के ख़तरे हैं। हर बार मेरा मन भूल जाता है कि करना क्या है।