माले कैम्प में एक रेस्तरां के आगे गुज़रते हुए ज्यूमा ने देखा लोग खा-पी रहे थे। रेस्तरां के भीतर सिगरेट का धुआँ था। वह एक खिड़की में रखे केक देखने लगा तभी उसके कंधे को किसी ने थपथपाया।
ज्यूमा ने मुड़कर देखा पुलिसवाला था। पुलिस वाले को देखते ही अपनी जेब से पास निकाला और आगे बढ़ा दिया। पुलिस वाले ने कहा "तुम यहाँ क्या कर रहे हो। घर जाओ अंगीठी के पास बैठो और बीयर का मज़ा लो"
इस बात से ज्यूमा को समझ आता है कि पुलिसवाला उस पर तंज कस रहा है। वह पूछता है "क्या आप मुझे जेल भेजने वाले हैं"
ज्यूमा वहां से चलकर ऐलोफ़ स्ट्रीट होता हुआ शहर के चौक तक पहुंचता है। उसका ध्यान गली में एक छत की ओर जाता है। वहाँ छत पर कोई भाग रहा है। भागता हुआ आदमी अचानक छत से फिसल कर लटक जाता है। उस आदमी के पीछे पुलिस वाले हैं।
आदमी का एक हाथ छूट जाता है। दर्शकों को पुलिस वाले धमका कर दूर कर देते हैं। तभी वह आदमी नीचे सड़क पर गिर जाता है। सब उसकी ओर दौड़ते हैं।
भीड़ को हटाते हुए पुलिस वाले आते हैं। लोग हटते हैं लेकिन एक आदमी उसके पास बैठा रहता है। पुलिस वाले पूछते हैं "तुम क्यों नहीं हट रहे"
वह कहता है "मैं डॉक्टर हूँ। इस आदमी का शायद हाथ टूट गया है" ये सुनते ही एक पुलिसवाला डॉक्टर को ज़ोर से थप्पड़ मारता है।
पास खड़े ज्यूमा की मुट्ठियाँ कस जाती है लेकिन भीड़ पुलिस के कहने पर बिखर जाती है। डॉक्टर पुलिस से अनुमति लेकर उस घायल को अपने घर ले आता है।
वह उसकी बाँह का ऑपरेशन करता है।
घायल जागते ही डर जाता है। वह कहता है ये गोरों का घर है। डॉक्टर कहता है "यहां सुविधाएं कुछ अधिक है किंतु ये गोरे का घर नहीं है।"
पुलिसवालों से घबराया हुआ आदमी जिसका एक हाथ टूटा हुआ था। खिड़की से कूद कर भाग जाता है। नर्स के ये बताने पर डॉ चिंतित होता है। वह क्षोभ में ज्यूमा से कहता है "अब तुम जा सकते हो। किसी गवाह की ज़रूरत न रही"
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ये पीटर अब्राहम की कही कहानी है। माले कैम्प की एक घटना। दक्षिण अफ्रीका की आज़ादी से कोई दस एक साल पहले लिखी गयी थी।
अफ्रीका के ही लोग है। अपने ही देश में घर से बाहर निकलने का पास लिए घूमते हैं। पुलिस जिसे चाहे उसे उठाकर बंद कर देती है। माले कैम्प के वे सब लोग, जिस ज़मीन पर जन्मे थे, वहीं डरे हुए जी रहे थे।
पुलिस के अदने सिपाही मददगार डॉक्टर को सरे राह तमाचा जड़ रहे थे। लोग चुप्पी ओढ़कर अपने घरों को चले जाते थे।
एक ज्यूमा था जो इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता था। लेकिन वह भी लोगों व्यवहार के कारण हताश हो रहा था।
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ये कहानी मैंने जोधपुर विश्विद्यालय में पढ़ने के दौरान पढ़ी थी। माने तब तक दक्षिण अफ़्रीका आज़ाद भी न हुआ था।
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भय के बारे में तुम क्या जानते हो? क्या मुझे इस पोस्ट के साथ कोई तस्वीर लगानी चाहिए?
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