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Showing posts from May, 2020

दो सूखे पत्ते नम मिट्टी में

एक रोज़ कोई कोंपल खिली जैसे नज़र फेरते ही किसी ने बटुआ पार कर लिया हो। एक रोज़ उससे मिला। फिर उससे ऐसे बिछड़ा जैसे खाली बटुए को किसी ने उदासी में छोड़ दिया। एक रोज़ मालूम हुआ कि बटुआ नहीं चाहिए था, उसी को चुराना था, जिसका बटुआ था। एक रोज़ कोई पत्ता दूजे पत्ते के पास इतनी शांति और चुप्पी के साथ गिरा कि आंखें हैरत से भर गई। मैं अक्सर सोचता हूँ कि हम दो सूखे पत्ते नम मिट्टी में दबे पड़े हैं। हम कभी-कभी मिट्टी से बाहर झांकते हैं और मौसम देखकर दोबारा एक साथ दुबक जाते हैं।

तुम्हारे इंतज़ार में - 2

कमलदल से भरे तालाब के किनारे बैठी नायिका सहसा लजा गई। कि हवा के चूमने से फूल लरज़ कर सहम गया। अभी-अभी देखा एक चुम्बन जड़ों तक उतर गया जैसे कभी-कभी न मिल पाने की बेकसी आत्मा तक उतरती है। ______ कुछ तस्वीरें बेसबब, कुछ ख़त उसके नाम। Comments

उसके बिछड़ने की बात

  उदास सन्नाटे में अचानक आई याद की तरह दोपहर पर उतरती किसी पुरानी सांझ की तरह। वो जो मिला नहीं, उसके बिछड़ने की बात। कैसा मौसम था, याद नहीं रहा। ज़रा ठंडी हवा थी। ज़रा से ज़रा सी ज़्यादा एक बात थी। जिस हाथ ने उसके हाथ को छुआ था, उसी हाथ को कुछ देर देखता रहा। उसके साथ होने से अचानक तन्हा हो जाने पर तलब जागी। एक गहरी हूक सी तलब। गले के सूखेपन से टकराकर उसके नाम का पहला अक्षर गले में ही ठिठक गया। सड़क पर भीड़ थी लेकिन जाने क्यों लगा कि सबकुछ वही बुहार कर अपने साथ ले गया, एक वह पीछे छूट गया है। ऑटो वाले कहीं पहुंचा देना चाहते थे लेकिन उसे जहां जाना था, वह रास्ता उसने पूछा न था। इसलिए वह आवाज़ों को अनसुना करते हुए आगे बढ़ गया। बेरिकेड्स से थोड़ा आगे महानगर की चौड़ी सड़क के किनारे खड़े सब लोग कहीं पहुंच जाना चाहते थे। वह कहां जा सकता था? इसलिए एक खोखे की ओर बढ़ गया। अल्ट्रा माइल्ड है? खोखे वाला ज़रा सा नीचे झुका। उसने एक सिगरेट आगे बढ़ा दी। एक और कहते हुए तीली सुलगा ली। वह खुद को याद दिलाता रहा कि तीली को फेंक भी देना है। अंदर बाहर हर जगह एक दाह से भर जाना अच्छा नहीं है। कहीं दूर से आवाज़ें आने लगी। खोखे...

रोटी एक पहिया हो गयी है

पीछे क्या छूटा कि जाना कहाँ है। एक भूला हुआ आदमी ख़ुद से पूछता है। * * * सूखे पत्तों के बीच सरसराहट की तरह एक डर दौड़ा आता है कि रोटी एक पहिया हो गयी है ढलान में दूर भागी चली जाती है। * * * उसकी अंगुलियां रेत पर गोल-गोल क्या उकेरे जाती थी। कि आकाश में एक पूरा चाँद कांपता रहता था। * * * दुःख जिन दुःखों को छोड़कर चले आए थे आज उन्हीं दुःखों तक लौट रहे हैं। एक पागल वहीं पड़ा है बुझी हुई तीलियों को माचिस की खाली डिबिया में डालता। * * * तुमने किसी को देखा है दुःख उठाकर अपने पुराने दुःख तक लौटते हुए। एक आदमी ये सवाल करता है या उत्तर देता है नहीं मालूम। * * * उसकी उदास आंखों ने कहा कि लाख करम फूटे मगर। मगर तुम जिस दुनिया में पैदल चल रहे हो वह दुनिया तुम्हारे लिए अजनबी न हो जाए। * * * मैं चाहता हूँ कि हमारे प्यार के बारे में लिखता ही रहूँ। मगर सड़क पर चलते ख़ानाबदोश हुए मासूम बच्चों की याद से सिहर कर चुप हो जाता हूँ। * * * इस सबके बीच भी कभी-कभी मुझे लगता है कि सब ठीक हो गया है। मैं तुम्हारे मिलने के वादे के इंतज़ार में खड़ा हूँ और तुम सचमुच मेरी ओर चले आ रहे हो। * * * छायाकार - मानविका।  

घर कितने दूर हो गए हैं

मैं अपनी हंसती हुई एक तस्वीर पोस्ट करके ग़मज़दा हो जाता हूँ। चलचित्र की भांति सैंकड़ों तस्वीरें मेरे सामने से गुज़रने लगती हैं। मैं अपनी तस्वीर पर शर्मिंदा होने लगता हूँ। प्रसव के घण्टे भर बाद मीलों पैदल चलती माँ की तस्वीर। लँगड़ा कर चलते-चलते बैठ गए बच्चे की तस्वीर। उदासी और क्षोभ से भरे युवाओं के गले से रिसती आवाज़ों की तस्वीर। सड़क किनारे मोबाइल पर बात करते रोते हुए अधेड़ की तस्वीर। मुंबई से चलकर अयोध्या जाते तीन दृष्टिहीन वरिष्ठ नागरिकों की तस्वीर। घर लौटते हुए सायकिल सहित सड़क पर कुचल गए आदमी की तस्वीर। तस्वीरों का चलचित्र भयावह है। मैं बेचैन होकर आंखें बंद कर लेना चाहता हूँ। ग़रीब ख़ुद को घसीटकर घर ले जा रहा है। एक श्वान दूर देश से हवाई जहाज में आया है। उसका ऑफिशियल स्वागत किया जा रहा है। जुए के एक तरफ बैल दूजी तरफ एक आदमी है। वे मिलकर एक लंगड़ाती बैल गाड़ी को खींच रहे हैं। ग़रीब परिवार को एक बैल बेचना पड़ गया है। एक किशोरवय लड़का बैल की जगह जुत गया है। इस परिवार को जाने कब बचा हुआ बैल भी बेचना पड़ सकता है। घर कितने दूर हो गए हैं। मैं लॉक डाउन में अविराम ड्यूटी कर रहा हूँ। मुझे कोई तकलीफ नहीं है।...

इंतज़ार से भरी सुबहें

  ||तुम्हारे इंतज़ार से भरी सुबहें|| कुर्सी पर सूखे पत्ते पड़े होते कोई फूल टूटकर पत्तों के आस पास गिरता। सुबह की हवा में नीम नींद से भीगा हुआ मैं अलसाया एक मोढ़े में दुबका रहता। कभी-कभी मुझे लगता कि तुमने मेरे पैरों पर चादर डाल दी है। मैं हड़बड़ा कर उठता कि तुम चले तो न जाओगे। हवा के झौंके के साथ सब पत्ते बिखर जाते।

कि माँ कहीं दूर नहीं हो सकती

  रेत में नाव बही जा रही थी। हतप्रभ डॉक्टर देख रहा था। उसने कहा- "मैं विश्वास नहीं कर सकता कि रेत में नाव बह रही है" मैंने कहा- "सही कह रहे हो" हवा का बहाव तेज़ होते ही नाव भी तेज़ हो जाती। डॉक्टर ने एक बार मुझे छूकर देखा। शायद वह जानना चाह रहा था कि ये कोई भ्रम तो नहीं है। "क्या ये नाव वहां तक जा सकती है?" डॉक्टर ने पूछा। मैंने कहा- "ये नाव तभी कहीं जाती है जब प्रेम हो" डॉक्टर ने कहा- "हाँ मुझे बहुत प्रेम है।" इसके बाद डॉक्टर ने अपने प्रेम के बारे में बताया तो मैं सोचने लगा। मुझे सोचते देखकर डॉक्टर चिंतित हुआ। उसने बेसब्र होकर पूछ लिया "क्या ये नाव वहां तक नहीं जा सकती" मैंने कहा- "जो कोई भी प्रेम करता है, वह इस नाव से अपने प्रेम तक जा सकता है लेकिन..." "लेकिन क्या..." "माँ तक नहीं जाया जा सकता। कि माँ कहीं दूर नहीं हो सकती। माँ तक जाने के लिए नाव से उतरना पड़ता है।" "तुम उतरे हो कभी?" डॉक्टर ने पूछा। मैंने कहा- "हाँ। मैं अपनी दुनिया से भरी नाव से उतर जाता हूँ तब मुझे माँ सामने खड़ी मि...

अगर तुम प्रेम करते

  रेत में पड़ी नाव में बैठकर दूर तक की यात्रा की जा सकती है। मैं बेसब्र अक्सर नाव में खड़ा भी हो जाता हूँ कि अब कितना दूर है। अचानक नाव, दीवार से टकरा कर रुक जाती है। वह अधीर दौड़ती हुई अपनी खिड़की के पास आ रही होती है, जहां मेरी नाव रुक गयी है। डॉक्टर ने पूछा कितनी यात्राएं कर चुके हो। मैंने इनकार में सर हिलाया। मेरे बालों से झड़ती बालू रेत से डॉक्टर की मेज़ ढक गयी। वह रेत में डूबता जा रहा था कि मैंने उसे अपनी नाव में बिठा लिया। बदहवास डॉक्टर को होश आया तो उसने पूछा कि ये नाव कहाँ कहाँ जा सकती है। मैंने कहा- "ये कहीं भी जा सकती है अगर तुम प्रेम करते हो।"