पीछे क्या छूटा
कि जाना कहाँ है।
एक भूला हुआ आदमी
ख़ुद से पूछता है।
* * *
सूखे पत्तों के बीच
सरसराहट की तरह
एक डर दौड़ा आता है
कि रोटी एक पहिया हो गयी है
ढलान में दूर भागी चली जाती है।
* * *
उसकी अंगुलियां रेत पर
गोल-गोल क्या उकेरे जाती थी।
कि आकाश में
एक पूरा चाँद कांपता रहता था।
* * *
दुःख जिन दुःखों को छोड़कर
चले आए थे
आज उन्हीं दुःखों तक लौट रहे हैं।
एक पागल वहीं पड़ा है
बुझी हुई तीलियों को
माचिस की खाली डिबिया में डालता।
* * *
तुमने किसी को देखा है
दुःख उठाकर
अपने पुराने दुःख तक लौटते हुए।
एक आदमी
ये सवाल करता है या उत्तर देता है
नहीं मालूम।
* * *
उसकी उदास आंखों ने कहा
कि लाख करम फूटे मगर।
मगर तुम जिस दुनिया में पैदल चल रहे हो
वह दुनिया तुम्हारे लिए अजनबी न हो जाए।
* * *
मैं चाहता हूँ
कि हमारे प्यार के बारे में
लिखता ही रहूँ।
मगर सड़क पर चलते
ख़ानाबदोश हुए मासूम बच्चों की
याद से सिहर कर चुप हो जाता हूँ।
* * *
इस सबके बीच भी
कभी-कभी मुझे लगता है
कि सब ठीक हो गया है।
मैं तुम्हारे मिलने के वादे के इंतज़ार में खड़ा हूँ
और तुम सचमुच मेरी ओर चले आ रहे हो।
* * *
छायाकार - मानविका।