हमारे बीच सीढ़ियां थी फिर भी हम ठहरे रहे।
आकाश में सफ़ेदी में घुली नील जैसा छोटा सा बादल देखता हूँ। ऐसा लगता है कि आकाश इंतज़ार है। बादल एक उम्मीद है।
सूने आकाश में बादल देखकर जून की उमस में तन्हा चुप खड़ा हुआ कोई पेड़ याद आता है। दूर तक पसरी धूप में छांव की एक गोल बिंदी याद आती है।
रात होते ही आकाश वैसे दिखना बन्द हो जाएगा, जैसे अब दिख रहा है। अंधेरे में अनगिनत तारे चमकते होंगे। इंतज़ार का रंग स्याह हो जाएगा। याद की सिल्वर लाइनिंग फिर भी बादल को बचाये रखेगी। जैसे उम्मीद बची रहती है।
अपनी नंगी बांहों पर हवा के भारहीन स्पर्श से ख़याल टूट जाते हैं।
एक ठहरा हुआ बादल मन के विस्तार में किसी याद की तरह आहिस्ता सरकता जाता है। कुर्सी तक धूप आने वाली है। मैं कुर्सी पर इस तरह बैठा हुआ हूँ जैसे स्थिर पानी पर सूखा पत्ता पड़ा रहता है। कभी दाएं बाएं झांकता है और फिर अपने आप में खो जाता है।
मन के तालाब में सूखे पत्ते की तरह कोई याद अकारण एक से दूजे कोने तक तैरती रहती है।