मादक वनैली गन्ध और तुम्हारे नाम के बीच कितना कम फासला है।
तीन दोपहरों से पसीना चू रहा था। मैं अपने अंगोछे से माथे का पसीना पौंछता था। उस अंगोछे से एक परिचित गन्ध आती थी। रंगों की गंध। मैं समझने लगता कि तुम भी कोई रंग ही हो।
इस समय खुले आंगन में कुर्सी पर अधलेटा हूँ। सामने छपरे पर पसरी अमृता के दिल जैसे पत्ते अंधेरे में कहीं-कहीं चमक रहे हैं। पत्तों के ऊपर बादलों के असंख्य फाहे हैं। आकाश से हल्की बूंदें गिर रही है।
कौन कह सकता था कि उमस की घुटन से भरा क़स्बा अचानक किसी ऊंचे पहाड़ी गांव सा हो जाएगा। बादलों के फाहों के बीच लोग चल रहे होंगे। लिबास नमी से भर जाएंगे।
ठीक इसी तरह हम चुप रहते हैं। उसे कुछ कहते नहीं। उसका इंतजार करते हैं। बेख़याली में समझते हैं कि कुछ है नहीं। जाने दो। कहाँ रेगिस्तान और कहां वे पानी भरे बादल। एक रोज़ अचानक हम उनकी बाहों में पड़े होते हैं। न पड़े हों तो भी सोच सकते हैं कि ऐसा भी हो सकता है।
कभी-कभी दूर बिजली चमकती है जैसे कंगन पर कोई रोशनी गिरी हो। कभी-कभी हल्की डूबी आवाज़ आती है जैसे कुछ गिर गया है। क्या? शायद, हमारे बेतरतीब पांवों से टकरा कर बिस्तर के किनारे रखी सुरमेदानी या लाइटर। कभी तेज़ लेकिन डूबी हुई आवाज़ आती है जैसे कहीं दूर कोई बहुत भारी चीज़ गिरी, जो गिरकर दोबारा न उछली।
मुझे फूलों की ख़ुशबू आ रही है। बादलों से बूंदें बरस रही है। बियर केन बर्फ के बक्से में पीसा की मीनार की तरह झुका पड़ा है। सोच रहा हूँ कि तुम मेरे इंतज़ार में आकाश में उड़ते बादल देख रहे हो।
ऐसी रातें उतनी ही मोहक होती है, जितना तुम्हारा नाम या मादक वनैली गंध। सचमुच।
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