कुर्सी पर बैठे, आंगन में पैर फैलाये बेसबब आसमान देखते जाना। कभी बहुत महीनों बाद कहीं जाने का सोचना। किसी मुलाक़ात का ख़याल आना। कहीं होकर कहीं न होना सोचकर मन मुस्कुराते जाना।
कहीं संजीदा शाम गुज़ार देने, कभी दूर तक साथ पैदल चलने और कभी अब तक का सबकुछ भूल जीने का ख़याल कितना अच्छा होता।
रात देर तक जागना। सुबह अलसाये पड़े रहना।
लेकिन कभी-कभी वक़्त इस तरह ठहर जाता है जैसे किसी पुरानी तस्वीर के सामने खड़े हो गए हैं।