मैं एक बेचैन आदमी था इसलिए एक अच्छा जुआरी था।
जुआ में
कोई जीतता नहीं था
एक दिन सब हार जाते थे।
हर बार हारकर मैं जुआरी,
सोता था ये तय करके
कि अब कभी कोई जुआ न करूँगा
मैं जागते ही जुआरियों को ढूंढने लगता था।
मुझे मेरा अंजाम मालूम था
एक दिन चौपड़ के बाहर पड़ा होऊंगा
घिसे हुए पासे की तरह
फटे ताश के पत्ते की तरह।
लेकिन जुआ
ज़िन्दगी को भूलने का सबसे बढ़िया तरीका है
यही सोचकर कभी कोई अफ़सोस न हुआ।
* * *