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कितना।

मैं एक उड़ती निगाह से उसके चेहरे को कितना पढ़ सकता था?
चेहरे को देखा तो लगा कि शांति पसरी हुई है। उसके होंठ अधखिले बन्द हैं। आंखें मौन से आच्छादित। कुछ लटें जो बढ़कर गालों को चूम लेना चाहती थी, सिखलाए बच्चे की तरह बैठी थी।
पानी मोड़ पर जिस तरह हल्का बल खाते हुए उचकता है मैंने उसी तरह मुड़कर देखा था। सोचा कुछ कह दूं। फिर मैंने मौन की गहराई में तलछट तक झांकना चाहा मगर देख न पाया। स्वयं से कहा- "चुप रहो।"
शायद झिझक थी। पहचान में बची हुई अजनबियत की झिझक। बहुत बरसों से थोड़ा सा जानने की और उस क्षण तक कुछ न कहे जाने की झिझक।
सोच की वनलता पर झूलते हुए मैं बालकनी से बाहर झांकने लगा।
पत्तों के बीच अकेली चिड़िया ने जाने किसके लिए गाया। आस-पास कोई न था। मुझे लगा कि गाना सुख को सींचना होता होगा। या किसी ने कहा होगा कि हम मिलेंगे तुम गाते रहना।
दाएं बाएं दो तीन बार पल भर की निगाह डालकर चिड़िया उड़ गई। क्या सब ऐसे ही बिना किसी इच्छा से बंधे उड़ सकते हैं। कि अभी यहीं थे और अब नहीं हैं।
दोपहर उतर आई है। दूर तक धूप है। आकाश में रेत है। हवा में सरगोशी है। छतें सूनी है। सड़कें खाली हैं। बस एक मेरा मन है, जो भरा-भरा सा है। मैं अतीत की अनगिनत चीज़ों को टटोल रहा हूँ। ऐसा नहीं है कि ये बेसबब है।
सबको कुछ चाहिए होता है। ये नहीं मालूम कि कितना।

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शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

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