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कौनसे अमीश

मिथक एक समझदार व्यक्ति हैं, इतिहास बचपना है।

प्रसिद्ध लेखक अमीश से एक बातचीत को इंडियन एक्सप्रेस ने छापा है। आज के अख़बार का एक पन्ना आइडिया एक्सचेंज के तहत इसी बातचीत का है। 

एक बहुत बिकने और पढ़े जाने वाले लेखक का साक्षात्कार जिसे 'न्यूज़ मेकर इन न्यूज़' रूम कहकर प्रकाशित किया है, एक ज़रूरी बात है। इसे पढ़ा जाना चाहिए ताकि आप समझ सकें कि लेखक एक प्रवक्ता नहीं होता है। लेखक जो सोचता और महसूस करता है, वह उसके रचनाकर्म से बहुत अलग भी हो सकता है। 

शिवा ट्रायोलॉजी से बात आरंभ करते हुए पूछा गया कि चुनौतियां क्या रही? 

इसके जवाब में अमीश ने कहा कि लेखक को अपने लेखन में विचार और दर्शन का समावेश करना चाहिए। भले ही पाठक आपसे सहमत हो या नहीं। मैं उनकी इस बात से सहमत होता हूं। ये इस समय का सत्य है कि विचार और दर्शन से अछूता लेखन हमारे आस-पास पसरा हुआ है। वास्तविकता ये है कि वही बिक भी रहा है।

एक प्रश्न के जवाब में कहते हैं कि अकीरा कुरुसोवा की राशोमोन। ये पढ़कर मैं सोचता हूं कि वे आगे कहेंगे रियोनुसुके अकुतागावा लेकिन एक लेखक दूसरे लेखक का नाम नहीं लेता। वह केवल फ़िल्मकार को याद करता है। रियोनुसूके अकुतागावा को जापान का प्रेमचंद कहा जाता है। तो समझ आता है कि अमीश साक्षात्कार में उस पाठक तबके को संबोधित कर रहे थे, जिसके लिए श्रेष्ठ साहित्य वह है, जिस पर सिनेमा रचा गया।

आप विवादों से कैसे दूर रहते हैं?

अमीश कहते हैं कि कलाकार खुद विवाद खड़े करते हैं। ये एक व्यापारिक या व्यावसायिक योजना होती है। लेकिन मैं जिनके बारे में लिखता हूं, उनकी पूजा करता हूं इसलिए मैं कोई विवाद खड़ा करके किताबें नहीं बेचना चाहता हूं। वे इसके पक्ष में बाहुबली फ़िल्म का उद्धरण देते हुए समझाना चाहते हैं कि नायक एक भक्त है और वह पूजा करता है, इसलिए एक शिवलिंग को उखाड़ना और झरने के नीचे रखना ठीक है। 

मुझे अमीश की किताबों के अनगिनत विज्ञापन याद आते हैं। कैंपेन भी स्मृति में सरकने लगते हैं। किताब बेचने का कोई भी माध्यम अछूता नहीं दिखता। साथ ही सोचता हूं कि वे कौन लेखक हैं, कितने हैं? जिन्होंने कोई विवाद खड़ा करके किताब बेच ली है। फिर सहसा मैं इस जवाब को इस तरह समझता हूं कि अमीश भारत की बात ही नहीं कर रहे। वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लेखन के क्षेत्र की लघु प्रचलित प्रथा अथवा दुर्घटनाओं तक जा पहुंचे हैं।

एक प्रश्न पूछा गया है कि ए के रामानुजन का लेख तीन सौ रामायण पर विवाद रहा। इस कारण उसे दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया। इसके जवाब में अमीश कहते हैं कि वे इसके बारे में अधिक नहीं जानते किंतु रामायण के विविध पाठ हैं। 

मैं भी इसी पक्ष में लगभग खड़ा रहा हूं कि अधिसंख्य मिथकीय कथाएं कबीलों और आदिवासियों द्वारा रची गई हैं। कालांतर में उनका अधिग्रहण उच्च और भद्र कहे जाने वाले समाज ने कर लिया है। 

अनेक पाठ होने से ही एक समृद्ध रचना को समाज के सामने रखा जा सकता है। इन कथाओं के कथाकार अनेकानेक लोग रहे हैं। जिन्होंने रचना की कमियों और रचना पर उठने वाले प्रश्नों का सही हल खोजा और रचना को समृद्ध किया।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में एक प्रश्न का जवाब देते हुए अमीश ने कहा है कि भारत का पहला संविधान संशोधन इसे छीनता है, जबकि अमेरिका का पहला संशोधन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उपलब्ध कराता है। 

अमीश से मिथक और इतिहास के बारे पूछा गया। इसके जवाब में अमीश ने कहा कि इतिहास का दावा करने वाले उन बच्चों जैसे हैं, जो कहते हैं, मेरा सत्य ही सत्य है। जबकि मिथक एक समझदार व्यक्ति हैं। वे कहते हैं कि सत्य क्या है, ये कौन जान सकता है। ये इस बातचीत का शीर्षक भी है। शायद ये कोई विवादित बात नहीं है!

मगर ये कैसी बात है कि संविधान से अपेक्षा करने वाला लेखक इतिहास को बचपना कहता है और मिथक को सत्य। मैंने दो बार पढ़ा मगर मुझे ऐसा ही समझ आया। हालांकि आंग्ल मेरी भाषा नहीं है और मेरा हाथ इसमें बहुत तंग है, इसलिए संभव है कि अल्प भाषाई ज्ञान से मैंने लेखक के कहे का गलत अर्थ ग्रहण किया हो।

इस साक्षात्कार में और भी प्रश्न और उत्तर हैं। संभव है कि उनको पढ़कर आप अपने प्रिय लेखक के दर्शन और रचनाकर्म को थोड़ा सा जान सकें।

वस्तुतः मैंने ये सब इसलिए लिखा कि रचनाकार होने या होने की कामना में ऐसे साक्षात्कारों, मंचों और प्रचार से बचना चाहिए। ये आपको किताबें बेचने में तो मदद करते है किंतु एक संशय भी रचते हैं। 

आप किसी लिट फेस्ट में किसी बात से आहत होकर लेखक बन गए हैं तो ज़रूरी नहीं कि व्याख्याता भी बेहतर हैं। आप जिस दर्शन की पैरवी करते हैं, उसी के साथ खड़े भी रहिए। दिखिए कहीं और बिकिए कहीं से बचते रहिए। 

[प्रश्नोत्तर साभार इंडियन एक्सप्रेस दिनांक चौबीस अक्टूबर दो हज़ार बारह।]

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