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मित्र और वैचारिक प्रतिबद्धता


मित्रता एक चुना हुआ संबंध है. इसके बारे में एक बात को साफ समझना चाहिए कि मित्रता किसी अन्य सामाजिक भूमिका से जुड़ी हुई नहीं होती है। दो करीबी मित्रों के बीच एक सामान्य संबंध की अन्य मूलभूत विशेषताओं में पारस्परिकता, एक-दूसरे की संगति का आनंद लेने की प्रवृत्ति, विश्वास, सहायता, स्वीकृति, स्वाभाविकता, समझ और अंतरंगता शामिल हैं। मोरल, पॉलिटिकल और स्प्रिचुअल प्रेम पर लिखी गई गैरी चार्टर की किताब अंडरस्टैंडिंग फ्रेंडशिप में ये समझाया गया है। 

मैंने अपने अनुभव से जाना है कि दो विपरीत विचारधाराओं से प्रेरित व्यक्ति मित्र हो सकते हैं किंतु इसकी आवश्यक शर्त है कि वे व्यक्ति और वैचारिक प्रतिबद्धता को अलग अलग समझते हों। विचार के लिए एक मित्र, यदि व्यक्ति का विरोध करने लग जाएं तो अवश्य ही वह कथित मित्रता बहुत जल्द शत्रुता में बदल जाएगी। 

अधिसंख्य जनसमुदाय को वैचारिक भिन्नता का सम्मान करने की समझ ही नहीं है। उसकी वैचारिक समझ पाशविक समझ से भी कम होती है। पशु अपने शत्रु को भली भांति जानता है किंतु वह हर समय शत्रुओं के नाश के स्थान पर अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। वह अपने अच्छे जीवनयापन के लिए प्रयासरत रहता है। इससे अलग, व्यक्ति अकसर एक बार में बन गए मत के खोल में घुस जाने के बाद कुछ और नहीं सोच सकता। वह एक भयावह मारो और मारने के लिए मर जाओ की प्रत्यंचा पर चढ़ जाता है।

एक कहावत है कि नकली मित्र रेगिस्तान की मिरीचिका सा होता है। वह पास ही दिखता रहता है लेकिन आवश्यकता में आप जब तक उसका साथ पाएं, वह गायब हो जाता है। अनगिनत व्यक्ति ऐसे मित्रों से घिरे होते हैं। उनके गायब मित्र आसानी से देखे जा सकते हैं। इस पर हमको ये समझना चाहिए कि वस्तुतः गलती चुनाव की है, न कि मरीचिका की। वह तो छल या भ्रम ही है। उसकी यही प्रवृति है। 

वैचारिक लड़ाई में अगर आप अपने मित्रो से अपेक्षा करते हैं तो आपको स्वयं को पुनः शिक्षित करने की आवश्यकता है। आपको ये समझना होगा कि आप जिस विचार के लिए खड़े हैं, उसी विचार के लिए आपके साथ खड़ा हुआ व्यक्ति आपका मित्र नहीं है। मित्रता और वैचारिक प्रतिबद्धता का साथ दो बहुत अलग बातें हैं। इसलिए आवश्यक है कि विचार की लड़ाई में व्यक्ति पर हमला नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा करते ही आप वैचारिक कार्यकर्ता के स्थान पर व्यक्तिगत झगड़ालू रूप में आ गए हैं। 

मेरी अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता है कि समाज में हर व्यक्ति समान है और समानता का अधिकार होना चाहिए। जन्म, लिंग, वर्ण, रंग, भूगोल इत्यादि से मनुष्य को उच्चतर या कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। लेकिन मैं कबिलाई जींस को स्वीकार करता हूं। आदिम समाज से अब तक के लगभग असहिष्णु समाज तक में जाति, संप्रदाय और धर्म एक विचार में एकजुट हैं कि स्त्री सदा पुरुष की तुलना में कमतर समझी जाए। 

इस विडंबना के साथ जीते हुए हम कभी हताश थोड़े ही हो जाते हैं। हम मानते हैं कि बदलाव बहुत धीमा है। कुछ भी आशाजनक नहीं है लेकिन अपने वैचारिक पक्ष को परिवार और समाज में देखना चाहते हैं। अपने घर में बराबरी की सोच को एक सामान्य स्थिति के रूप में विकसित करना चाहते हैं। मनुष्य को मनुष्य समझने की समझ को आगे बढ़ाना चाहते हैं। 

यही प्रयास कोई और व्यक्ति करता हुआ दिखता है तो वह हमें भला लगता है। हम उससे अधिक मिलना, उसके साथ बैठना और अधिक वक्त बिताना चाहते हैं। ऐसा करते हुए हम भूल से उसे अपना मित्र समझ बैठते हैं। ये भूल जाते हैं कि वह केवल वैचारिक मित्र है। 

मेरे बहुत कम मित्र हैं। ऐसा नहीं है कि वे स्थाई हैं। उम्र के हर मोड़ पर पुराने मित्र बिछड़ते रहे और नए बनते गए हैं। मित्र का बिछड़ना ठीक है, शत्रु हो जाना हमारी समझ पर सवाल खड़ा करता है। बहुत सी ऐसी कहावतें कही जाती हैं कि रंगा सियार था, आस्तीन का सांप था। था तो आपने उसको बिना जाने मित्र बनाया। आप किसी लोभ में अंधे हो रखे थे। उसका रंग भला लग रहा था। लग रहा था कि अपनी आस्तीन में बैठा है तो दूजे को डसेगा। बस यही सब। और कोई वजह नहीं है कि वह आपका शत्रु क्यों बना है।

मैं इधर बहुत सारे व्यक्तियों को देखता हूं, कुछ तो इतने चतुर हैं कि अपनी सुविधा से एक ही प्रकार की घटना पर बोलना या नहीं बोलना तय करते हैं। इस समय शारीरिक हिंसा पर अनेक मुखर लोग हैं, वे दसियों बरसों से गहरी नींद में थे। उस समय जब लोग इस प्रकार की हिंसा के विरोध और समानता के कानून से बंधे समाज के निमार्ण की बात करते थे, उनको ढोंगी कहते रहे। लेकिन अब वे बोल रहे हैं तो भी मैं उनके पक्ष में हूं। देर आयद दुरस्त आयद। अगर ये सियारों की हू हू नहीं है तो।

वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए व्यक्तियों से व्यक्तिगत मत उलझिए, इसके स्थान पर विचार का अध्ययन कीजिए। आप में उसी की कमी होने की अधिक संभावना है। आप विश्वास रखिए कि आप जिस किसी विचार के समर्थन में हैं, उसकी हत्या नहीं की जा सकेगी। आप बस रंग और आस्तीन की गुदगुदी को पहचानिए। भला मित्र मिलना कठिन काम है मगर खोज में लगे रहिए। और कभी कभी सुकरात के बारे में पढ़ लीजिए कि आपको समझ आए "भीड़, विवेक को खा जाती है।"

अच्छे दोस्त बने रहने के लिए अच्छे मनुष्य बनते जाइए। आप बहुत ज़रूरी हैं।

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