सूखे पतंगों की तरह
कभी जब मन सौ घोड़ों पर सवार होता है, तब कोई सिरा पकड़ नहीं आता। कभी लाख चिंताओं की धुंध में मालूम नहीं होता कि घोड़े किस तरफ़ भाग गए हैं। कभी हम अचानक पाते हैं कि सब ठीक है। मन के अस्तबल में शांति पसरी है। किसी पुराने प्रेम को दयालुता के साथ स्मृत करते हैं। अपने तमाम टूटे-बिखरे, बचे-लुटे संबंधों को दोषमुक्त कर देते हैं। उस समय हम अपने बहुत पुराने वर्शन तक पहुँच जाते हैं।
मैंने कई वर्षों के पश्चात कल दो पंक्तियाँ लिखीं। याद आया कि मेरा ऐसा लिखना रोज़ की बात थी। मैं बातें बेवजह लिखकर प्रसन्न रहता था। कल पुल पर खड़े लैम्पपोस्ट को देखता रहा।
लैम्पपोस्ट के बारे में कुछ बेवजह की बातें।
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पतंगों के लिए जल रहे थे
कि राहगीरों के लिए
लैंपपोस्ट देखकर मालूम न होता था।
हमें किसका इंतज़ार है, ये भी ख़बर न थी।
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कभी-कभी उनके पास रुककर
हमने इंतज़ार किया।
बिना रोशनी के लैंपपोस्ट भी
अनकहे ठिकाने थे।
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समय के साथ
अकसर लैम्पपोस्ट उखड़ कर गिर जाते हैं
मगर जाने कैसे कोई एक बचा रह जाता है।
ठीक ऐसे
तुम्हारे मेरे बारे में हमारी लाख बातें थी
हम सब भूल गए
मगर एक बात याद रह गई हो जैसे।
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कि बेख़याली में चलते हुए
अचानक तुमने
हाथ पकड़ कर अपने निकट कर लिया था।
जैसे बरसों से बुझा हुआ कोई लैम्पपोस्ट
अचानक रौशन हो जाए।
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हमारे होंठ
उतने ही दीप्त थे
जितना कुहासे में घिरे लैम्पपोस्ट का
पीला उजास दिखता है।
मगर हमारी चाहना
पतंगों की तरह झर रही थी।
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हमने सोचा
बिछड़ गए तो
किसी तन्हा लैंपपोस्ट की तरह रह जाएँगे।
हर मौसम में किसी एक याद से भरे चुप खड़े हुए।
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प्रेम में पड़ते ही
हमने किसी चमत्कार के बारे में नहीं सोचा।
हम जहाँ थे
समय को बस वहीं रोक लेना चाहते थे।
हम किसी लैंपपोस्ट की जाली में
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एक रोज़ हम इतने दूर हो गए
जितना दूर पहाड़ का झरोड़ा
और रेगिस्तान की दीबरी रहते हैं।
लैम्पपोस्ट केवल सपनों में आते रहे।
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धन्यवाद।