कुछ अपना ईजाद करना

 नक़ली सामान का फेरी वाला बनकर लोगों को मत ठगना। 


अफ़ज़ाल अहमद सय्यद की कविता का अंश है। 

काग़ज़ मराकशियों ने ईजाद किया
हुरूफ़ फ़ोनीशियों ने
शाइरी मैं ने ईजाद की। 

क़ब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर क़ब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वालों ने क़तार ईजाद की
और मिल कर गाना सीखा
रोटी की क़तार में जब च्यूंटियाँ भी आ कर खड़ी हो गईं
तो फ़ाक़ा ईजाद हो गया। 

कलाकार हो तो कुछ अपना ईजाद करना। अपनी शैली बनाना। अपना ढब रचना। अपने तत्व चुनना। भाषा का अपना ढंग गढ़ना। 

मैं साहित्य के अतिरिक्त कम कलाओं से रू ब रू हो पाता हूँ। इसलिए कि पढ़ने को कहीं आना-जाना नहीं पड़ता। किसी के साथ की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। कोई समय नहीं देखना होता। 

घर में अथवा काम करने के स्थान पर समय मिलते ही किताब खोली और दो चार पन्ने पढ़ डाले। ये आसान है। मैं ऐसा ही करता हूँ हालाँकि मेरा बहुत मन होता है कि सिनेमा, नाटक और गीत-ग़ज़ल देखने सुनने चला जाऊँ पर मेरा आलस्य रोक लेता है। 

तस्वीरें और लेखन एक जैसे माध्यम हैं। हालाँकि तस्वीर की भाषा में किसी लिपि की बाध्यता नहीं होती। वह वैश्विक भाषा होती है। किंतु दोनों में प्लेज़रिज़्म होता है। तुमने इस के बारे में सुना ही होगा। ये अनेक प्रकार का होता है। इनमें एक है डायरेक्ट प्लेज़रिज़्म: किसी के शब्दों को ज्यों का त्यों कॉपी करना। कलाओं में ऐसा केवल मूढ़मति लोग ही करते हैं। किंतु पैराफ़्रेज़िंग प्लेज़रिज़्म क़स्बों, शहरों और महानगरों में खूब देखा जाता है। ये भाषा बदलकर लेकिन विचार वही रखकर बिना श्रेय दिए लिखना है। अनगिनत पुस्तकें ऐसी छपती हैं। अनगिनत सिनेमा ऐसा बनता है। अनगिनत फोटोग्राफ़्स ऐसे लिए जाते हैं। 

अभी तकनीक ने अनेक मार्ग खोले हैं तो मोज़ैक प्लेज़रिज़्म का बोलबाला है। मैं इससे कई बार दो-चार हुआ हूँ। तकनीक ने सामग्री इस सरल रूप में उप्लब्ध करवा दी है कि अलग-अलग स्रोतों से टुकड़े लेकर जोड़ देना बहुत आसान हो गया है। ऐसा पहले भी होता रहा है। लेकिन तब जोड़ने वाला कम से कम पुस्तकें ढूंढता तो था।  बहुत पुरानी विस्मृत और कम पढ़ी गई पुस्तकों के अंश एकत्र कर अपने नाम से नई पुस्तक रच दी जाती थी। 

अब कोई पाठक, श्रोता या दर्शक कहाँ हैं? जो हैं वे बहुत कम हैं। शेष एक भीड़ है। जो इंस्टाग्राम और फेसबुक पर प्रमोशन देखकर भेड़ों की तरह उत्पादों के साथ बंध जाती है। कितनी ही ऐसी पुस्तकें हैं। जिनको केवल इसलिए क्रय किया जाता है कि और लोग भी ख़रीद रहे हैं। इस बारे में उनको बताना भी ठीक नहीं है। इसलिए कि मूर्ख भीड़ एक अच्छी बात को रौंदती हुई आगे बढ़ जाएगी। 

सेल्फ-प्लेज़रिज़्म से मुझे कोई आपत्ति नहीं है। अपनी पुरानी रचना को नई के रूप में पेश करना स्वीकार्य है। हालाँकि कितना अच्छा हो अगर हम अपनी पुरानी रचना की त्रुटियों से सीखकर नया कार्य अधिक सुंदर ढंग से कर सकें। 

साहित्य और कला के मंच देखे देखे हैं? जहाँ कहीं नाटक या गायन अथवा नृत्य का आयोजन होता है, वहाँ एक से अधिक लोग होते हैं। एक से अधिक व्यक्तियों की उपस्थिति में किसी कला का प्रदर्शन समीक्षा की बाध्यता में आ जाता है। किसी नाटक, फ़ोटो प्रदर्शनी अथवा कला के रूप के सार्वजनिक प्रदर्शन में उतनी छूट नहीं मिल पाती, जितनी एक किताब लिखकर ली जाती है। 

टुकड़े जोड़कर अथवा पुराने विषय और पात्र उठाकर पुस्तक रचने वाला इसलिए बच जाता है कि पाठक उसका किसी से उल्लेख नहीं करता। वह अपने दो ढाई सौ रुपये भूल जाना चाहता है। वह ये भी नहीं चाहता कि स्तरहीन रचना के बारे में कोई टिप्पणी लिख दे। ऐसा न करने से उसके मन की शांति स्थापित रहती है। 

मैं बरसों से पुस्तक मेला में जाता हूँ। वहाँ मुस्कुराते लालाओं जैसे पोस्टर लगे होते हैं। वे किताबों के लेखकों के विज्ञापन होते हैं। इतने अधिक होते हैं हर ओर वे ही दिखाई देते हैं। एक बरस मैंने पोस्टर वाले लेखकों की पुस्तकें पाठकों के हाथों में ढूँढनी चाही किंतु तीन चार घंटे देखते जाने के बाद भी एक पुस्तक न दिखी। 

इसके उलट मंच पर बैठकर साहित्य को खंगालने, व्याख्या करने और अपने कसीदे पढ़ने वालों की पुस्तकें पाठकों के हाथों में दिखती रही। कुछ मित्र होंगे, कुछ प्रभावित होंगे और कुछ को प्रकाशकों ने ऐसी तस्वीरें लेने के लिए खड़ा कर दिया होगा।

ये संसार अद्भुत है। यहाँ अनेक प्रहसन, गंभीर चर्चा की तरह चलते हैं। यहाँ पीआर से क़द बढ़ता है। यहाँ पत्र पत्रिकाओं से किसी को स्थापित किया जाता है। ये सब बरसों से चल रहा है। ये एक सुंदर खेल है। चलता रहे। लेकिन इस सबको एक कलाकार को, पाठक, श्रोता और दर्शक को समझना चाहिए। कि वह अपना अमूल्य समय और धन व्यर्थ न करे। 

तुम तस्वीरें खींचते हो। तुम एक जिज्ञासु सिनेमेटोग्राफ़र की तरह कैमरा के पीछे खड़े रहते हो। अपने काम में कुछ नवीन करते रहते हो। मुझे इससे प्यार है। इससे पुराना प्यार तुम्हारी सादगी और सरलता है। 

किसी भी कलाकार को ख़ुद का डॉक्यूमेंटेशन अवश्य करना चाहिए। काम के बीच केवल अपने लिए काम करना चाहिए। तुम्हारे पास लेंस है, तुम्हारी अपनी दृष्टि है। इसलिए सोनी, आईपीए, लेंस कल्चर, मैग्नम, डब्ल्यूपीपीसी और फोटो वोग जैसे स्थानों पर अपनी प्रविष्टियाँ भेजते रहना चाहिए। इसलिए कि अब कोई अच्छा काम तलाश कर उसे प्रमोट नहीं करता है। जब आपके काम को रिकॉग्नाइज़ कर लिया जाता है तब सब आप पर लेख और रिपोर्ट्स लिखने लगते हैं। 

इस बार हम मिलेंगे तब फ़ोटो संसार के कुछ अद्भुत व्यक्तियों और उनके अनूठे कार्यों के बारे में बात करेंगे। हम समझेंगे कि स्वयं को किस प्रकार शिक्षित किया जाना आवश्यक है। जिस कला में हैं, उसके आयाम क्या-क्या हैं? 

सबसे अधिक सुंदर होता है किसी यात्रा पर साथ होना। हम ने साथ में यात्राएं की हैं। हम और भी करेंगे। यात्रा में बात करना इसलिए अधिक सुंदर होता है कि उस समय हमसे, हमारा समय और कोई नहीं ले सकता। तो हम तस्वीरों, शब्दों और संगीत के संसार में देर तक डूबे रह सकते हैं। 

मैं तो कभी ऐसा था ही नहीं कि एक फेरीवाला बनकर अपनी पुस्तकें बेचता रहूँ। मासूम बच्चों के सामने साहित्य की सुनी-सुनाई कहानियाँ कहूँ। अपने आप को एक लेखक के रूप में प्रस्तुत कर सकूँ। ऐसा नहीं होने का मुझे सर्वाधिक सुख है। तुम भी अपने ढब की अलग तस्वीरें ईजाद करना। अलग दृश्य सहेजना। 

तुम बहुत अच्छे हो। मेरे सब मित्र अच्छे हैं। वे अच्छे हैं इसलिए ही मेरे मित्र हैं। वरना बाक़ी सब तो हवा के झौंकों के साथ हमारी आत्मा से झड़ जाते हैं। उनके झड़ने का धन्यवाद। तुमको जन्मदिन की खूब बधाई और मेरा आशीष। 

छगन की ये तस्वीर मैंने पिछले बरस सारनाथ में ली थी।



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