आपके पास साइकिल है?

सायकिल पर सवार व्यक्ति भयभीत नहीं करता। 

विलासी मशीनी रथ पर सवार आधुनिक जगत का नव धनाढ्य व्यक्ति प्रायः चोर, लुटेरा अथवा जालसाज़ होने का भ्रम रचता है। उसके प्रति एक संदेह ये भी है कि वह अपने विशाल यांत्रिक वाहन में बैठकर डैश के पार किसी साधारण व्यक्ति को देख ही नहीं पाता।

किंतु सायकिल पर सवार व्यक्ति दूसरों को मनुष्य की तरह देखता है। जब वह मनुष्यों को नहीं देखता तब लगता है कि किसी अदृश्य शक्ति की आराधना में लीन जा रहा है। 

मैं रेगिस्तान में रहता हूँ। मशीनों को इधर आने में सदियाँ लगीं। लेकिन जैसे-जैसे आसान धन आया मशीनें गरजती हुई आ गई। ये मशीनें इतनी जादुई है कि कथित संतों और बाबाओं की नश्वर जीवन के प्रति अवधारण बदल दी। लगभग सब उन पर सवार हो गए। 

मुकुट में लगने वाले मोरपंखों ने भी इन मशीनों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। अब वे गुच्छे के रूप में मशीनी रथों के बोनट पर सवार हो गए। इन मोरपंखों और झंडों वाले वाहनों के पीछे राजनेता पालतू की तरह अनुसरण करने लगे। किंतु इनके अभिवादन में अधिसंख्य सायकिल वाले लोग खड़े होते हैं। 

मनुष्य सायकिल पर सवार होकर कच्छप चाल से अपने सहोदरों तक पहुंचना चाहता है। धनिक कीड़ा स्वर्ण खदानों के स्वप्न में खोया हुआ अन्य को कीड़ा समझते हुए,  विनाशी गति से भागा जाता है। 

बीच का कोई मार्ग नहीं है। कुबेर के सेवक बनिये या फिर चंदे के अधिकारी। धन आना चाहिए, उसके आते ही छद्म किंतु भौतिक प्रतिष्ठा स्वयं पीछे चली आएगी। अभिवादन गिरते-गिरते नहीं थकेंगे। पार्श्व में कोई विपरीत स्वर होगा किंतु उसे कोई ईश्वर कभी नहीं सुनता। 

कितना सुंदर है विलासी रथ में सवार होना और कितना साधारण है, दो दुबले कृशकाय पहियों को पाँवों से हांकना। किंतु कितना गहरा है अभिवादन को एक हाथ उठा पाना और कहना “भाई राम-राम” 

मैं अब भी सायकिल के प्रेम में हूँ। इसलिए राकेश कुमार सिंह के प्रेम में भी हूँ। 

कॉर्पोरेट की नौकरी छोड़कर तिरियानी छपरा की ऐतिहासिक कथा लिखी। तेज़ाब पीड़ित लड़कियों के दुख में लिपटकर एक दृढ़ निश्चय किया। मनुष्य की मित्र मशीन साइकिल को उठाओ और लैंगिक असमानता की सोच के बारे में जन जागरण को निकल पड़े। 

पूरे देश में चार बरस सायकिल चलाई। विद्यालय, महाविद्यालय, पंचायत और कस्बों के अनगिनत स्थानों तक पहुँचे। समझाया कि मनुष्य क्या है? स्त्री पुरुष का बराबरी भरा सामाजिक योगदान क्या है। हमारी कुंठाएँ किस प्रकार जन्म लेती हैं। हम कैसे अजाने लैंगिक भेद के पोषक बन जाते हैं। 

कोई प्रायोजक नहीं था। गाँठ में एक रूपया नहीं था। थोड़ा सा जो पैसा आरम्भ में था, वही कहीं खर्च होता, कहीं किसी के प्रेम से लौट आता रहा। 

देश भर में सायकिल चलाना एक ऐसे दृढ़निश्चयी हृदय की रूपरेखा बनाता है, जो किसी परिस्थिति में हार नहीं मानता। हम अपनी रुचि से अनेक काम आरम्भ करते हैं और दो कदम चलकर उसे छोड़ देते हैं। कठिनाई का पहला पाठ पूरा किए बिना अपने सरल खोल में लौट आते हैं। 

राकेश कुमार सिंह की यात्रा में अनेक हताशा भरे पड़ाव आए होंगे। अनेक दुर्गम रास्तों ने उनको रोक लिया होगा। शारीरिक क्षमता की सीमा ने उनको बेदम किया होगा। समाज के व्यवहार ने उनको आहत किया होगा। कभी उदासी की घनघोर घटाएँ घिर आई होंगी। माने क्या कुछ न रहा होगा? 

इस यात्रा में राकेश जी का बाड़मेर आना भी हुआ। हम पुराने परिचित हैं। बरसों पुराने। जब मेरी पहले कहानी की पुस्तक आई थी, उसके साथ राकेश जी की पुस्तक भी आई। वे अपने यायावर स्वभाव में मिले। कुछ बातें की और देर तक ध्यानमग्न बैठे रहे। 

वे एक अच्छे व्यक्ति हैं। जीवन के लिए बुरी कहे जानी समस्त धाराओं पर सर्फिंग कर चुके हैं। उन लहरों की सवारी से मेरा मन कोई बुरी छवि नहीं गढ़ता। मन केवल इतना चाहता है कि जीवन में सरलता से किसी के लिए कुछ करने का मन बना रहे। बहुत अधिक सामाजिक आंदोलन भले न हों, अपना आंदोलन जारी रहना चाहिए। 

राकेश जी का जीवन तरंगदैर्घ्य की लय में आगे बढ़ा है। उनके पास जीवन के अनेक सबक हैं। उनसे जो सीखा है, उसे बाँटने का मन है। कभी-कभी उनको बहुत प्रेम आता है। बस इतना भर व्यक्तित्व है। 

इन दिनों समाज के वंचित वर्ग के लिए बागमती विद्यापीठ के नाम से पढ़ने, सीखने और कमाने की क्षमता अर्जित करने हेतु बच्चों के साथ काम कर रहे हैं। यहाँ भी अनगिनत कठिनाइयाँ हैं। मगर सरल रास्ता कौनसा होता है? 

राकेश कुमार सिंह की सायकिल यात्रा की पुस्तक आने की आहट पिछले बरस हुई थी। उसके बाद कुछ न हुआ। किंतु जैसे मैंने कहा कि कभी-कभी उनको बहुत प्यार आ जाता है। इसी प्यार में कुछ अध्याय मुझे भेज दिए हैं। मैं इनके सम्मोहन में हूँ। 

हालाँकि इस बरस तीन मित्रो की पांडुलिपियाँ पढ़ रहा हूँ। दस एक पुस्तकें इनके साथ पढ़ ली है। लेकिन राकेश जी के पन्ने किसी पुराने प्रेम पत्र की भाँति खुल गए हैं। 

इसके सिवा क्या कहा जाए कि सायकिल अब भी कम भयभीत करती है कि उस पर ऐसे व्यक्तियों ने सवारी की है, जो इतिहास के पात्र हैं। इसके विपरीत बड़ी मशीनों से उतर कर कम ही लोग हमारी स्मृति में आए हैं। केवल मशीन की यात्रा बची रही। उसमें सवार मनुष्य कहीं गुम हो गए। 

आपके पास साइकिल है?

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