Skip to main content

खेत में धूप चुनती हुई लड़कियां

वो जो रास्ता था, कतई रास्ता नहीं जान पड़ता था यानि जिधर भी मुंह करो उधर की ओर जाता था. रेत के धोरों में कुछ काश्तकारों ने पानी खोज निकाला था. वे किसान मोटे मोटे कम्बल लिए आती हुई सरदी से पहले चने की जड़ों में नमी बनाये रखने की जुगत लगा चुके थे. मैं ट्रेक्टर पर बैठा हुआ ऊँची जगह पर पंहुचा तब नीचे हरे रंग के छोटे-छोटे कालीन से दिखाई पड़ने लगे. मुझे इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं थी कि ट्रेक्टर किस तरह से सीधे धोरे पर चढ़ जाता है. मैं सिर्फ अपने देस की सूखी ज़मीन को याद कर रहा था जो बारह सालों में दो एक बार हरी दिखती थी.

मैं इन खेतों को देखने नहीं निकला था. ये खेत एक बोनस की तरह रास्ते में आ गए थे. हमें मेहनसर की शराब पीने जाना था. ये रजवाड़ों का एक पसंदीदा ब्रांड था. हेरिटेज लिकर के कई सारे ख्यात नामों में शेखावटी की इस शराब का अपना स्थान था. मैं जिसके ट्रेक्टर पर बैठा था, वह बड़ा ही दुनियावी आदमी था. खेतों में फव्वारों के लिए दिये जाने वाले सरकारी अनुदान के लिए दलाली किया करता था. अफसरों से सांठ-गाँठ थी. कार्यालयों के बाबुओं को उनका कमीशन खिलाता और शौकिया तौर पर लोगों को अपनी सफलता के प्रदर्शन के लिए शराब की पार्टियाँ दिया करता था.

वह जब मेरे घर पहली बार आया उस समय म्यूजिक प्लेयर पर कोई सूफी संगीत बज रहा था. वह चाहे किसी भी समय आता उसे ऐसा ही कुछ सुनने को जरुर मिलता. "मुझे आपकी पसंद से रश्क होने लगा है" ऐसा उसने कहा और फिर हम मित्र हो गए. खैर उसी के साथ हम एक हवेलीनुमा घर वाले एक धनी किसान के यहाँ पहुंचे. उनकी आवभगत ने मुझे भिगो दिया. मैं मानता था कि मारवाड़ के लोग ही अच्छे मेजबान है लेकिन फिर इसमें थोड़ा संशोधन भी कर लिया कि कुछ अच्छे मेजबान शेखावटी में भी हैं.

उन्हीं दिनों जगजीत सिंह के नए एल्बम में एक खूबसूरत ग़ज़ल थी. "अपनी आग को ज़िन्दा रखना कितना मुश्किल है.." किसी शाम ज्यादा प्यार आता तो एल्बम उठाया और शाईर का नाम पढ़ा... इशरत आफ़रीन. नाम भी बड़ा ही खूब था. इशरत का अर्थ था ख़ुशी और उनके नाम के सन्दर्भ में आफ़रीन का अर्थ हुआ, जो किसी से मेल नहीं खाता यानि सबसे जुदा. मैंने इससे पहले कभी उनका नाम नहीं सुना था. उनकी ग़ज़ल "होठों को सी ले लड़की..." ने खूब दिलों में जगह बनायीं और इसके बाद मैंने उनकी कुछ नज़्में पढ़ी. उनकी नज़्मों में महिलाओं की गज़ब की तरफदारी मिलती है. यही अंदाज़ हकों और सामाजिक बराबरी के मुद्दों पर भी मिलता है. इशरत की नज़्में अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव का भी प्रतिनिधित्व करती है.

मेहनसर की शराब की लाजवाबी पर अभी नहीं लिखना चाहता. मैं उस कोकटेल के बारे में याद करना चाहता हूँ जो चने के खेत, ट्रेक्टर की सवारी, जगजीत सिंह की गहरी आवाज़ और इशरत आफ़रीन के बारे में सोचने से बना था. फिर कई साल बाद मैंने कपास के खेत देखे. चीन के बाद हम दूसरे नंबर के कपास उत्पादक हैं मगर मैंने पच्चीस साल की उम्र के बाद ही देखा कि कपास के दूधिया फूलों वाला खेत कैसा दीखता है ? उन्हीं दिनों मैंने जाना कि खेतिहर मजदूर कैसा जीवन जीते हैं और एक खेतिहर लड़की को उसके खेत मालिक के लड़कों द्वारा उठा लिया जाना कितना आसान है. उनका जीवन सच में बहुत कष्टप्रद है.

इशरत आफ़रीन का जन्म पाकिस्तान में हुआ था. वे भारत की बहू हैं और फ़िलहाल अमेरिका में रहती हैं. उनकी हाल की ख्यात नज़्म है "समाया के सीने में दिल धड़कता है..." मैं लाख कोशिशें करता मगर मुझे उनकी नज़्में कहीं मिलती ही नहीं. उनकी ये नज़्म मेरे देखे सुने अनुभवों का सतरंगी कोलाज बुनती है.

खेतों में काम करती हुई लड़कियां
जेठ की चम्पई धूप ने
जिन का सोना बदन
सुरमई कर दिया
जिन को रातों में ओस और पाले का बिस्तर मिले
दिन को सूरज सरों पर जले.

ये हरे लॉन में
संग-ए-मरमर के बेंचों पे बैठी हुई
उन हसीन मूरतों से कहीं खूबसूरत
कहीं मुख्तलिफ
जिन के जूड़े में जूही की कलियाँ सजी
जो गुलाब और बेले की ख़ुशबू लिए
और रंगों की हिद्दत से पागल फिरें.

खेत में धूप चुनती हुई लड़कियां भी
नई उम्र की सब्ज़ दहलीज़ पर हैं मगर
आईना तक नहीं देखतीं
ये गुलाब और डेज़ी की हिद्दत से नाआशना
खुशबुओं के जान लम्स से बेखबर
फूल चुनती हैं लेकिन पहनती नहीं,
इन के मलबूस में
तेज़ सरसों के फूलों की बास
उन की आँखों में रोशन कपास.

Popular posts from this blog

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...