आरोन तामाशी की कहानी के पन्ने आँखों के सामने खुले हुए हैं. तीन सौ मीटर दूर से थार महोत्सव की सांस्कृतिक संध्या से बिखरी हुई सी आवाज़ें आ रही हैं. मेरे पास में नुसरत साहब गा रहे हैं. दो सप्ताह के सूखे के बाद सामने एक आला दर्ज़े की शराब रखी हुई है. पीना अभी शुरू नहीं किया है. बस कहानी को पढ़ते हुए दो बार आँखें पोंछी और फ़िर तीन बार बरबस मुस्कुराया हूँ. इतालवियों द्वारा बंदी बनाये गए सैनिकों के केम्प से छूट कर आये सिपाही की इस अद्भुत कहानी को पढ़ते हुए जोधपुर के चिरमी बार की एक शाम सामने आ खड़ी हुई. उस रात पहली बीयर पी चुकने के बाद, मैंने उसे फोन किया और कहा कि हम कब मिलेंगे ? उसने पूछा किसलिए ? मेरे मुंह में रखा हुआ बीयर का स्वाद बेहद कसैला हो गया था. मैंने फ़िर से पूछा कि तुम मुझसे नहीं मिलना चाहती ? उसने इस सवाल का क्या उत्तर दिया था याद नहीं लेकिन वो हमारी आखिरी बातचीत थी। फ्लेश बैक में कई साल गुजरने लगे. बस स्टेंड पर रिज़र्वेशन की लाइन में लगी हुई, सिनेमा हाल के बाहर मुझे छाया में खड़ा कर के टिकट लेने के लिए भीड़ को चीरती हुई, अपने दो हाथों में फ्रेंच फ्राइज़, टमाटो केच-अप के पाउच, द...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]