Skip to main content

ज़िन्दगी मैंने गँवा दी यूँ ही...

जो बाहर था वह अब भीतर सिमट रहा है. रूपायित होने की क्रिया अपने आप में बड़ी कष्टकर होती है. मैं भी खुद को खो देना चाहता हूँ. अपने आप के बाहर से भीतर आने के इन प्रयासों में पाता हूँ कि मेरा बोझा उतर रहा है. जिसे मैं भटकना समझ रहा था वह वास्तव में रास्ता पा लेने की अकुलाहट है. यह प्रक्रिया सम सामायिक न होकर विभिन्न स्थितियों से प्रेरित हुआ करती है. किसी विशेष संवाद के बाद, इस अंदर बाहर के खेल में जब स्थूल के करीब होता हूँ तब अपनी सोच और समाज की दी हुई समझ को उसी मौलिक स्वरूप में बचाए रखने के प्रयास करता हूँ किन्तु सब निरर्थक जान पड़ते हैं.

खुशियाँ लौकिक हुआ करती हैं. उनके सारे कारण भौतिक स्वरूप में हमारे पास बिखरे से दिखते हैं. इससे बड़ी ख़ुशी वह होती है, जो भौतिक न होकर मानसिक हो. फिर इससे भी बड़ी ख़ुशी होती है, मन और मस्तिष्क का खाली हो जाना. अपने आप को नए सिरे से देखना. ऐसा करते हुए हमें लगता है कि रंगों पर जमी हुई गर्द छंट गई है. मैं इस साफ़ तस्वीर में देखता हूँ कि मेरी चिंताएं और मेरा अस्तित्व क्षणभंगुर है. मैं वास्तव में बेवजह विचारशील हूँ. मेरी तमाम बदसूरती बाहर से आई है जिसे मैं अपने भीतर की जान बैठा था. हर व्यक्ति का दुनिया को खूबसूरत देखने का ख़्वाब वस्तुतः दुनिया की बदसूरती से खुद पर आये असर से पीछा छुड़ाने का ख़्वाब है.

जिस संयोग से मेरा जन्म हुआ है. उसके किसी एक तत्व के विघटित होते ही वियोग का जन्म होगा. इस अनिवार्य रासायनिक क्रिया के बाद शेष शून्य में बदल जायेगा. बरसों तक जीये गए ऐसे विचारों के कारण मैं नास्तिक हूँ और किसी धर्म के परायण में यकीन नहीं रखता हूँ. इसलिए मैंने एक कविता में कहा भी था कि काश दिल से हिन्दू हुआ होता तो अगले जन्म की आस में ख़ुशी से मर सकता था. फिर इस संयोग के बने रहने तक किसी को चाहने या नफ़रत करने के अहसास को अपने पास रखता चाहता हूँ कि दूसरी कोई दुनिया नहीं है, दूसरा कोई जन्म नहीं है. प्यार करने का बस यही एक लम्हा है जिसे अगले कुछ पलों के बाद ज़िन्दगी के नाम से पुकारा जायेगा.

सिल्विया प्लेथ, मरीना, रिल्के, माय्कोवेसकी, पर्स्तेनक, देज़ो... जितनी सुंदर रचनाएँ ना लिखो. उनकी तरह अपनी ज़िन्दगी को न ढालो. कहवा घरों और चायखानों में शामें न बिताओ. प्रेस क्लबों की लम्बी तक़रीरों में हिस्सा न लो और भले ही अरब देशों से आती खुशबू पर अपनी नाक को विपरीत दिशा में मोड़ लो लेकिन मेरे प्यारे बच्चे किशोर याद रखो कि जब तुम किसी से प्रेम करते हो बस वही एक पल दुनिया का सबसे हसीन पल होता है. तुम सदा अपने किये पर खुश रहो कि ज़िन्दगी में हज़ार मुश्किलों, उदासियों और अज़ाबों के साथ जीते जाना ही इस फ़ानी दुनिया का आखिरी सच है और ये भी सच है कि सुखकारी प्रेम सदा अनिर्वचनीय होता है. तुम अपने परिजनों, मित्रों और सह जीवियों से बांधी गयी तमाम आशाओं को मिटा दो कि आशा रहित प्यार ही सच्चा प्यार होता है.

सब यहीं छूट जाने हैं और अफ़सोस कुछ भी नहीं कि ज़िन्दगी मैंने गँवा दी यूँ ही...

Popular posts from this blog

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...