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कोस्तोलान्यी का लुटेरा

छोटे गरीब बच्चे की शिकायतें, इस कविता संग्रह या स्कायलार्क उपन्यास के कारण देजो कोस्तोलान्यी को जाना जाता है. मुझे ये दोनों शीर्षक पसंद है. बुझे हुए तमाम सालों की राख में बस इतना ही याद आया कि इसे कहीं किसी पन्ने पर पढ़ा होगा. घनीभूत होते हुए ख़यालों और बवंडर से उड़ते आते सवालों के बारीक टुकड़ों के बीच पिछला पखवाडा बीता है. हर काम को ठीक कर देने के तय समय पर कई और काम सिर पर आ पड़ते रहे हैं. विगत साल की गरमी बड़ी दिल फ़रेब थी कि मैं कई चिंताओं से आज़ाद रहा और शामें बेफिक्र आइस क्यूब को पिघलते हुए देखने में बीत गई थी. इधर पाता हूँ कि शाम हुए छत पर गए एक अरसा हो गया है. चारपाई पर बैठे हुए मैंने अपने पांवों को दीवार पर रखा और हंगेरियन कहानियां पढने लगा.

जो कहानी सबसे पहले पढ़ी उसका शीर्षक था, लुटेरा. मैंने इसे एक साँस में पढ़ा. शीर्षक पढ़ते समय मैं कहानी के भीतरी तत्वों के बारे में नहीं सोचता हूँ क्योंकि मैं खुद अपनी कहानियों के लिए एबस्ट्रेक्ट से उन्वान चुनता रहा हूँ. देजो की इस कहानी को ह्रदय परिवर्तन की कथा कह कर उसके मनोवैज्ञानिक तत्वों की हत्या नहीं करना चाहता हूँ. ये वास्तव में ह्रदय के अन्वेलिंग की कथा है. मैंने असंख्य कहानियों के बारे में लिखा हुआ पढ़ा है कि कथा के पात्र का ह्रदय परिवर्तित हो गया. ये एक नासमझी की बात है क्योंकि मेरे विचार से ह्रदय के कोमल और इंसानी कोनों पर पड़ा हुआ पर्दा हटा करता है.

कथा का नायक किसी आवेग से दूर रहते हुए घटते जा रहे के प्रति निरपेक्ष बना रहता है. यह सहज प्रवाह परिस्थितियों को सुगमता से गढ़ता है. मैं बहुत बार खुद को किसी काम या रिश्ते के बीच में जैसा हूँ वैसे छोड़ दिया करता हूँ. चीज़ों में हस्तक्षेप के लिए समय को चुनता हूँ कि वही तय करे मेरे लिए उचित क्या होगा और आगे रास्ता किधर जाता है ? ज़िन्दगी और कहानियों में कोई सामीप्य हो जरुरी नही है लेकिन दोनों ही अनुमानों से परे होने के कारण ही प्रिय हुआ करती है. देजो की इस कथा में एक गहरी सुरंग है. जिसमे वारदात को किया जाना है. ये स्थान एक संकेत है कि हर एक की ज़िन्दगी में हताशा भरा, अँधेरा समय आता है और उसी समय जीवन के बड़े हादसे घटित होते हैं.

लुटेरा पाठक के भीतर ही छिपा बैठा है. उसके पास पर्याप्त उपस्करण हैं और उचित कार्य योजना है. शिकार के लिए सावधानी से बुना हुआ जाल भी है. मुख्य पात्र एक रेल यात्रा के दौरान किसी कमजोर स्त्री को लूटना और उसकी हत्या कर देना चाहता है. जैसा कि हम प्रति दिन किया करते हैं. हमारा दिन एक लालच भरी आशा के साथ उगता है. उसमें हम उन सभी कामों को रेखांकित होते देखना चाहते हैं जो औरों के लिए किये जा रहे हैं. हम अपने दिन को प्लान भी करते हैं. एक परफेक्ट प्लान जिसमें सर्वाधिक फायदा हमारा अपना हो. इस तरह दुनिया भर के मासूम लुटेरे अपने ही हाथों शिकार होकर शाम ढले खुद के बिस्तर पर मृत पाए जाते हैं एक लालच भरी अगली सुबह के लिए... इस कहानी में ये सब नहीं लिखा है बल्कि ऐसा कहानी को पढ़ते हुए बुझती हुई शाम के सायों में महसूस किया है.

कथाएं मेरी संवेदनाओं को जीवन स्पर्श देती हैं. देजो कोस्तोलान्यी के बारे में सोचते हुए मुझे इस कठिन दौर के पत्रकार याद आने लगते हैं, जो अपनी रचनाशीलता को कार्पोरेट प्रबंधन के नीचे दम तोड़ देने के स्थान पर कहानी और कविता की तरफ मोड़ देते हैं. खैर इस कहानी पर लिखे इन शब्दों को मैं उन लुटेरों के नाम करता हूँ. जो बिना कारण कुछ नहीं करते या जिनके बेहतर ज़िन्दगी के फूलप्रूफ प्लान अभी पाइप लाइन में हैं. सच तो ये है कि हम लोग समर्पण किये हुए बंदी सिपाही की तरह जी रहे हैं. अपना खुद के हिस्से का समय लुटेरों को सौंप चुके हैं. लूट के विचार से प्रेरित इस दुनिया से मैं इत्तेफाक नहीं रखना चाहता हूँ. मेरी ख्वाहिश अपने लिए किसी शराबखाने की आवारा शाम बुनना है.

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