आपके कोट में अब भी एक पेन्सिल रखी है

उन दिनों हम
कॉपी, किताबों में बेढब तस्वीरें बनाते,
पिताजी स्कूल से मुस्कुराते हुए लौटते
और दादी निराकार दुआएं पढ़ा करती.

माँ घर को करीने से बसाते हुए
दम ताज़ा दिनों को
सुबह शाम उम्र की बरनी में रखती जाती थी.

कई सालों बाद

एक दिन माँ के हाथ से आग छूट गई
कि उम्र की बरनी में रखने के लिए
पिताजी के हिस्से का दिन कहीं नहीं मिला.
* * *

चार एक दिन पहले माँ ने आपके एक कमीज को फिर से तह किया है. और आपके कोट में जाने किसने रखी मगर अब भी एक पेन्सिल रखी है.

बच्चे खुश है. वे दादाजी को हमेशा याद करते हैं. याद तो कौन नहीं करता कि गली में दूर तक जाकर नज़र ठहर जाती है. कि आप आते होंगे. मगर आप नहीं आते. आँखों में एक हलकी नमी उतर आती है. इस सब के बावजूद ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है. चीयर्स, लव यू.

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