Skip to main content

क्या बुझेगा राह से या सफ़र बुझ जायेगा

इस महीने की छः तारीख़ की रात मैंने एक बड़ा उदास और अंधकार भरे भविष्य को सम्बोधित ख्वाब देखा. ख्वाब रात से पहले दिन का तापमान अड़तालीस डिग्री से ऊपर था. लोग इसके बावजूद अपने जरुरी काम करने के लिए बाज़ार में मसरूफ़ थे. जिस चीज़ को छू लो, वह अंगारा जान पड़ती थी. रेगिस्तान के बीच में बसा हुआ क़स्बा है. सदियों पहले अच्छी ज़मीनों से खदेड़ दिए गए लोग इस मरुस्थल में आ कर बस गए थे. संभव है कि वे भ्रमणशील जिज्ञासु थे अथवा भगोड़े या फ़िर विद्रोही. हम अपनी प्रतिष्ठा के लिए खुद के पुरखों को विद्रोही मानते हैं.

दो हज़ार सालों में उन्होंने सीख लिया था कि गरमी की शिकायत करना बेमानी है. मैं भी उनका ही अंश हूँ. मैंने भी गहरे खारे पानी को पीते हुए चालीस साल का सफ़र तय किया है. धूप सर पे न हो तो चौंक जाते हैं. उसका साथ इतना गहरा है कि सौ मील तक एक भी सूर्यदेव का मंदिर खोजना मुश्किल काम हैं. यूं देवता इतने हो गए हैं कि हर मोड़ पर सुस्ताते हुए मिल जाते हैं. सूर्य सहज उपलब्ध है इसलिए दुनिया के उसूलों के अनुसार उसका उतना ही कम महत्त्व भी है.

ख़्वाब किसी अँधेरी दुनिया की बासी जगह पर आरम्भ होता है. वहां कोई तीन चार लोग हैं जो किसी विशालकाय पानी के जहाज कि डेक जैसी जगह पर खड़े हैं. मैं उनको देखता हूँ लेकिन उनका हिस्सा नहीं हूँ. एक संभाव्य दुर्घटना से पूर्व के संकेत मौसम में फैले हैं. डेक के किनारों पर लगी रेलिंग से मैं देखता हूँ कि उत्तर पश्चिम दिशा में लटका हुआ सूर्य किसी हेलोजन बल्ब की तरह गर्म होकर ऊपर नीचे हिला और फूट गया. यह सूर्य का दैनिक अवसान नहीं था वरन उसके नष्ट होने का दृश्य था. अँधेरा, भयानक अँधेरा.... आशंकाएं, सिहरन, उदासी, और एक लम्बे तिमिर में खो जाने का विचार...

मनुष्य उत्पादित विद्युत अभी है. कुछ कम रौशनी के बल्ब जल रहे हैं. लोग जा चुके हैं. तनहा खड़े हुए एक अन्तराल के बाद मैं आवाज़ सुनता हूँ. कोई कहता है सूरज लौट आया है. कुछ अँधेरे कमरों को पार करके दूसरी तरफ खुली जगह पहुँचता हूँ. खुद से पुष्टि करता हूँ कि ये कौनसी दिशा है ? दक्षिण. हाँ... रौशनी लौट कर नहीं आई मगर उस तरफ एक सूरज था. दूर बहुत दूर. कहीं कोई कह रहा था कि ये पृथ्वी का आत्मक्षय था. पृथ्वी, हम जिसे गोल पढ़ते आये हैं, वह वास्तव में एक कूबड़ वाले गोल आलू जैसी है.

मैंने अपनी स्मृति का बेहतरीन उपयोग करते हुए ख़्वाब के सारे सिरे जोड़े. बिस्तर पर चुप बैठा हुआ उस गाढे अँधेरे की गहराई को महसूस करता रहा. एकाएक ख़याल आया कि मेरे हिस्से का कौनसा सूर्य बुझ गया है. क्या ये कोई आगत का संकेत है. क्या दक्षिण दिशा की ओर नई संभावनाएं तलाशनी चाहिए ? क्या किसी अनिष्ट ने रास्ता बदल लिया है ? ऐसे बहुत से सवालों के घेरे में गुंजलक देखता रहा. बच्चे सो रहे थे. बाहर पानी भरने की आवाज़ें आ रही थी, सोचा ये मेरी माँ होगी. रसोई से कॉफ़ी की खुशबू थी. खिड़की से आती गरम हवा से आभास हुआ कि आज फ़िर तपेगा रेगिस्तान का एक और दिन. सूरज सलामत था... वो क्या था ?

Popular posts from this blog

स्वर्ग से निष्कासित

शैतान प्रतिनायक है, एंटी हीरो।  सनातनी कथाओं से लेकर पश्चिमी की धार्मिक कथाओं और कालांतर में श्रेष्ठ साहित्य कही जाने वाली रचनाओं में अमर है। उसकी अमरता सामाजिक निषेधों की असफलता के कारण है।  व्यक्ति के जीवन को उसकी इच्छाओं का दमन करके एक सांचे में फिट करने का काम अप्राकृतिक है। मन और उसकी चाहना प्राकृतिक है। इस पर पहरा बिठाने के सामाजिक आदेश कृत्रिम हैं। जो कुछ भी प्रकृति के विरुद्ध है, उसका नष्ट होना अवश्यंभावी है।  यही शैतान का प्राणतत्व है।  जॉन मिल्टन के पैराडाइज़ लॉस्ट और ज्योफ्री चौसर की द कैंटरबरी टेल्स से लेकर उन सभी कथाओं में शैतान है, जो स्वर्ग और नरक की अवधारणा को कहते हैं।  शैतान अच्छा नहीं था इसलिए उसे स्वर्ग से पृथ्वी की ओर धकेल दिया गया। इस से इतना तय हुआ कि पृथ्वी स्वर्ग से निम्न स्थान था। वह पृथ्वी जिसके लोगों ने स्वर्ग की कल्पना की थी। स्वर्ग जिसने तय किया कि पृथ्वी शैतानों के रहने के लिए है। अन्यथा शैतान को किसी और ग्रह की ओर धकेल दिया जाता। या फिर स्वर्ग के अधिकारी पृथ्वी वासियों को दंडित करना चाहते थे कि आखिर उन्होंने स्वर्ग की कल्पना ही क्य...

टूटी हुई बिखरी हुई

हाउ फार इज फार और ब्रोकन एंड स्पिल्ड आउट दोनों प्राचीन कहन हैं। पहली दार्शनिकों और तर्क करने वालों को जितनी प्रिय है, उतनी ही कवियों और कथाकारों को भाती रही है। दूसरी कहन नष्ट हो चुकने के बाद बचे रहे भाव या अनुभूति को कहती है।  टूटी हुई बिखरी हुई शमशेर बहादुर सिंह जी की प्रसिद्ध कविता है। शमशेर बहादुर सिंह उर्दू और फारसी के विद्यार्थी थे आगे चलकर उन्होंने हिंदी पढ़ी थी। प्रगतिशील कविता के स्तंभ माने जाते हैं। उनकी छंदमुक्त कविता में मारक बिंब उपस्थित रहते हैं। प्रेम की कविता द्वारा अभिव्यक्ति में उनका सानी कोई नहीं है। कि वे अपनी विशिष्ट, सूक्ष्म रचनाधर्मिता से कम शब्दों में समूची बात समेट देते हैं।  इसी शीर्षक से इरफ़ान जी का ब्लॉग भी है। पता नहीं शमशेर उनको प्रिय रहे हैं या उन्होंने किसी और कारण से अपने ब्लॉग का शीर्षक ये चुना है।  पहले मानव कौल की किताब आई बहुत दूर कितना दूर होता है। अब उनकी नई किताब आ गई है, टूटी हुई बिखरी हुई। ये एक उपन्यास है। वैसे मानव कौल के एक उपन्यास का शीर्षक तितली है। जयशंकर प्रसाद जी के दूसरे उपन्यास का शीर्षक भी तितली था। ब्रोकन ...

लड़की, जिसकी मैंने हत्या की

उसका नाम चेन्नमा था. उसके माता पिता ने उसे बसवी बना कर छोड़ दिया था. बसवी माने भगवान के नाम पर पुरुषों की सेवा के लिए जीवन का समर्पण. चेनम्मा के माता पिता जमींदार ब्राह्मण थे. सात-आठ साल पहले वह बीमार हो गयी तो उन्होंने अपने कुल देवता से आग्रह किया था कि वे इस अबोध बालिका को भला चंगा कर दें तो वे उसे बसवी बना देंगे. ऐसा ही हुआ. फिर उस कुलीन ब्राह्मण के घर जब कोई मेहमान आता तो उसकी सेवा करना बसवी का सौभाग्य होता. इससे ईश्वर प्रसन्न हो जाते थे. नागवल्ली गाँव के ब्राह्मण करियप्पा के घर जब मैं पहुंचा तब मैंने उसे पहली बार देखा था. उस लड़की के बारे में बहुत संक्षेप में बताता हूँ कि उसका रंग गेंहुआ था. मुख देखने में सुंदर. भरी जवानी में गदराया हुआ शरीर. जब भी मैं देखता उसके होठों पर एक स्वाभाविक मुस्कान पाता. आँखों में बचपन की अल्हड़ता की चमक बाकी थी. दिन भर घूम फिर लेने के बाद रात के भोजन के पश्चात वह कमरे में आई और उसने मद्धम रौशनी वाली लालटेन की लौ को और कम कर दिया. वह बिस्तर पर मेरे पास आकार बैठ गयी. मैंने थूक निगलते हुए कहा ये गलत है. वह निर्दोष और नजदीक चली आई. फिर उसी न...