अँधेरे में दीवार का रंग साफ़ नहीं दिख रहा था. पच्चीस कदम दूर, उस दीवार की ईंटें बायीं तरफ से गिरी हुई थी. फ्रिल वाली स्कर्ट पहनी हुई नवयौवना उस लड़के तक जाना चाहती थी. लड़के का मुंह पूरब दिशा में था और वह उसके पीछे की तरफ थी. भौतिक चीज़ों से जुडी अनुभूतियों के साथ मेरा दिशा बोध जटिलता से गुंथा हुआ है. चीज़ें एक खास शक्ल में सामने आती है. जब भी मैं किसी दीवार पर बैठे हुए लड़के के बारे में सोचता हूँ तो तय है कि लड़का जिस तरफ देख रहा है, उधर पश्चिम है. लड़के के पैरों के नीचे की ओर ज़मीन बहुत दूर है. वह लड़का एक उदासी का चित्र है. इसलिए डूबते हुए सूरज की ओर उसका मुंह हुआ करता है. जिस तरफ वह देख रहा है उधर कोई रास्ता नहीं होता. घात लगाये बैठा समंदर या फ़िर पहाड़ की गहरी खाई लड़के के इंतजार में होती है. लड़के के थक कर गिर जाने के इंतजार में... मैं उसे नवयौवना ही समझ रहा हूँ किन्तु लिखने में लड़की एक आसान शब्द है. दरवाज़े के साथ एक जालीदार पतला पल्ला है. इसके आगे कुर्सी रखी है और फ़िर खुली जगह में रेत है. इस पर कुछ पौधे उगे हुए हैं. इन सबके बीच वह डिनर टेबल कहां से आई, मैं स...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]