मैं ये जाने कब से सोच रहा हूँ कि तुमसे प्रेम करते हुए, मुझे देवीय कोप से भयभीत मनुष्यों की गरज नहीं है. मेरे पिता एक ऊँचे कद वाले और चौड़े हौसले वाले इंसान थे. उस भद्र पुरुष ने एक रात मुझे कहा था कि मैं अग्नि के आचमन और जल के अभिषेक से जन्मा हूँ. उस समय उनकी पेशानी पर बल थे. उनके तीखे नाक पर चमकता हुआ कोई उजाला छिटक रहा था. छोटी सी आँखों की लम्बी कोर के किनारे प्रेम से भीगे हुए थे. ऐसा देखते हुए मैंने पाया कि मैं एक नन्हा बच्चा हूँ. जो किसी की गोद में लेटा हुआ आँचल की ओट से ये सब देख रहा है.
कल मैंने एक ख़याल बुना. इसे जागती आँख का सपना कहा जा सकता है. सपना इसलिए कि इसमें सोचा गया सब कुछ अविश्वसनीय है. मैं देखता हूँ कि राजपथों जैसी चौड़ी सड़क के किनारे एक कार में तुम बैठी हो. उस कार के बंद दरवाजों पर, शीशों पर, छत पर बेशुमार बारिश गिर रही है. बरसात के शोर में कई सारी आवाज़ें खो कर मौन में ढल गयी है. एक ऐसा मौन, जिसमें शोर ही मुखर है मगर सुनाई कुछ नहीं देता.
बारिश की फुहारों और काली ऊदी घटाओं के बीच कोई उम्मीद नहीं झांकती. एक अरूप दर्द है. जिसका कोई ओर छोर नहीं, जिसकी शक्ल का खाका सही नहीं समझा जा सकता. जिसके होने की वजहों से अधिक दुःख इस बात का होता है कि बारिश की लय की तरह इसके अनेक रूप हैं. भीगे सीले इस ख़याल को थोड़ी ही देर में मुसलसल बारिश और भयावह बना देती है. मैं देखता हूँ कि बारिश का पानी अब कार के पहियों को ढक चुका है.
मुझे कई तरह के वहम और गुमाँ होने लगते हैं. कार तैरने लगेगी और एक सपनीली नाव में बदल जाएगी. लहरों पर सवार कार के मद्धम लयहीन हिचकोले, तुम्हें बचपन की किसी बैलगाड़ी जैसी यात्रा की याद दिलाएगी और तुम अपने सबसे खूबसूरत वक़्त में लौट जाओगी. वहाँ माँ की चुनर से एक मुकम्मल घर बनाया जा सकेगा. पिता की पीठ दुनिया का सबसे ऊँचा और मजबूत ठिकाना होगी. तुम लौटने लगोगी अपने अविस्मर्णीय सुनहरे वक़्त में. एक ऐसा वक़्त जिसमें रिश्तों को दुःख बुनना नहीं आता हो.
इस वक़्त मैं अपने पिता की याद के जंगल में किसी उदात्त घोड़े की हिनहिनाहट से भर उठा हूँ. ओ सफ़ेद दांतों और गुलाबी होठों वाली लड़की तुम्हारा भाल उन्नत है, तुम्हारा वक्ष उभरा हुआ है, घाटियों की शिखरों की तरह. तुम्हारी आँखों में बसा है तितलियों का घोंसला, तुम्हारी आवाज़ का कौमार्य अभी शेष है... आ कि अग्नि के आचमन और जल के अभिषेक से जीवन मुस्कुराता है, आ मेरी बाँहों में आ...
कल मैंने एक ख़याल बुना. इसे जागती आँख का सपना कहा जा सकता है. सपना इसलिए कि इसमें सोचा गया सब कुछ अविश्वसनीय है. मैं देखता हूँ कि राजपथों जैसी चौड़ी सड़क के किनारे एक कार में तुम बैठी हो. उस कार के बंद दरवाजों पर, शीशों पर, छत पर बेशुमार बारिश गिर रही है. बरसात के शोर में कई सारी आवाज़ें खो कर मौन में ढल गयी है. एक ऐसा मौन, जिसमें शोर ही मुखर है मगर सुनाई कुछ नहीं देता.
बारिश की फुहारों और काली ऊदी घटाओं के बीच कोई उम्मीद नहीं झांकती. एक अरूप दर्द है. जिसका कोई ओर छोर नहीं, जिसकी शक्ल का खाका सही नहीं समझा जा सकता. जिसके होने की वजहों से अधिक दुःख इस बात का होता है कि बारिश की लय की तरह इसके अनेक रूप हैं. भीगे सीले इस ख़याल को थोड़ी ही देर में मुसलसल बारिश और भयावह बना देती है. मैं देखता हूँ कि बारिश का पानी अब कार के पहियों को ढक चुका है.
मुझे कई तरह के वहम और गुमाँ होने लगते हैं. कार तैरने लगेगी और एक सपनीली नाव में बदल जाएगी. लहरों पर सवार कार के मद्धम लयहीन हिचकोले, तुम्हें बचपन की किसी बैलगाड़ी जैसी यात्रा की याद दिलाएगी और तुम अपने सबसे खूबसूरत वक़्त में लौट जाओगी. वहाँ माँ की चुनर से एक मुकम्मल घर बनाया जा सकेगा. पिता की पीठ दुनिया का सबसे ऊँचा और मजबूत ठिकाना होगी. तुम लौटने लगोगी अपने अविस्मर्णीय सुनहरे वक़्त में. एक ऐसा वक़्त जिसमें रिश्तों को दुःख बुनना नहीं आता हो.
इस वक़्त मैं अपने पिता की याद के जंगल में किसी उदात्त घोड़े की हिनहिनाहट से भर उठा हूँ. ओ सफ़ेद दांतों और गुलाबी होठों वाली लड़की तुम्हारा भाल उन्नत है, तुम्हारा वक्ष उभरा हुआ है, घाटियों की शिखरों की तरह. तुम्हारी आँखों में बसा है तितलियों का घोंसला, तुम्हारी आवाज़ का कौमार्य अभी शेष है... आ कि अग्नि के आचमन और जल के अभिषेक से जीवन मुस्कुराता है, आ मेरी बाँहों में आ...