एक ठहरी हुई सांस बेचैन निग़ाह में उदासी घोलती है. बारिश नहीं थी मगर थी कि एक आवाज़ ने बुनी बारिश. एक सूखी रात का ये पहला पहर था. बंद आँखों में कहीं दूर हिलते हुए होठ खिले थे कि कोई संगीतकार, साजिंदों को अपनी छड़ी से प्रवाहित कर रहा था. लड़का उसे कहना चाहता था कि सांस लेने में कठिनाई है मगर वह चुप रहा. उसने चाहा कि लड़की बोलती रहे. लड़की की आवाज़ दवा थी. जब वह बोलते हुए ठहर जाती तो ठहर के बाद प्रतिध्वनि गूंजती. चुप्पी में लगता कि बारिश रुक गयी है? लड़का पूछता- "तुम हो?" दूजी तरफ से जवाब आता. तीन बार दिया गया जवाब. जैसे हाँ हाँ हाँ या ना ना ना. वह जवाब लड़के को बाहर की ओर खींच ले जाता. बाहर बारिश नहीं हो रही होती. लड़का हैरत से भरकर फिर से आवाज़ को खोजने लगता. लड़की की आवाज़ में बारिशें बुनने का हुनर था. लड़की ने कहा- "तुम चुप क्यों रहते हो?" लड़के ने अपने आप को ये कहने से रोक लिया कि तुम्हारी आवाज़ को सुनते हुए बारिश सुनाई पड़ती है. मन एक सूखा रेगिस्तान है इसलिए अनवरत भीगते जाना चाहता है. लड़की की आवाज़ फिर से आई- "क्या हम पहले कहीं मिले थे? अगर नह...
[रेगिस्तान के एक आम आदमी की डायरी]