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और लिखा कीजिये

मेरे दो तीन कहानी संग्रह आये तो फेसबुक के इनबॉक्स में कहानी लिखने की चाहना रखने वाले आने लगे. चार साल पहले एक कॉलेज का लड़का आया. उसने कुछ कहानियां भेजी. मैंने उसे कहा कि आप लिखते रहिये. जब आपके पास सम्पादित करने लायक कुछ बन जाये तब किसी को अपनी पाण्डुलिपि दिखाना. दूजी बात कि दो हज़ार शब्द पढ़कर आपको कोई कुछ नहीं कह सकता है. आप चालीस-पचास हज़ार शब्द की पाण्डुलिपि देंगे और किसी मित्र के पास समय हुआ तो वह पढ़कर आपको बताएगा कि क्या बना है?

उस लड़के ने मेरा फ़ोन नम्बर मांग लिया. मैंने दे दिया. वह फ़ोन पर बहुत सी बातें करना चाहता था. मैंने दो-तीन बार उससे बात की. वह पूछता- "सर कैसा लिखा है." मैं कहता- "अच्छा लिखा है और लिखा कीजिये." मेरे पास इतना समय न था कि मैं लगातार बातें कर सकता. मैंने एक बार उसे समझाया कि ज़्यादा समय नहीं होता है. उसने समझा नहीं. मैंने दो-तीन बार उसका फोन नहीं उठाया. ऐसा करने पर मेरा प्यारा कहानीकार अचानक अच्छा आलोचक बन गया और उसने मेरे कहानी संग्रह की समीक्षा लिख दी. क्या लिखा होगा? आप समझ सकते हैं. मैंने उसे इग्नोर किया. फिर वह गुस्से में अनफ्रेंड कर गया. उसके साल भर बाद तक वह अपनी वाल पर कहानियां लिखता दीखता था. फिर जाने क्यों उसका कहानी लिखने से मोहभंग हो गया.

फेसबुक पर किसी भी कला, लेखन अथवा संगीत के व्यक्ति का उपस्थित रहना कठिनाइयों को आमंत्रित करना है. आप कुछ थोड़ा सा अच्छा रच रहे हैं तो सहज ही आपको पसंद किया जाने लगेगा. इसके बाद आपके पास इनबॉक्स में संदेशे आयेंगे. आप प्रेम से या शालीनता के कारण अच्छे जवाब देंगे. इसके बाद आपको रोज़ ऐसा करना पड़ेगा. जिस दिन जवाब न दिया उस दिन से रूठने का सिलसिला आरम्भ. आप अपना फ़ोन नम्बर शेयर करेंगे तो एक अनंत पीड़ा में स्वयं को धकेल देंगे. भले और समझदार लोग स्वयं अच्छा काम कर रहे हैं, वे आपके मित्र हो जायेंगे. लेकिन फोन पर पहले-पहल की बातें संकट की बुनियाद बन जाएँगी. आपको उनकी इच्छा से फोन पर उपलब्ध होना होगा. अगर ऐसा न करेंगे तो वे आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा उस लड़के ने मेरे साथ किया था.

हमारा कोमल पक्ष प्रशंसा सुनकर अधिक कोमल हो जाता है. वह लचीला होकर प्रशंसा के भार से झूलने लगता है. स्वयं पर प्रेम उमड़ने लगता है. आत्मविश्वास को तरल संबल मिलने लगता है. इस प्रशंसा के भार से उत्प्लावक बल में वृद्धि होने लगती है. हम प्रसन्नता में डुबकी लगाने लगते हैं. किन्तु इस सबका मोल बहुत बड़ा है. हमसे अनेक अपेक्षाएं बाँध ली जाती है. उनको पूरा न करने पर पहले-पहल की बातें याद दिलाई जाने लगती हैं. "तब तो आप जवाब देते थे. तब तो समय था. तब तो मुझसे कोई तकलीफ न थी" वह तब जो बीत चुका होगा आपके गले का फंदा बन जायेगा.

मैं शराब को बिम्ब बनाकर कुछ न कुछ लिखता रहा हूँ. मेरे लिखने में जिस तरह शराब प्रेम रस का रूपक है, जिस तरह जुए का पासा दिल का रूपक है, उसी तरह अनेक ख़राब चीज़ें और आदतें रूपकों की तरह मेरे लेखन में उपस्थित हैं. इन रूपकों से भरी बेवजह की बातें पढना भी बहुत से लोगों को प्रिय है. अब तक बहुत बार ऐसा हो चुका है कि मेरे पाठक दोस्त जिनके पास मेरा फोन नम्बर है, वे शराब पीते ही मुझसे बात करना चाहते हैं. मैं शाम के बाद फोन को साइलेंट मोड पर कर देता हूँ. रिंग नहीं सुनाई देती. स्क्रीन के चमकने से ध्यान जाता है कि कोई कॉल आ रहा है. अधिकतर इस पर भी ध्यान नहीं जाता. सुबह मैं मैसेज पढता हूँ. "आप जान हो सर. लव यू. ऐसे ही बैठे थे. दो पैग लिए तो आपकी याद आ गयी. सर कभी तो रात को बात करो."

ये बहुत मारक है. इससे भी अधिक मारक है विपरीत लिंग के पाठक अथवा प्रशंसक का दोस्त हो जाना. उसकी क्या बातें लिखूं? अधिकतर लोग मन से टूटे हुए हैं. प्रेम चाहते थे और धोखा खा गए. अब इस तरह जी रहे हैं कि धोखा प्राइमरी चीज़ हो गया है. वह बैल के आगे लटकती मूली है. जीवन रूपी बैल धोखे को खाकर हजम करने की आशा में चुपचाप उसके पीछे चला जा रहा है. धोखा एक कदम आगे बैल एक कदम पीछे. किसी भी उपाय से दूरी समाप्त नहीं हो रही. ऐसे लोगों से कभी बात कर लो और वे अपनी कहानी आपको सुनाने लग जाएँ तो समझिये कि तीसरे दिन वे आपसे कह रहे होंगे. "उसने मेरे साथ क्या-क्या किया अब प्लीज़ आप न करना." इस तरह आप वचनबद्ध हो जायेंगे. जीवन की गाड़ी एक नये भंवर में फंस जाएगी.

कल किसी पाठक ने मैसेज किया कि छोरी कमली नहीं मिल रही. मैं अमेज़न तक गया. छोरी कमली उपलब्ध नहीं थी. मैं वहां से जादू भरी लड़की तक चला गया. वहां देखा कि दो तीन साल में कुछ रिव्यू आये हैं. उनको पढने लगा. जिन्होंने अच्छे रिव्यू लिखे उनके नाम थे. जिनको किताब पसंद न आई उनके नाम न थे. उनमें से दो रिव्यू इस तस्वीर में लगा रहा हूँ. एक में लिखा है- "बे जान कहानी. ना कहानी है न पढने में मजा. उदास मरी मरी सी ज़िन्दगी. अनसुलझी नासमझ. क्या कहानी है क्या पात्र कोई इंट्रेस्टेड नहीं. बीच में ही छोड़ दिया पढने." मैं ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता हूँ. आप किसी भी रिव्यू से असहमत हो जाइए लेकिन उसे गलत मत ठहराइए.

कहानी संग्रह को रिव्यू करने वाला पाठक अपना नाम नहीं बताना चाहता. उसे नाम क्यों छुपाना है? इसके अनेक कारण हो सकते हैं. मुझे उन कारणों में और ऐसा रिव्यू लिखने वालों में दिलचस्पी नहीं है.

लगभग सब प्रकाशक अपने लेखकों को इस बात के लिए प्रेरित करते होंगे कि ऑनलाइन स्टोर्स पर अपनी किताब के रिव्यू लिखवाओ. लेखक या प्रकाशक रिव्यू लिखने के लिए अपनी फेसबुक वाल पर पोस्ट लगाता है. निजी संदेशे भेजता है. ईमेल करता है. इसके लिए किसी समाचार पत्र की प्रसार संख्या बढाने जैसी लकी ड्रा की योजनायें भी चलाई जाती हैं. रिव्यू लिखने वालों को लेखक व्यक्तिगत रूप से आभार व्यक्त करता है. हो सकता है कि वे मित्र भी हो जाते हों.

रिव्यू इसलिए लिखवाये जाते हैं कि बहुत से पाठक जो ऑनलाइन किताबें खरीदते हैं वे रिव्यू पढ़ते हैं. मैं भी कभी-कभी किसी सामान का ऑर्डर करते समय रिव्यू पढता हूँ. लेकिन मैं कीमत और ज़रूरत के हिसाब से अपना निर्णय करता हूँ. किताबों के मामलों में मुझे रिव्यू पढने में इसलिए रूचि नहीं है कि मैं लेखक को पढता हूँ. प्रिय लेखक का नाम देखा और किताब ऑर्डर. इसलिए किताब का रिव्यू क्या कहता है ये केवल समय बिताने का तरीका भर है.

मैंने कभी किसी से कहा होगा कि रिव्यू लिखना तो ये भी किसी और ने मुझसे कहा होगा कि ऐसा करवाओ. मैंने सोचा और सोचकर जवाब दिया कि मेरा इस सारे आयोजन में मन नहीं है. मुझे अपनी किताबों के रिव्यू नहीं लिखवाना. अगर किसी किताब के एक हज़ार पोजिटिव रिव्यू हो तो आप क्या समझते हैं कि कितने लोग खरीद लेंगे. पुस्तकें दाढ़ी बनाने का बिजली वाला रेजर नहीं है. वे हमारे जीवन का आइना हैं. वे सभ्यता और संस्कृति के बारीक बदलावों का लेखा जोखा है. वे मनुष्य के दुखों का, आशाओं का और वास्तविकता का लिखित प्रमाण हैं. ऐसी चीज़ें प्रमोट करने या कोई प्रशंसित करने को नहीं बनी होती.

मेरे लिए लिखना केवल मन को कह देना है. आप भी फीड बैक से गरज न रखना. दुनिया बहुत बड़ी है. इसका बड़ा होना अच्छा है कि किसी गली से बचकर चलिए किसी गली में देर तक बैठे रहिये.

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