प्यार में कभी-कभी

ये डव है। वही चिड़िया जो बर्फीले देशों में सफ़ेद रंग की होती है। पहाड़ी और जंगल वाले इलाकों में हरे नीले रंग की होती है। मैदानी भागों में धूसर और लाल मिट्टी के रंग की मिलती है।

ये वैश्विक शांति का प्रतीक है। ईसाई लोग इसे आत्मा और परमात्मा के मिलन की शांति का प्रतीक भी मानते हैं। मुंह में जैतून की टहनी लिए उड़ती हुई डव को विश्व भर में शांति कपोत के रूप में स्वीकारा गया है।


रेगिस्तान में इसे कमेड़ी कहा जाता है। उर्दू फारसी वाले इसे फ़ाख्ता कहते हैं।

इसके बोलने से रेगिस्तान के लोग चिढ़ रखते हैं। असल में इसके बोलने से ऐसा लगता है कि जैसे कह रही हो। "हूँ कूं कूं" हिन्दी में इसे आप समझिए कि ये कह रही होती हैं "मैं कहूँ क्या?" जैसे कोई राज़ फ़ाश करने वाली है। जैसे कोई कड़वी बात कहने वाली है।

लोग इसे घर की मुंडेर से उड़ा देते हैं। इसके बोलने को अपशकुन माना जाता है।

रेगिस्तान की स्थानीय बोली में इसे होली या होलकी कहते हैं। यहाँ दो तरह की कमेड़ी दिखती है। एक भूरे-लाल रंग की दूजी धूसर-बालुई रंग की। मैंने यहाँ कभी सफ़ेद कमेड़ी नहीं देखी।

कल दोपहर लंच के लिए घर जाने को निकला तो ऑफिस में कार पर ये फ़ाख्ता दिखी। इसके पंखों का रंग अनूठा था। ऐसा पहले मैंने कबूतरों में देखा था। कुछ सफ़ेद आयातित पालतू कबूतर और देशी कबूतर जोड़ा बना लेते थे तो चितकबरे कबूतर देखने को मिलते थे। लेकिन चितकबरे कबूतर बहुत जल्द गायब हो जाते थे। उनकी आने वाली पीढ़ियों का क्या होता था? मालूम नहीं।

इस फ़ाख्ता में डर भी कम था। मैंने कुछ तस्वीरें ली तब तक कार पर बैठी रही।
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