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सोशल साइट्स एक फन्दा है

कुछ मित्र कहते हैं वे अनुशासित तरीके से इनका उपयोग करते हैं। मैं अक्सर पाता हूँ कि कहीं भी कितना भी अनुशासित रह लें कुछ अलग नहीं होता।

सोशल साइट्स पैरासाइट है। वे हमारे दिल और दिमाग को खोजती रहती है। एक बार हमारे दिल-दिमाग में घुस जाए तो ज़हर फैलाने लगती है। इसके दुष्परिणाम हमको कम ही समझ आते हैं।

अनिद्रा, थकान, बदनदर्द, चिड़चिड़ापन, अकेलापन जैसी समस्याएं हमको घेर लेती है।


मित्रों से मिल नहीं पाना। उनसे फ़ोन पर बात नहीं कर पाना। अपने कार्यस्थल पर सहकर्मियों के सुख-दुःख सुनने कहने का समय नहीं मिलना। देर से सोना और नींद पूरी होने से पहले जाग जाना। बिस्तर में पड़े रहना कि अभी तो सुबह भी न हुई मगर ध्यान सोशल साइट्स पर ही होना। आख़िर किसी बहाने से फ़ोन उठा लेना। सोशल साइट्स को देखना और अल सुबह हताश हो जाना कि वहां कोई ख़ुशी की ख़बर नहीं है।

ये भयानक है। लेकिन इसे लगातार बरदाश्त किया जा रहा है।

सोचिये हमारे पास कितना ज्ञान है।

कुछ साथ नहीं चलता 
तो सोशल साइट्स पर क्या इकट्ठा कर रहे हैं।

अपनी ख़ुशी के लिए दूसरे पर निर्भर न रहो 
तो सोशल साइट्स में क्या खोज रहे हो।

गुज़रा हुआ वक़्त वापस नहीं आता 
तो इस वक़्त को कहां गुज़ार रहे हो।

सबको प्रेम से रहना चाहिए
तो सोशल साइट्स पर ज़हर आगे बढ़ाने में ख़ुशी क्यों मिल रही।

ऐसी हज़ार बातें हैं।

मैंने कुछ महीने पेज पर ध्यान नहीं दिया। एप को फ़ोन से हटा दिया। अचानक प्रोफ़ाइल से उपजी ऊब ने मुझे पेज पर धकेल दिया। मैं एक बीमारी से दूजी बीमारी के गले पड़ गया।

सोशल साइट्स का फीडबैक ही उनका विज्ञापन और जाल है। महीने भर में पांच पोस्ट लिखी तो पेज की रीच हज़ारों में हो गयी। लाइक करने वाले कई सौ बढ़ गए। फेसबुक ने तुरंत मैसेज किया कि आपका पेज एक पोटेंशियल पेज है इसके लिए वेरिफिकेशन कीजिये और सिक्योर बनाइये।

मैं सचमुच नाख़ुश हूँ। इसकी वजह है सोशल साइट्स। मैं इनको छोड़ क्यों नहीं देता? क्योंकि हम सबको अपने सुख बरदाश्त नहीं होते।

मौला अक्ल दो। 😎

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