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जादूगर का दुःख

जब जादूगर मंच से चला जायेगा
तब दर्शक अपने असली दुखों से घिर जाएंगे।

एक जादूगर ही होता है जो सियार को भेड़िया, कुत्ते को बिल्ली, कबूतर को खरगोश बना सकता है। वह सबको एक रंग में रँगे जाने का स्वप्न दिखाता हुआ आता है।

उसका वादा होता है कि अफ्रीकी कालों, बर्फीले देशों के गोरों, मध्य के गेहुंआ लोगों को अपनी टोपी से निकालता हुआ एक जैसा कर सकता है। सब भेद मिटा सकता है।

वह सारी प्रार्थनाओं को एक प्रार्थना में बदल सकता है। वह सब प्रार्थनाघरों के दरवाज़े एक दिशा में ला सकता है। वह इतिहास के तमाम अत्याचारों का बदला वर्तमान से ले सकता है। वह वीभत्स की स्मृति को सजीव कर सकता है।

जादूगर के पास इतनी खूबियां होने के बाद भी उसके अपने निजी दुख होते हैं। सबसे बड़ा दुख होता है कि वह जानता है, जादू आंखों में धूल झोंकने का काम है।

मैं आप की आँखों में धूल झोंकते हुए थकने लगता हूँ। कभी-कभी मेरा मन होता है कि सोशल मीडिया छोड़ दूं।

लेकिन मैं आपके हक़ में सोचता हूँ कि शैतान की प्रेमिका की कविताएं कहता रहूँ ताकि आप सब व्यवस्था की बढ़ती नाकामी, भ्रष्टाचार, आर्थिक मंदी, लुटते बैंक, बेमौत मरते श्रमिक, आत्महत्या करते कृषक, नौकरियां खोजते नौजवान, न्याय को तरसती आंखें आदि अनादि बेकार की बातों को भूले रहें।

भुलावा ही सबसे बड़ा जादू है। भूलना ही सबसे बड़ा सुख।
 * * * 

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