जनता कर्फ़्यू।
टीवी वाले कह रहे हैं कि हम आपको विश्व क्लासिक दिखाएंगे। रेडियो वाले कह रहे हैं कि आपका ज्ञान के साथ मनोरंजन करेंगे। किताबों वाले कह रहे हैं कि अच्छा अवसर है, किताबें पढ़िये। तो जिसके पास जो है वह उसने प्रस्तुत कर दिया है। आपकी सेवा में उपस्थित है।
आप क्या करेंगे। आपने सोचा है?
मैंने सोचा कि अगर मैं घर पर होता या एक दिन नितांत अकेले जीने का अवसर पाता तो क्या करता?
इसी सोच में कोरोना की गम्भीरता के बारे में सोचने लगा। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था और स्थिति के आस पास मनुष्य समाज चल रहा है। राजनैतिक और आर्थिक स्थितियाँ एक दूजे की पूरक है। एक के चरमराते ही दूजी अपने आप ध्वस्त हो जाती है।
दुनिया की आर्थिक स्थिति को शेयर बाज़ारों के हाल से समझा जाता है। शेयर बाज़ार तीस प्रतिशत लुढ़क चुके है। ऐसा नहीं है कि ये कोरोना ने ही किया है। ये कोरोना नहीं तो किसी और कारण से भी करेक्ट होता। करेक्ट होना सही होता है। आप अपने आप को ठोक बजा कर सॉलिड कर लें तो ज़्यादा लंबे समय तक चल सकते हैं।
शेयर बाज़ारों के गिरने का सिलसिला अगर यहीं रुक जाता है तो समझिए कि ये उनका अपना करेक्ट होना था। इससे नीचे का रुख होते ही समझना कि आप वो देखने जा रहे हैं, जो पिछले दो सौ साल में किसी ने नहीं देखा होगा।
शेयर बाज़ार में होने वाले नुकसान के सबक बहुत लोगों के पास हैं। वे अरबपति लोग हैं। उन्होने खोया और पाया। पाया और खोया लेकिन मुझे इन सब लोगों से अलग एक वह ट्रेडर अक्सर याद आता है जिसने बाज़ार खुलने के एक घंटे में लाखों डॉलर खो दिये। अपना कमाया हुआ लगभग सारा का सारा।
ऐसे हादसे अनेक ट्रेडरों के साथ पेश आते हैं। लेकिन मुझे वही क्यों याद आता है? इसलिए कि उसने कहा मैं चितबगना हुआ खड़ा था। मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। ये क्या हुआ। फिर अचानक मैंने वाक्य को बदला। "ये क्या हुआ" को "ये क्या है" कर लिया।
इसके बाद वह व्यक्ति महानगरीय जीवन को छोड़कर जंगल में चला गया। उसने खुद से कहा कि मैं किस मानसिक दबाव में जी रहा हूँ। क्या मेरा जीवन इन्हीं अरबों डॉलर के पीछे भागने के लिए बना है।
नहीं!
मैं कुदरत के साथ रहूँगा। मैं अपने होने को महसूस करूंगा। मेरे पास हरियाली। समंदर। जीव जंतुओं की आवाज़ें और पंछियों का कलरव होगा। वह व्यक्ति अब भी है। बरसों बाद भी जंगल में प्रकृति के साथ खुश है। मुझे लगता है शेयर बाज़ार से सबसे अच्छा सबक उसी ने सीखा है। पैसा बनाने वालों ने अभी कुछ नहीं सीखा।
अब आप सुन देख रहे होंगे कि दुनियाभर में बाज़ार बंद हो रहे हैं। ये आर्थिक आपातकाल है। इसकी गम्भीरता को समझना मेरे बस की बात नहीं है। लेकिन मैं इतना समझता हूँ कि हठधर्मी मनुष्य अपने इसी जीवन में लौटना चाहेगा जबकि ये एक अवसर है। नए सिरे से पुराने बाज़ार बनाने का। ये अवसर है कि कुदरत का शोषण करना छोड़ कर उसके साथ जीने का। ये अवसर है युद्ध और शोषण की दुनिया को बदलने का।
पता नहीं क्या होगा लेकिन खतरे का सायरन बज चुका है। इस बार नहीं तो अगली बार प्रकृति का स्वच्छता अभियान चलेगा।
किसी की बहादुरी को बताने के लिए कहते हैं फलां आदमी शेर है। किसी से नहीं डरता। तो आदमी की क्यों शेर की ही याद कर ली जाए। अफ्रीका वाले शेर तो और भी बब्बर थे। एक नन्हा सा विषाणु आया ऐन्थ्रेक्स। उसने केवल शेरों का कुनबा साफ किया। कहते हैं पाँच प्रतिशत शेर बचे रहे। ये आंकड़े कितने ठीक है मैं स्थापित नहीं कर सकता मगर ये कह सकता हूँ कि कुबुद्धि आदमी ने उसी ऐन्थ्रेक्स के जैविक हमलों की अफवाहें बनाई। दुनिया भर को डर में धकेल दिया।
पिछले बरस एक खबर पढ़ी थी। वह सच कितनी थी कहना कठिन है लेकिन वह किसी नामी पत्रिका पत्र में थी। अमेरिकी एजेंसी के किसी व्यक्ति ने स्वीकारा कि हमने एड्स को फैलाने के लिए मासूमों का उपयोग किया। ऐसे साधारण मरीज जिनको कुछ न हुआ था उनमें इंजेक्ट किया। वे अफ्रीकी लोग जो शिकार हुये, आगे चलकर दुनिया भर में बदनाम हुये। इस बीमारी ने कितना कहर ढाया आप बेहतर जाने हैं।
अगर ये ख़बर किसी बुनियाद पर सच ठहरती है तो कोरना के बारे में भी कभी ऐसी बात बरसों बाद सुनी जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
इससे मैं क्या समझा? कि ये केवल एक बीमारी नहीं है। सम्भव है कि आपदा की जगह ये एक युद्ध है।
जनता कर्फ़्यू केवल युद्ध का जवाब भर नहीं है वरन उससे बढ़कर एक अवसर है। ऐसा अवसर कि हम प्रकृति के बारे में सोचें और समझें। हम इस अंधी भौतिक दौड़ में कितनी भयावह दुनिया बना चुके हैं, इसका अनुमान लगाएं।
हम जानें कि हमारी आवश्यकताएं कितनी हैं। मानसिक दबाव और भविष्य के भय से भरी जीवन शैली को अलविदा कहने का साहस जुटाएं।
कल अच्छा होना चाहिए इसके लिए श्रम करें। कल क्या होगा की चिंता व्यर्थ है।
टीवी वाले कह रहे हैं कि हम आपको विश्व क्लासिक दिखाएंगे। रेडियो वाले कह रहे हैं कि आपका ज्ञान के साथ मनोरंजन करेंगे। किताबों वाले कह रहे हैं कि अच्छा अवसर है, किताबें पढ़िये। तो जिसके पास जो है वह उसने प्रस्तुत कर दिया है। आपकी सेवा में उपस्थित है।
आप क्या करेंगे। आपने सोचा है?
मैंने सोचा कि अगर मैं घर पर होता या एक दिन नितांत अकेले जीने का अवसर पाता तो क्या करता?
इसी सोच में कोरोना की गम्भीरता के बारे में सोचने लगा। सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था और स्थिति के आस पास मनुष्य समाज चल रहा है। राजनैतिक और आर्थिक स्थितियाँ एक दूजे की पूरक है। एक के चरमराते ही दूजी अपने आप ध्वस्त हो जाती है।
दुनिया की आर्थिक स्थिति को शेयर बाज़ारों के हाल से समझा जाता है। शेयर बाज़ार तीस प्रतिशत लुढ़क चुके है। ऐसा नहीं है कि ये कोरोना ने ही किया है। ये कोरोना नहीं तो किसी और कारण से भी करेक्ट होता। करेक्ट होना सही होता है। आप अपने आप को ठोक बजा कर सॉलिड कर लें तो ज़्यादा लंबे समय तक चल सकते हैं।
शेयर बाज़ारों के गिरने का सिलसिला अगर यहीं रुक जाता है तो समझिए कि ये उनका अपना करेक्ट होना था। इससे नीचे का रुख होते ही समझना कि आप वो देखने जा रहे हैं, जो पिछले दो सौ साल में किसी ने नहीं देखा होगा।
शेयर बाज़ार में होने वाले नुकसान के सबक बहुत लोगों के पास हैं। वे अरबपति लोग हैं। उन्होने खोया और पाया। पाया और खोया लेकिन मुझे इन सब लोगों से अलग एक वह ट्रेडर अक्सर याद आता है जिसने बाज़ार खुलने के एक घंटे में लाखों डॉलर खो दिये। अपना कमाया हुआ लगभग सारा का सारा।
ऐसे हादसे अनेक ट्रेडरों के साथ पेश आते हैं। लेकिन मुझे वही क्यों याद आता है? इसलिए कि उसने कहा मैं चितबगना हुआ खड़ा था। मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। ये क्या हुआ। फिर अचानक मैंने वाक्य को बदला। "ये क्या हुआ" को "ये क्या है" कर लिया।
इसके बाद वह व्यक्ति महानगरीय जीवन को छोड़कर जंगल में चला गया। उसने खुद से कहा कि मैं किस मानसिक दबाव में जी रहा हूँ। क्या मेरा जीवन इन्हीं अरबों डॉलर के पीछे भागने के लिए बना है।
नहीं!
मैं कुदरत के साथ रहूँगा। मैं अपने होने को महसूस करूंगा। मेरे पास हरियाली। समंदर। जीव जंतुओं की आवाज़ें और पंछियों का कलरव होगा। वह व्यक्ति अब भी है। बरसों बाद भी जंगल में प्रकृति के साथ खुश है। मुझे लगता है शेयर बाज़ार से सबसे अच्छा सबक उसी ने सीखा है। पैसा बनाने वालों ने अभी कुछ नहीं सीखा।
अब आप सुन देख रहे होंगे कि दुनियाभर में बाज़ार बंद हो रहे हैं। ये आर्थिक आपातकाल है। इसकी गम्भीरता को समझना मेरे बस की बात नहीं है। लेकिन मैं इतना समझता हूँ कि हठधर्मी मनुष्य अपने इसी जीवन में लौटना चाहेगा जबकि ये एक अवसर है। नए सिरे से पुराने बाज़ार बनाने का। ये अवसर है कि कुदरत का शोषण करना छोड़ कर उसके साथ जीने का। ये अवसर है युद्ध और शोषण की दुनिया को बदलने का।
पता नहीं क्या होगा लेकिन खतरे का सायरन बज चुका है। इस बार नहीं तो अगली बार प्रकृति का स्वच्छता अभियान चलेगा।
किसी की बहादुरी को बताने के लिए कहते हैं फलां आदमी शेर है। किसी से नहीं डरता। तो आदमी की क्यों शेर की ही याद कर ली जाए। अफ्रीका वाले शेर तो और भी बब्बर थे। एक नन्हा सा विषाणु आया ऐन्थ्रेक्स। उसने केवल शेरों का कुनबा साफ किया। कहते हैं पाँच प्रतिशत शेर बचे रहे। ये आंकड़े कितने ठीक है मैं स्थापित नहीं कर सकता मगर ये कह सकता हूँ कि कुबुद्धि आदमी ने उसी ऐन्थ्रेक्स के जैविक हमलों की अफवाहें बनाई। दुनिया भर को डर में धकेल दिया।
पिछले बरस एक खबर पढ़ी थी। वह सच कितनी थी कहना कठिन है लेकिन वह किसी नामी पत्रिका पत्र में थी। अमेरिकी एजेंसी के किसी व्यक्ति ने स्वीकारा कि हमने एड्स को फैलाने के लिए मासूमों का उपयोग किया। ऐसे साधारण मरीज जिनको कुछ न हुआ था उनमें इंजेक्ट किया। वे अफ्रीकी लोग जो शिकार हुये, आगे चलकर दुनिया भर में बदनाम हुये। इस बीमारी ने कितना कहर ढाया आप बेहतर जाने हैं।
अगर ये ख़बर किसी बुनियाद पर सच ठहरती है तो कोरना के बारे में भी कभी ऐसी बात बरसों बाद सुनी जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
इससे मैं क्या समझा? कि ये केवल एक बीमारी नहीं है। सम्भव है कि आपदा की जगह ये एक युद्ध है।
जनता कर्फ़्यू केवल युद्ध का जवाब भर नहीं है वरन उससे बढ़कर एक अवसर है। ऐसा अवसर कि हम प्रकृति के बारे में सोचें और समझें। हम इस अंधी भौतिक दौड़ में कितनी भयावह दुनिया बना चुके हैं, इसका अनुमान लगाएं।
हम जानें कि हमारी आवश्यकताएं कितनी हैं। मानसिक दबाव और भविष्य के भय से भरी जीवन शैली को अलविदा कहने का साहस जुटाएं।
कल अच्छा होना चाहिए इसके लिए श्रम करें। कल क्या होगा की चिंता व्यर्थ है।