मैं अपनी डायरी में अर्थहीन और कथानक के हिसाब से छिन्न भिन्न सपनों के बारे में लिखता रहा हूँ। उन सपनों के देखे जाने के कुछ समय पश्चात मुझे कोई उकसाता रहा कि जाओ उनको फिर से पढ़ो। मुझे कोई आशा नहीं होती थी कि उनको दोबारा पढ़ने पर कुछ उपयोगी होगा। लेकिन मुझे अचरज होता था कि उनको पढ़ने पर कुछ संकेत मिलते थे, कुछ तार जुड़ने लगते थे। आज सुबह मैं स्वप्न में डर गया था। मैंने हाल में फिर से चश्मा बनवाया था। दृष्टि दोष अधिक बढ़ा न था किंतु चश्मे के काँच घिस चुके थे। उनके पार देखना कष्टप्रद था। चश्मे बहुत महंगे बनते हैं। इसलिए कई महीनों तो मैं अपनी आर्थिक स्थिति को सोचकर नया चश्मा बनवाना स्थगित कर देता था। अक्सर कोशिश करता कि बिना चश्मे के पढ़ सकूँ। लेकिन ये कभी संभव न हुआ। हालाँकि कई बार निकट उपस्थित व्यक्ति को अपना व्हाट्स एप मैसेज दिखाया और पूछा कि क्या लिखा है। लिखा हुआ सुनने के बाद उसका उत्तर कम शब्दों में ठीक ठीक लिखने में सफल रहा था। कुछ दिन पहले चश्मे की दुकान पर गया। मन को कठोर करके नया चश्मा बनवा लिया। इतने सारे रुपये देते हुए मुझे पीड़ा भी हुई। एक चिंता रही कि ये चश्मा...
पूजा स्थलों के अनेक रिच्युयल होते हैं। अक्सर जोड़े में या आगे पीछे दर्शन करने की मान्यता बड़ी है। आप कहीं जाएँ तो कोई कह देगा कि इसके बाद आपको वहाँ दर्शन करने होंगे वरना ये अधूरा रह जाएगा। मैं ऐसे कभी कहीं गया नहीं। वैसे भी मंदिरों और दरगाहों पर मेरा जाना इसलिए हुआ है कि जो साथ था, उसका गहरा मन था। उनके साथ गया। फिर जब उन्होने कहा कि अब यहाँ भी चलना है तो मैं बाहर ही रुक गया। आप जाकर आइए। मैं यहीं बैठा हूँ। थक गया हूँ। जब कोई बच्चा मिट्टी से खेल रहा होता है तब आप उसके साथ खेलने लगते हैं। आप खेलते हैं क्योंकि आप उससे प्यार करते हैं। बच्चा ईश्वर का दूत है। वह मिट्टी को परमानंद समझता है। आप अज्ञानी उसे मिट्टी समझते हैं। मैं भी ऐसे ही मंदिर दरगाह चला जाता हूँ। मुझे साथ वाले की आस्था पर भरोसा है। मैं मानता हूँ कि उसका जीवन अच्छा हो जाएगा। तुरंत कोई चमत्कार न हुआ तो भी वह भीतर से मजबूत रहेगा। जीवन बहुत कठिन है। इसे बिताने को बहुत जुगत लगानी पड़ती है। हम फिर से ई रिक्शा पर थे। रूपेश जी के घर जा रहे थे। वहाँ हमको लंच करना था। हमारे बार-बार मना करने पर भी रेगिस्तानी की मनवार भरी मेजबानी...