धुंए से भरी अंगुलियाँ, सिनेमाघरों की जेनेटिक गंध, सफ़ेद चद्दर, क्लोरीन वाला पानी, कॉफ़ी टेबल पर रखे हुए छोटे रंगीन टोवेल्स, फ्लेट की चाबी, मरून वेलेट और टर्मरिक क्रीम जैसी खोयी हुई चीज़ों को खोज लेने की ख्वाहिश.
एक सूना रास्ता है, अँधेरे की चादर ओढ़े हुए. आस पास कोई भारी चीज़ है, डगमगाती, ऊपर गिरने को विवश लेकिन सलेटी रंग गुज़रता रहता है. कुछ होता ही नहीं, ज़िन्दगी चलती रहती है. जैसे कोई चुरा ले जाता है, सारी हेप्निंग्स.
मुसाफ़िर की जेबों में कुछ था ही नहीं मगर उसने सोचा कि क्या रखूं, तुम्हारी खिड़की में. जून के महीने में यहाँ बारिशें भी नहीं होती...
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[Image Courtesy : Daniel Berehulak]