असमाप्य बिछोह के रुदन का आलाप



हवा के जादुई स्पर्श के बीच असमाप्य बिछोह के रुदन का पहला लंबा आलाप कानों में पड़ता है। मैं डर कर चौकता हुआ जाग जाता हूँ। मैं अपने घर की सीढ़ियाँ उतर कर ग्राउंड फ्लोर तक जाने के दौरान आवाज़ का ये पहला टुकड़ा सुनता हूँ। मेरे मन पर असंख्य आशंकाओं के साँप लोट जाते हैं। मेरी माँ का ये रुदन किसलिए होगा? मेरे मन में पहला खयाल आता है, मेरे बच्चे। एक सिहरन सर से पाँव तक पसर जाती है। मैं खुद से कहता हूँ उनको कुछ नहीं हो सकता। सीढ़ियाँ उतर कर माँ तक जाने से पहले ही देखता हूँ कि मैं उठ कर चारपाई पर बैठा हुआ हूँ। एक बुरा स्वप्न था। सुबह की ठंडी हवा में छत की मुंडेर के पार हल्का उजास घरों की दीवारों को शक्ल दे रहा था। मैंने अपनी आँखें फिर से बंद कर ली ताकि अगर ज़रा और सो सकूँ तो इस दुस्वप्न को भूल जाऊँ। मैं सो जाता हूँ और एक नया सपना शुरू होता है। 

मेरे घर में एक लड़की आई है। उसने तंग और छोटे कपड़े पहने हैं। वह लोहे के सन्दूक में अपना वो सामान खोज रही है जो पिछली बार यहीं छूट गया था। मैं उसे ऐसा करते हुये देख कर महसूस करता हूँ कि वह अजनबी है। एक उदासी घिरने लगती है। नीम अंधेरे में उसे गहरे रंग की वह पोशाक मिल जाती है। वह जैसे आई थी वैसे ही बाहर निकल जाती है। मैं गली में आकर देखता हूँ कि उसके साथ कोई था। जो उसे यहाँ तक लाया था और ले भी गया। मैं एक पुराने महानगर तक उसका पीछा करना चाहता हूँ। मैं उसे कहना चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकती। मगर मैं बेजान पाँवों से चलने की कोशिश में गिर पड़ता हूँ और रोने लगता हूँ। फिर वही बिछोह के रुदन का राग मेरे गले में आकर अटक जाता है। 

अपने लेपटोप के की-बोर्ड को टटोलता हूँ और कुछ पुराने पते खोजता हूँ। देखता हूँ कि किस तरह उसको रोका जा सकता है। वहाँ कोई उम्मीद नहीं आती। अंधेरे पुराने घर में खिड़की से मद्धम रोशनी आ रही है। वहीं एक मरी हुई मकड़ी पर नज़र रुक जाती है। मैं देखता हूँ कि ज़िंदा मकड़ी की जगह मरी हुई मकड़ी की टांगें ज्यादा कलात्मक मोड़ लिए हुये हैं फिर अचानक से खुद को देखता हूँ। सदियों से एक ही जगह पड़ा हुआ पाषाण हूँ। धूप नहीं है बस एक सीला अंधेरा है। मेरे इस हाल को देखकर फिर से रोना आता है मगर रो सकने लायक हाल नहीं बन पाता। मैं बरबाद तो हूँ मगर दिख रहा हूँ एक साबुत पत्थर की तरह। दुनिया जा चुकी है और मैं अंतहीन प्रतीक्षा में हूँ। 

सवेरे का सूरज तप कर सर पर टंग जाता है। सुबह के आठ बजे हैं। छत पर चारपाई पर सो रहा हूँ। धूप मेरे मुंह को चूम रही है। मैं उस लड़की की शक्ल याद करना चाहता हूँ। सुबह को कहता हूँ कि बुरे ख्वाब अच्छे होते हैं। कोई तुमसे खूब प्यार करने वाला है। तुम्हारे बच्चे खुश रहने वाले हैं। माँ को सुकून आने वाला है। डरो नहीं, उठो और काम पर चलो कि इस दुनिया में एक दिन सबको ही चले जाना है। तुम अकेले होने का अभ्यास करो। सोचो कि इस तमाशे से जितना जल्दी बाहर आया जाए उतना अच्छा। 
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हवा में एक आवाज़ आती है। तुम्हारे शब्द मेरे कानों का प्रिय संगीत है। मैं देखता हूँ कि मेरा महबूब अंधेरे में उचक कर उड़ गयी एक तितली है। मेरी आँखों की हैरत, मेरे दिल की ज़ुबान। उसे आदत है दुनिया के सबसे दूर ठिकाने पर रहने की। मैं रेत के समंदर का मुसाफ़िर हूँ। 

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