काँच के प्याले में
आइस क्यूब्स के गिरने की आवाज़ आती है
जैसे तुम्हारा हेयर क्लिप
अंगुलियों से छिटक कर गिर पड़ता है आँगन पर।
और खुल जाता है, जूड़ा याद का।
मैं इस तीज के चाँद को देखते हुये सोचता हूँ
कि एक टूटा हुआ दिल भी थोड़ा सा चमक सकता है रात में
अगर तुम मुड़ कर देख सको उस अंधेरे की तरफ, मैं जहां हूँ।
* * *
उस तरफ नज़र गई जिधर अरसे से एक उदासी थी। खालीपन की उदासी। समय जैसे घूल के रंग में ठहर गया था। अचानक से चटक गए ख्वाब से जागते ही जैसे हम देखने लगते हैं आस पास की चीजों को वैसे मैंने देखा कि रेगिस्तान के पौधों जाल और आक पर नई कलियाँ मुस्कुरा रही थी। गरमी में लोग ठंडी जगहों पर दुबके हुये दिन के बीत जाने की आशा में वक़्त को गुज़र रहे थे। मगर रेगिस्तान के पौधे, नए पत्ते लिए झूमने की तैयारी में थे। ये गर्मी तकलीफ है, ये ही गर्मी नए खिलने का सुख भी है। प्रेम के बारे में सुना है कभी? प्रेम जो सुख और दुख जैसे मामूली अहसासों से परे, जिजीविषा के आखिरी छोर पर पर साबुत चमकता रहता है। वह जो अजीर्ण है। मैंने कहा- तुम रहना। तुमने मुझे इसके बदले वह दिया जो तुम्हारे पास था। किसी के होने कि दुआ करना और उसके प्रेम में होना कोई दो अलग काम नहीं है।
कल सुबह कोई आस पास था। एक सीला मौसम मेरी आँखों में रख कर छुप गया। मैं नम आँखों से देखता रहा कि दुनिया कायम है। समय की दीवड़ी से रिसता हुआ जीवन का पानी सूख रहा था।किसी सदमे का सौदा फिर से सर पर सवार होने को होता है। मैं उठ कर चल देता हूँ। धूप से गरम हुई हवा अपनी गिरहें बुनती रहती है। लू के झौंके आते जाते हैं। मैं सेल फोन लिए हुये छत से पहले माले और वहाँ से ग्राउंड फ्लोर तक के चक्कर काटता रहा हूँ। देखता हूँ कि बदन झुलस रहा है। सोचता हूँ कि ये बदन किस काम का है?