अगर कोई मुझसे पूछे कि गार्गी कौन थी? तो यह प्रश्न मेरे मुंह पर लटक
जायेगा. मेरी भाव भंगिमाओं से अल्प ज्ञान के तत्वों को विदा होते देखा जा
सकेगा. कुछ साल पहले जब रेडियो के पास इतने कार्यक्रम निर्माता थे कि कुछ
निर्माता स्टूडियो से बाहर जाकर भी कार्यक्रम रिकार्ड किया करते थे. उन
वर्षों में एक बार मुझे गार्गी पुरस्कार वितरण समारोह को कवर करने और उस पर
रेडियो रिपोर्ट बनाने का अवसर मिला था. उस पुरस्कार वितरण समारोह को अगर
गार्गी देख सकती तो उन्हें समझ आ जाता कि न तो इस दुनिया में याज्ञवल्क्य
की क़द्र है न कोई विदुषी का सम्मान करना चाहता है. मुझे विदुषी गार्गी के
नाम पर आयोजित उस समारोह को रेडियो पर पेश करना था और मेरी कठिनाइयों का भी
कोई हिसाब न था कि मुझे गार्गी का पूरा नाम भी मालूम न था. इसलिए कि मैं
एक साधारण छात्र था जो अक्सर कक्षा के बाहर के दृश्यों में खोया रहता था.
मैं सिर्फ इतना भर जानता था कि गार्गी पुराणों या मिथिकीय इतिहास में
उल्लेखित हैं. वे विदुषी थीं और उन्होंने कोई ऐसा प्रश्न पूछा कि सुनने
वालों ने उनको उत्तरदाता के समकक्ष विद्वान मान लिया था. हमें दुनिया के
ज्ञान के अकूत खजाने के बारे में जानकारी नहीं हो सकती लेकिन इतना तो होना
ही चाहिए कि हम जिन विषयों के संपर्क में आते हैं उनके बारे में जान सकें.
विदुषी गार्गी के बारे में हमारे विद्व समाज के पास कोई खास जानकारी उपलब्ध
नहीं हैं. मैंने रेडियो रिपोर्ट बनाने के सिलसिले में जो तथ्य जुटाए वे
नाकाफी थे. लेकिन फिर भी अच्छे कार्यक्रम बनाने की चाह ने मुझे कई नई
जानकारियों से भरा और इससे मुझे अपार प्रसन्नता होती रही है.
गार्गी के बारे में माना जाता है कि वे गर्ग कुल से थीं इसलिए उनको
गार्गी कहा गया. उपनिषद काल की इस विदुषी के बारे में उल्लेख है कि एक बार
राजा जनक ने यज्ञ के समय घोषणा की कि जो व्यक्ति स्वयं को सबसे महान्
ज्ञानी सिद्ध करेगा, उसे स्वर्णपत्रों में जड़े सींगोंवाली एक हज़ार गाएं
उपहार में दी जाएंगी। इस घोषण को सुनकर कोई विद्वान् आगे नहीं आया। इस पर
ऋषि याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्यों से उन गायों को आश्रम की ओर हांक ले जाने
के लिए कहा। तब उस सभा में उपस्थित विद्वानों का याज्ञवल्क्य से
शास्त्रार्थ हुआ। उनसे प्रश्न पूछने वालों में गार्गी भी थी। गार्गी ने जो
प्रश्न किये वे बहुत ही सरल किन्तु विद्वता से भरे थे और उनमें कई प्रश्न
छुपे हुए थे. गार्गी ने पूछा था- याज्ञवल्क्य आप ये बताएं कि जल के बारे
में कहा जाता है कि हर पदार्थ इसमें घुलमिल जाता है तो यह जल किसमें जाकर
मिल जाता है? इस प्रश्न के उत्तर में विद्वान याज्ञवल्क्य ने कहा कि जल
अन्तत: वायु में ओतप्रोत हो जाता है। इसके बाद गार्गी ने पूछा कि वायु
किसमें जाकर मिल जाती है. याज्ञवल्क्य का उत्तर था कि अंतरिक्ष लोक में। इन
दो प्रश्नों के बाद गार्गी ने उस महान ज्ञानी ऋषि के हर उत्तर को प्रश्न
में बदल दिया. इसी अद्भुत प्रश्नोत्तर में सभी लोक समा गए थे. ज्ञान के उस
भव्य और अतुलनीय आयोजन को देखने सुनने वाले अभिभूत हो गए थे. अंतत इस
प्रश्नोत्तर से जो प्रमुख प्रश्न चुना गया. उसके बारे में कहा जाता है कि
गार्गी ने याज्ञवल्क्य से पूछा था कि इस पृथ्वी के ऊपर जो कुछ भी है और
पृथ्वी से नीचे जो कुछ भी है. उसके बीच जो कुछ भी है, और जो हो चुका है और
जो अभी होना है. ये किसके अधीन और प्रभाव में हैं? इसके उत्तर में
याज्ञवल्क्य ने कहा था ‘एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गी’ अर्थात अक्षर,
अविनाशी तत्व है. जिसके प्रशासन में सभी कुछ ओतप्रोत है। इस प्रकार गार्गी
के प्रश्न का अर्थ था कि ये ब्रहमांड किसके अधीन है. इसमें समय और काल की
भूमिका किससे निर्धारित होती है और याज्ञवल्क्य का उत्तर था. अक्षरतत्व के.
इस सभा में गार्गी ने एक विद्वान को चुनौती दी थी और उसी विद्वान को अपने
प्रश्नों से अधीर करने के पश्चात उनका गुरुत्व भी मान लिया था. यह शिक्षक
और शिष्य के बीच की आदर्श स्थिति है. इसमें ज्ञानी शिक्षक को योग्य शिष्य
मिला. जिसने उनके ज्ञान की कठोर परीक्षा ली थी. अगर याज्ञवल्क्य उन गायों
को हांक ले जाते और उनके ज्ञान के बारे में कोई भी प्रश्न न करता तो ये
ज्ञान का क्षय और नष्ट होना ही कहलाता. गार्गी ने जो प्रश्न किये और उनसे
जो उत्तर पाए वे ज्ञान की वृद्धि और सुख का कारण बने. वे इतनी मुग्ध हुईं
कि उन्होंने याज्ञवल्क्य को परम ब्रहम्निष्ठ मान लिया और वहां उपस्थित बाकी
प्रतिद्वंद्वी ब्राह्मणों से कहा- ‘सुनिए, अगर आप अपना भला चाहते हैं तो
याज्ञवल्क्य को नमस्कार करके अपने छुटकारे का रास्ता ढूंढो’ उस सभा में
गार्गी ने एक अतुलनीय डिबेटर होने का श्रेय पाया और संभव है कि इसी कारण
उनको वाचक्नवी कहा गया. गार्गी वाचक्नवी.
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