उलझन

"सर आपके हाथ मे शायद पूँछ आई है?" केसी
केएसएम - "लेकिन ये खोखली और बेजान लग रही है।"
"संभव है किसी कलावादी की पूँछ है" केसी
केएसएम - "हो सकता है कला मर्मज्ञ की हो।"
"देखिए इस पूँछ में कुछ कौवों और चिड़ियों के पंख भी हैं" केएसएम
केसी- "ये कोई जड़ों से जुड़ा कलावादी होगा"
केएसएम - "आपको क्यों नहीं लगता कि ये जड़ों से जुड़ा कला मर्मज्ञ है?"
"कलावादी जहाँ भी जाता है वहाँ की कला को छीनकर अपनी पूँछ में लगा लेता है" केसी
"सर ज़्यादा साफ फर्क समझ नहीं आ रहा" केएसएम
केसी- "देखिए कलावादी हर जगह उपस्थित रहता है लेकिन वह कला के किस क्षेत्र का प्रतिनिधि है ये समझा नहीं जा सकता"
केएसीएम- "सम्भव है कि ये मर्मज्ञ है।"
केसी- "देखिए मर्मज्ञ वो है जो अपने क्षेत्र विशेष के कलाकारों का शोषण करे और अन्य मंचों पर उन्ही के कसीदे पढ़े।"
केएसीएम- "जैसे?"
केसी- "जैसे ही परिवार के सम्मान की बात हो स्वयं का सम्मान करवा लें, बड़े शहर में कोठी बनाकर रहे मगर पुश्तैनी ज़मीन से अपने हिस्से का एक इंच और एक रुपया न छोड़े लेकिन जब परिवार की बात चले तो वही उनका प्रतिनिधि बने खड़ा हो।"

रेगिस्तान के लोगों के लिए ये एक बड़ी समस्या है कि दिल्ली और जयपुर एक ही रास्ता जाता है। इसलिए मालूम नहीं हो पाता कि वह कहाँ जा रहा है। क्या वह दिल्ली जा रहा कलावादी है या जयपुर जा रहा कला मर्मज्ञ?

केएसएम स्टूडियो से बाहर चले और वह पूँछ ट्रेंच में खो गई। मैं उलझन में आँखें उठाये स्टूडियो की छत देखता रहा।