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टला हुआ निर्णय.

टाटा स्काई वाले बार-बार फोन कर रहे हैं. नाम पूछते हैं फिर पूछते हैं क्या आपसे बात करने का ये सही समय है? मैं कहता हूँ नाम सही है और बात करने का सही समय रात नौ बजे के आस-पास होता है. इतना सुनते हुए उधर क्षणांश को चुप्पी छा जाती है. मैं बोल पड़ता हूँ- "फिर भी बताएं क्या कहना चाहते हैं?" एग्जीक्यूटिव कहता है- "आपका लॉन्ग ड्यूरेशन पैक ड्यू हो गया है. क्या आप इसे कंटिन्यु करेंगे?" मैं कहता हूँ- "भाई नहीं करना" 
"क्यों?" 
"महंगा बहुत है." 
"सर कोई दूसरा देख लीजिये." 
"नहीं भाई बड़े पैक लेकर देखे बारह हज़ार में भी सब चैनल पर रिपीट टेलीकास्ट होता रहता है."
"सर आप क्या देखना चाहते हैं" 
"बीबीसी अर्थ देख रहा था दो महीने में ही उनके प्रोग्रेम खत्म हो गए. अब वही रिपीट" 
"सर कंटिन्यु करेंगे?"
"नहीं पैसे ज़्यादा हैं और चैनल बोर हैं"
"सर प्लान तो ये ही हैं" 
"भाई बहुत सारे चैनल बहुत कम पैसों में दिखाओगे तो बोलो"

मेरे इतना कहते ही दुष्यंत मेरी तरफ देखने लगा. एग्जीक्यूटिव ने फोन रख दिया.

मैं दुष्यंत को कहता हूँ ऐसे क्या देख रहे हो? पहले इंटरनेट के एक जीबी के ढाई सौ रूपये देते ही थे न. फिर अचानक पांच रुपया जीबी कैसे हो गया? क्या कोई क्रांति हुई है?

किसी भी डीटीएच सेवा के लिए ट्रांसपोंडर को किराये पर लेने के लिए हर महीने पचास हज़ार से एक लाख डॉलर चुकाना पड़ता है. हम इसके ज़्यादा हिसाब किताब में न जाएँ और मान लें कि पचास लाख रुपया महिना किराया देना पड़ता है. अब बाक़ी को छोड़ दें और टाटा स्काई की ही बात करें तो इनके पास एक करोड़ बीस लाख उपभोक्ता हैं. सेटेलाईट का किराया कितना बना आठ आने से भी कम. इसके बाद सेट टॉप बॉक्स का पैसा हमारी ही जेब से जाता है. रही बात एस्टाब्लिश्मेंट, ऑपरेशन और मेंटेनेंस की तो उसका खर्च आप सेटेलाईट के किराए का पचास गुना लगा दें तो भी हुआ पच्चीस रुपया प्रति उपभोक्ता. अब लाइसेंस फीस, जीएसटी, स्वच्छता, शिक्षा जैसे सब कर जोड़ लें तो पांच एक रुपया और निकल आएगा. माने पचास पैसे जमा पच्चीस रूपये जमा पांच रूपये. साढ़े तीस रूपये. चैनल्स से हम विज्ञापन देखते ही हैं फिर भी उनका कोई एक दो रुपया और निकलता है तो निकाल लें. और भी इस खर्चे को दो गुना कर दें. माने साठ रुपया महिना.

दुशु पूछता है- "तो आप क्या करेंगे?"

मैंने कहा- "मम्मा का डेली सोप ही चूकने वाली चीज़ है. बाक़ी ख़बरें मैं देखता नहीं. फिल्म्स रिपीट हो रहीं. खेल और राजनीति में दूरी खत्म हो चुकी."

आभा कहती है- "मेरे लिए कुछ न सोचिये. मैं तो इश्क़ सुभानअल्लाह देख रही हूँ बस. इसमें भी अब कुछ बचा नहीं है. रिश्ते की फीलिंग्स देखने में अच्छी थी वह खत्म हो गयी. चालबाजी और गुंडे आ गए हैं."

"वो सलमान के डुप्लीकेट जैसा कुपोषित हीरो और दिव्या भारती की नक़ल जैसी हिरोइन वाला सीरियल क्या हुआ? जिसमें फ़िल्मी गीत बजते रहते थे" मैं पूछता हूँ.

"उसका जो होना था हो गया. अभी हम एक महीने यहाँ हैं नहीं. जयपुर से लौटकर आयेंगे तब देखेंगे"

"अच्छा सुनो. ये डीटीएच पर व्हाट्स एप और फेसबुक चल सकते न तो मुकेश अम्बानी कभी का सारा झगड़ा ही खत्म कर देते" 
* * *
Painting image : Bharat Ghate 

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