घसियारा मन



क्या हम गुज़र चुकी बारिश को आवाज़ देते हैं।
या नई बारिशों का इंतज़ार करते हैं, ज़रा कहो?

इस समय अचानक बादल बरसने लगे हैं। बोरोसिल के ग्लास में भरी बकार्डी की रम में बारिश की बूंदें गिर रही है मगर मन जाने कहाँ खोया है? किसे होना था और कौन नहीं है, कुछ समझ नहीं आता।

वैसे नासमझी एक अच्छी शै है।

घास की तरह
उग आते हैं बीते दिन
बैठे-चलते मन
घसियारा हो जाता है।

एक बस छोटी बात
लिखना चाहता है दिल
मगर बात के साथ
गुँथ जाते हैं मौसम।

मैं पहुंच जाता हूँ
कहीं का कहीं
और कहीं छूट जाता हूँ मैं।